राज्य के होनहार CM रघुवर की नजरों में विपक्ष चोट्टा है, साला है, जयचंद व मीरजाफर की औलाद है
आम तौर पर विपक्ष के नेताओं की भाषा व उनके बोल को लेकर, उन्हें घेरनेवाले हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, थोड़ा अपने प्यारे–दुलारे, राज्य में अब तक हुए मुख्यमंत्रियों में से सर्वाधिक होनहार मुख्यमंत्री खुद को समझनेवाले रघुवर दास की भाषा पर भी ध्यान देते, तो निःसंदेह, उन्हें झारखण्ड में भी अच्छी सफलता प्राप्त होती, पर उन्हें नहीं पता कि मुख्यमंत्री रघुवर दास की घटिया स्तर की भाषा और बोल ने झारखण्ड में भाजपा की लूटिया डूबो दी है।
नहीं तो पीएम मोदी, झारखण्ड में जहां–जहां रोड शो या सभाएं की है, उसके चुनाव परिणाम पर ध्यान देंगे, वो सीट भाजपा सर्वाधिक वोटों से गवां रही हैं, ऐसे तो पूरे झारखण्ड में भाजपा को महागठबंधन के नेताओं ने नाक में दम कर दिया है, पर सर्वाधिक नाक में दम भाजपा को किसी और ने नहीं, बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास की घटियास्तर की भाषा और बोल ने कर दी है।
शायद पीएम मोदी व भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को पता नहीं कि झारखण्ड की जनता, अन्य राज्यों की जनता के विचारों से अलग विचार रखती है, वह बहुत सारे राजनीतिक नेताओं की राजनीति व दलों को ही सदा के लिए खत्म कर देती है, जिनकी भाषा और जिनकी कार्य–शैली से राज्य या देश को खतरा महसूस होता है। उदाहरण राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के शासन को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए धराशायी करनेवाले राजनीतिज्ञों और उनके दलों की राजनीति को देख लीजिये, आजकल वे कहां है, और उनकी क्या स्थिति है?
उदाहरण एक नहीं अनेक है – देखिये जलेश्वर महतो, लालचंद महतो, बच्चा सिंह को ये आज जीवित हैं, फिर भी राजनीतिक कैरियर इनकी पूरी तरह समाप्त हो गई। दिवंगत मधु सिंह, रमेश सिंह मुंडा आदि भी कुछ नहीं कर सकें, और जिस दल में वे थे, वह दल भी पूरी तरह समाप्त हो चुका है, इसलिए अगर अब भी बुद्धि नहीं हैं, तो बुद्धि कही से उधार लेकर चले आये तो अच्छा रहेगा, नहीं तो “गइल भइसियां पानी में” वाली कहावत चरितार्थ होने से कौन रोक सकता हैं? यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि जिस प्रकार से राज्य के मुख्यमंत्री अपने विरोधियों के लिए जिस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वह भाषा किसी भी राजनीतिज्ञ या दल के सेहत के लिए ठीक नहीं हैं।
जरा देखिये नौ मई को डूमरी की जनसभा में मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने विपक्षी दलों को क्या कह रहे हैं? वे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के नेताओं को जयचंद व मीरजाफर की औलाद कह रहे हैं, वे इनके लिए चोट्टा शब्द का प्रयोग कर रहे हैं, और साला शब्द तो उनके लिए तकिया कलाम ही हो गया है, अब सवाल उठता है कि क्या एक राज्य के मुख्यमंत्री के जुबान से इस प्रकार का बयान शोभा देता है, क्या भाजपा के नेता या खुद सीएम रघुवर दास बता सकते है कि ऐसी घटिया भाषा का प्रयोग राज्य के किसी भी विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके लिए की है, अगर नहीं तो फिर आप वर्तमान राजनीतिक लड़ाई को कहां ले जाना चाहते है, स्वयं बताएं, जनता जानना चाहती हैं।
अगर भाजपा को सदा के लिए समाप्त करने की योजना सीएम रघुवर दास के दिमाग में चल रही हैं, तो उसकी बात ही अलग है, लेकिन याद रखिये, अगर इसी तरह चलता रहा तो निश्चय ही भाजपा के लिए दुर्दिन का दिन जल्द ही शुरु हो जायेगा। जो मेहनत लाल कृष्ण आडवाणी और नरेन्द्र मोदी ने भाजपा को यहां तक लाने में की, जल्द ही ऐसे-ऐसे नेता इसे सदा के लिए समाप्त कर देंगे, इसलिए भाजपा के दिग्गजों को चाहिए कि अपने राज्य के खुद को सर्वाधिक होनहार मुख्यमंत्री समझनेवाले रघुवर दास को प्रशिक्षण दें, नहीं तो झारखण्ड से अगले चुनाव में बोरिया-बिस्तर बांधने के लिए तैयार रहे। कमाल है, वे अपने विरोधियों के लिए गंदी भाषा का प्रयोग भी करते हैं, तथा उक्त भाषण को अपने सोशल साइट फेसबुक पर बड़े ही शान से डलवा देते हैं, यानी इन्हें शर्म भी नहीं कि वे कर क्या रहे हैं?