झारखण्ड के CM को अपने ही कैबिनेट के फैसले को जमीन पर उतारने में हाथ-पांव फुल जाते हैं
मेसर्स प्रभातम एडभरटाइजिंग एजेन्सी प्रा. लि. नामक कंपनी ने राज्य सरकार की चूले हिला दी है। यहीं नहीं, मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके कनफूंकवों की इसने हालत खराब कर दी है। जो मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने कनफूंकवों के कहने पर मनोनयन के आधार पर मात्र एक साल पुरानी लखटकिया कंपनी इंडिया रिपोर्ट कार्ड मीडिया प्रा. लिमिटेड को अपनी ब्रांडिंग के लिए रखा है। उन्हें अब हिम्मत नहीं हो रही कि वे प्रभातम एडभरटाइजिंग एजेन्सी प्रा. लि. नामक कंपनी को सूचना भवन से बाहर का रास्ता दिखा सकें?
हाल ये है कि आज भी प्रभातम एडभरटाइजिंग एजेन्सी प्रा. लि. कंपनी के लोग सूचना भवन आ रहे हैं, जा रहे हैं, पर कोई यह नहीं कह रहा कि आप को जब टर्मिनेट कर दिया गया, तो आप यहां आ क्यों रहे हैं? ज्ञातव्य है कि राज्य सरकार ने प्रभातम कंपनी को 23 मई 2017 को ही कैबिनेट की मीटिंग में टर्मिनेट कर दिया था। पूरे तीन महीने से भी ज्यादा दिन बीत गये, सूत्र बताते हैं कि प्रभातम कंपनी को राज्य सरकार टर्मिनेशन लेटर देने में स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही हैं यानी ये ऐसी सरकार है, जो स्वयं द्वारा लिये गये कैबिनेट के फैसलों को भी जमीन पर उतार नहीं पाती, कुल मिलाकर कहें तो उसे अपने ही फैसलों को जमीन पर उतरवाने में हाथ-पैर फूल जाते है. ऐसे में राज्य की जनता यह कैसे मान लें कि रघुवर सरकार ने कैबिनेट में जो भी फैसले लिये है, वे सारे के सारे फैसले जमीन पर उतर ही गये हो।
ज्ञातव्य है कि मेसर्स प्रभातम एडभरटाइजिंग एजेन्सी प्रा. लि. नई दिल्ली का चयन निविदा के आधार पर किया गया था। जिसके साथ दिनांक 10 दिसम्बर 2015 को 42 माह के लिए एमओयू किया गया था। कंपनी द्वारा बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाने के कारण राज्य सरकार ने इसे 23 मई 2017 को अपने कैबिनेट के फैसले में टर्मिनेट कर दिया, पर अब सवाल उठता है कि क्या वजह है कि इस कंपनी को अभी तक टर्मिनेशन लेटर उपलब्ध नहीं कराया गया। इसका मतलब है कि कहीं न कहीं गड़बड़ियां हैं, शायद राज्य सरकार को मालूम है कि उन गड़बड़ियों के कारण प्रभातम कंपनी सरकार और उसके मुखिया को अदालत तक घसीट सकती है, जिससे राज्य सरकार की किरकिरी होनी तय है, इसलिए अभी सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है।
फिलहाल जोड़-तोड़, साम-दाम-दंड-भेद लगाने का कार्य मुख्यमंत्री और कनफूंकवों द्वारा जारी है। सूत्र बताते है कि प्रभातम कंपनी भी इस बार राज्य सरकार को छोड़ने नहीं जा रही, वो इस मामले को अदालत तक ले जाने की भी सोच रही है, बस उसे इंतजार है, राज्य सरकार के उस पत्र का जिसमें उसे यहां से मुक्त करने की बात लिखी गई हो, जैसे ही उसे मुक्त होने का प्रपत्र मिलेगा, वह आगे की कार्यवाही शुरु करेगी, शायद यहीं कारण है कि राज्य के मुख्यमंत्री और उनके कनफूंकवों की हालत खराब है कि आनन-फानन में अपने लोगों को ब्रांडिंग कराने का काम जो सौपा गया, और इसी बीच जिन्हें हटाना था, उसकी कागजी कार्रवाई ही पुरी नहीं की गयी, इससे मामला उलझ गया जो फिलहाल सुलझता नहीं दीख रहा। देखिये आखिर ये मामला कब तक चलता है, लेकिन यह घटना बता रही है कि राज्य में किस प्रकार का शासन चल रहा हैं, जो सरकार अपनी ही कैबिनेट के फैसले जमीन पर उतार नहीं सकें, उससे विकास के बारे में बातें करना या सोचना ही मूर्खता है।