अफसोस, जिन नेताओं को बात करने की तमीज नहीं, वे हमारे भाग्यविधाता बने हुए हैं, देश चला रहे हैं
जब से नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने, और गुजरात में जिस प्रकार गोधरा में हिन्दू कारसेवकों को साबरमती एक्सप्रेस की एक बॉगी में जिन्दा जला दिया गया और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप पूरे गुजरात में दंगा भड़की, उसके बाद से भारत में कुछ पत्रकारों और राजनीतिज्ञों ने उनके साथ ऐसी प्रतिक्रियात्मक भेदभाव शुरु की, जिसकी जितनी निन्दा की जाय कम हैं, ऐसा नहीं कि यह देश में पहली और अंतिम प्रकार का दंगा था, इसके पूर्व भी इस देश ने कई दंगे झेले हैं।
उसमें श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद सिक्खों के खिलाफ भड़की 1984 के दंगों को कौन नहीं जानता, जिनके छीटें आज भी कांग्रेसियों को सोने नहीं देती, जिसको लेकर आज भी सिक्ख समुदाय कांग्रेसियों को माफ करने के मूड में नहीं, पर वो कहा जाता है न कि अपना छिद्र लोगों को दिखाई नहीं पड़ता, सच्चाई यह है कि भाजपा हो या कांग्रेस या देश में कोई राज्यस्तरीय पार्टियां ही क्यों न हो, सबके दामन पर खून के छीटें पड़े हैं, सभी ने देश को जितना लूटा, उतना तो अंग्रेज भी नहीं लूटे।
एक सवाल तो आज भी देश की जनता अपने होनहार देश के नेताओं से पूछती है कि काम तो वे भी करते हैं, पर उनकी दौलत दुगनी भी नहीं होती, इनके दौलत एक हजार गुणा तक कैसे बढ़ जाते हैं, इनके अयोग्य संतानें कैसे नेता बनकर, विधायक और सांसद बनकर, देश की जनता के पैसों से ऐश-मौज करते हैं, सच्चाई तो यह है कि नेताओं के इस हरकत में देश के तथाकथित मूर्धन्य पत्रकारों का भी हाथ है।
कमाल है, अगर पीएम नरेन्द्र मोदी नेहरु, राजीव, इन्दिरा पर बोले तो गलत और प्रियंका गांधी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दुर्योधन बोले तो सही। एक बंगाल की मुख्यमंत्री पीएम नरेन्द्र मोदी को थप्पड़ मारने की बात करें तो सही। एक राज्य की मुख्यमंत्री को जयश्रीराम के नारे से इतना गुस्सा होता है कि वो अपना काफिला रुकवा देती है, और जनता को वार्निंग भी देती है कि आखिर चुनाव के बाद रहना तो बंगाल में ही हैं ना, ये धमकी क्या कहलाता है, कोई बतायेगा?
एक प्रधानमंत्री आसन्न आपदा को देख स्वयं मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश करता हैं और वह फोन तक नही उठाती, ये घटिया सी हरकत लोगों को क्यों नहीं दिखती। यही नहीं इस ममता बनर्जी को देखिये, वह पीएम मोदी को कहती है कि क्या मैं उनका नौकर हूं कि वे जहां बुलायेंगे और वे चली जायेंगी। वो तो भाजपा और मोदी को सड़ा हुआ बताने से भी नहीं चूकती। ये शर्मनाक नहीं तो और क्या है?
भाई ये कौन सी भाषा है, किसकी भाषा है, ये बंगाल की जनता की भाषा नहीं हो सकती, ये किसी सभ्य महिला की भाषा नहीं हो सकती, ये किसकी भाषा हो सकती है, शायद बंगाल की जनता, इस भाषा को सुन रही हैं और सबक सिखाने के लिए तैयार हैं। बंगाल की इस ममता बनर्जी ने अपने क्रियाकलापों से हमेशा से ही विवादों को जन्म दी हैं, जो इनके तेवर को जानते है, वे यह भी जानते है कि इन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कैसे नाक में दम कर दिया था?
सच्चाई यह है कि बंगाल में भाजपा की आहट ने ममता बनर्जी को बेचैन कर दिया है, बंगाल में कांग्रेस और वाममोर्चा मृत्युशैय्या पर चले गये हैं, वहां अगर ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस को कोई चुनौती दे रहा हैं, तो वह भाजपा है, शायद इसीलिए वह हर प्रकार की मर्यादा को लांघकर ऐसी-ऐसी भाषा का प्रयोग कर रही है कि कोई भी सभ्य व्यक्ति इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता, पर आश्चर्य है कि हर बात पर पीएम मोदी को रगड़नेवालों की नजर न तो कांग्रेस की नेता प्रियंका पर हैं और न ही ममता बनर्जी पर, अब इसे क्या कहें, घटिया स्तर की पत्रकारिता या घटिया स्तर की राजनीति।
अगर यही हाल रहा तो एक बेहतर भाषण तो भूल ही जाइये, अब कुछ दिनों के बाद मां-बहन की गाली भी इन नेताओं के मुख से सुनियेगा और हमारे बच्चे इनके इन भाषणों को सुनकर, उसका रिपीटेशन घरों मे करेंगे, बस वो दिन दूर नहीं, अब वो आ चुका है। ममता और प्रियंका ने तो इसकी शुरुआत कर ही दी। जल्द ही ये राज्यस्तर तक पहुंचेगा और हम इन असभ्य नेताओं के भाषण सुनने के लिए बाध्य होंगे, क्योंकि बोएंगे हम तो काटेंगे हम ही न।