देखो-देखो-देखो लालू की पटना रैली देखो, बाढ़पीड़ितों के बीच लौंडे का नाच देखो
बाढ़ तो हर साल आता है यार, पर लौंडे का नाच बार-बार देखने को नहीं मिलता, अपने मुहल्ले के नेता जी ने खाने-पीने के साथ-साथ सुने है कि इस बार लौंडे की नाच की जगह बार-बालाओं की भी व्यवस्था की है, इसलिए अभी बाढ़ के किस्से-कहानी मरनी-जीनी सब बंद, अभी केवल लालू और लालू की रैली की बात। समझे बकलोल। कुछ यहीं बात रंजय पिछले दिनों अपने दोस्त गोविंद को बता रहा था।
बहुत वर्षों के बाद लालू जी ने पटना में रैली बुलाई है, कई सालों से लौंडे का नाच उसने नहीं देखा, उसने आजकल सुना है कि नेता जी तो आजकल कोलकाता और मुंबई जैसे शहरों में बार-बालाओं का नाच देख आते है, कुछ तो इसके लिए अब थाइलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर और हांगकांग की यात्रा कर रहे हैं, पर उन जैसों के लिए तो ये रैलियां ही मनोरंजन का काम कर देती है।
उसने संकल्प कर लिया कि वह पटना जायेगा, रैली में भाग लेगा, खुब पुड़ी-बुंदिया उड़ायेगा और रात में बार-बालाओं का मजा भी लेगा, क्यों कैसी रही, अरे मरना तो सब को हैं, कोई आज मरा, कोई कल मरेगा और यहीं मरने के बाद जब भगवान उससे पुछेगा कि लालू की रैली में भाग लिया था, लौंडे का नाच देखा था, बार-बालाओं की सेल्फी ली थी, और उसने कह दिया कि नहीं, तो समझ लो, बेटा बहुत पाप लगेगा, इसलिए रंजय पटना पहंच चुका है, लालू की रैली में आने के पूर्व वह ठुमके का मजा भी ले चुका है, मजा भी ऐसा कि उसने कल्पना भी नहीं किया था। ये नजारा है बिहार का, बिहार की सोच का।
कल का बिहार राजेन्द्र बाबू और जयप्रकाश नारायण का बिहार था। जिसमें एक में स्वतंत्रता आंदोलन तो दूसरी में संपूर्ण क्रांति की बात होती थी। उसमें भी चरित्र की प्रधानता कूट-कूट कर भरी रहती थी। सर्वप्रथम हमें करना क्या है? यह देखा जाता था, पर आज वैसा नहीं है। आज आप बाढ़ में मर जाये, कोई फर्क नहीं पड़ता। नीतीश कुमार ने उनके साथ दगाबाजी कर दी। बेटा उपमुख्यमंत्री था, आज बेरोजगार हो गया। दूसरा स्वास्थ्य मंत्री था, बेरोजगार हो गया। अपनी सरकार थी तो पुलिस उनके इशारों पर नाचती थी, और वे सारी गुंडागर्दी शराफत की आड़ में किये जा रहे थे, जिनकी इजाजत एक सरकार क्या, एक शरीफ इन्सान भी नहीं दे सकता।
आज वे सत्ता से बाहर क्या हो गये, उनको अपनी ताकत का ऐहसास कराने का मन मचल गया। उन्होंने शक्ति का ऐहसास कराने को ठान लिया। फिर क्या था, बाढ़ में 350 मर जाये, अपनी बलां से। लोगों के खेतों में लगी फसल बाढ़ में तबाह हो जाये, अपनी बलां से। लोगों के घर-दुआर बह जाये, अपनी बलां से। हम तो रैली करवे करेंगे, पुड़ी-बुंदिया बनइवे करेंगे और लौंडा का नाच नचवइवे करेंगे, चाहे कोई कितना भी बोले। सेवा का ठेका हम ही लेकर बैठें है क्या?
सेवा का काम सरकार का है, वो करें। हम तो केवल अपने बेटों और अपनी पत्नी से आगे बढ़कर सोचेंगे नहीं। बंगाल की ममता बनर्जी ने तो कह ही दिया है कि भाजपा भारत छोड़ों। हम बोलेंगे भाजपा भगाओ। दोनों मिलकर भाजपा को हुलूलूलू करके भगा देंगे। रही बात शरद यादव की, तो उसको तो राज्यसभा या लोकसभा में जाना है, उसकी अपनी ताकत तो हैं नहीं, वो जायेगा किधर, वो हार-पछता कर आखिर मेरे ही गोदी में बैठेगा, उससे ज्यादा की औकात भी नहीं हैं, अरे नेता तो लालू यादव ही बनाता है। शिवानन्द तिवारी तो आउटडेटेड पंडित है, उसको कौन आश्रय देगा, हार-पछताकरके वह भी मेरे ही गोदी में बैठेगा और फिर हम नीतीश को डरायेंगे। नीतीश डरेगा और फिर भाजपा भाग जायेगा। घटिया लोग, घटिया सोच।
ये तो नेता है, भारत की जनता भी कम नहीं है। एक समय था कि लोग अपने नेता में चरित्र देखा करते थे, पर आज की जनता ये देखती है कि उसका नेता रैली में कितना खर्च कर रहा है, उसने अपने रैली में बुलाने के लिए खाने-पीने से लेकर उसके मनोरंजन का ख्याल रखा है या नहीं, बार-बालाओं, लौंडे का नाच बुलवाया है या नहीं। जहां की जनता की ऐसी सोच होगी, वह जनता तो दुख भोगेगी ही, उसे दुख से कौन बचा सकता है।
जरा देखिये 25 अगस्त की ही बात है एक बलात्कारी बाबा के लिए करीब तीन से चार लाख लोग हरियाणा के पंचकूला में जमा हो गये। यहीं नहीं पूरे हरियाणा, पंजाब और दिल्ली को डिस्टर्ब कर दिया। 30 लोगों की जान चली गयी, 250 से भी ज्यादा लोग घायल हो गये और आज बिहार की राजधानी पटना में देखिये, बाढ़ से 350 लोग मर गये, कई जिंदगियां आज भी तबाह है, लोगों को खाने को नहीं मिल रहा, घर-दुआर नष्ट हो गये, पर इससे अलग लोग पटना की रैली में जुटे है। उस रैली में, उस नेता की रैली में जो भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा है। जो अपनी पत्नी और अपने बेटे से ऊपर सोचता भी नहीं है और आज की रैली भी वह देश में बढ़ती महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी को लेकर नहीं बुलाया, बल्कि वह रैली इसलिए बुलाया कि, उसके बेटे सत्ता से बेदखल हो गये, उसके बेटे बेरोजगार हो गये। हमें तो बाबा राम-रहीम के भक्तों और लालू के आज की रैली में आये उनके समर्थकों में कोई अंतर ही नजर नहीं आ रहा।
जिस देश में धर्म और जाति के नाम पर उन्माद फैलाकर भीड़ इकट्ठे किये जाते हो, वह देश, वह समाज कभी खड़ा नहीं हो सकता। आज की लालटेन रैली में लालू और उनके कुनबे कुछ भी शोर मचा लें, पर नीतीश का वे बाल बांका भी नहीं कर सकते, क्योंकि नीतीश में लाख अवगुण है, पर एक गुण ऐसा है, जो उसे लालू से बहुत अलग कर देता है। वह यह है कि नीतीश कुमार ने आज तक अपनी पत्नी और बेटे के लिए कुछ नहीं किया और न ही अपने या उनके लिए धन इकट्ठे किये।
एक बात और, याद करिये, कोई ज्यादा दिनो की बात नहीं है। जब लालू प्रसाद यादव के होनहार बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के सुरक्षाकर्मियों ने मीडियाकर्मियों को धो डाला था, तब बिहार के कुछ मीडियाकर्मियों ने 27 अगस्त की इस रैली को बहिष्कार करने का फैसला लिया था, पर आज वे अपनी इस घोषणा को भूल कर, लालू प्रसाद यादव के चरणकमलों पर अपना सर रखकर, उनकी रैली की यशोगाथा, जन-जन तक पहुंचा रहे हैं, क्योंकि इन मीडियाकर्मियों की औकात लालू प्रसाद यादव अच्छी तरह जानते है।
लालू प्रसाद यादव ये भी जानते है कि इनकी औकात बस चूहे की माफिक है, ये तो अपने दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में बैठे आकाओं के इशारों पर राग भैरवी गाते हैं, इसलिए आज वे सभी राग लालू गा रहे हैं। कोई कह रहा है, कि आज की रैली एतिहासिक है। कोई कह रहा है कि आज की रैली स्वतःस्फूर्त है। कोई कह रहा है कि आज तक ऐसी रैली देखी ही नहीं। मतलब समझ लीजिये, जैसे उनके आका कह रहे हैं, वैसे वे राग लालू-रावड़ी गा रहे है, बेचारे इसमें इनका क्या दोष? इनको भी तो घर चलाना है, घर में रह रही इनकी पत्नी और बेटे-बेटियां सपने देखते हैं, पर सवाल उठता है कि जब तुम्हें अपने आकाओं के इशारे पर ही नाचना हैं, तो ये बहिष्कार की धमकी देकर किसे उल्लू बनाते हो, मूर्खों।
जेपी,लोहिया के आत्मा का दलन ..बिहार का सुचिता से स्खलन कुछ कोढ़ियों की वजह से है,अब ये भाड़े की भीड़ और उन्माद का दौड़ है जिसमे ,बिहार साक्षी है ,भाँड पहचान लो बस।
बावजूद बिहार में बाढ़ से प्रभावित हैं लोग,इन यादवो का नोटंकी देखने भीड़ उमड़ पड़ी। क्या सही क्या गलत का भेद भूल गए हैं लोग।।