केदारनाथ-बद्रीविशाल ने मोदी को दिया आशीर्वाद, जनता ने जताया विश्वास और BJP को मिला स्पष्ट बहुमत
यह एक तरह से 2014 की पुनरावृत्ति है। जिस प्रकार से चुनाव परिणाम आ रहे हैं। भारत के मतदाताओं ने नरेन्द्र मोदी पर विश्वास जताया है। कांग्रेस अध्यक्ष के बार-बार यह कहने पर कि अपना चौकीदार चोर हैं, लोगों ने इस नारे को स्वीकार नहीं किया और जनादेश के माध्यम से कह डाला कि अपना चौकीदार नरेन्द्र मोदी शत प्रतिशत ईमानदार है, इसके हाथों देश सुरक्षित हैं, इस पर विश्वास किया जा सकता है।
पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक मोदी ही मोदी छाये हैं, केरल और पंजाब को छोड़कर, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस की सरकारे हैं, वहां भी भाजपा ने अच्छी सफलता अर्जित की है। बंगाल में पहली बार भाजपा ने धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है, जबकि जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें चल रही हैं, वहां तो कहने ही नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश में जैसी संभावना दिख रही थी कि सपा-बसपा एक बेहतर प्रदर्शन करेगी, वहां भी भाजपा की बल्ले-बल्ले हैं। बिहार में एक तरह से लग रहा था कि वहां महागठबंधन एक बेहतर प्रदर्शन करेगी, वहां भी स्थिति ठीक इसके उलट है। झारखण्ड में भी महागठबंधन की हवा निकलती दिख रही है, और भाजपा ने यहां शानदार प्रदर्शन किया है, हालांकि यहां से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने अपनी सीटें यहां से गवां दी।
राजनैतिक पंडितों की मानें तो मोदी के जीतने के अनेक कारण हैं। जो कारण प्रमुख थे, वे हैं, घर-घर शौचालय, गरीबों के पक्के मकान, उज्जवला योजना के तहत गैस चूल्हे का मिलना तथा किसानों के खाते में कृषि कार्यों के लिए गये रुपये, उनकी जीत के सारे प्रबंध पूरे कर दिये थे और रही कसी कसर पुलवामा अटैक के बदले ने ले लिये। साथ ही कांग्रेस द्वारा चुनावी घोषणा पत्र में देशद्रोह को लेकर उपजी भ्रांतियां भाजपा की जीत के लिए बहुत बड़ा कारण बन गया।
कांग्रेस और उनके सहयोगियों के हारने का कारण, आंतरिक कलह, असहयोग, एक दूसरे पर शक, सीटों का ठीक से बंटवारा नहीं होना, कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी, मीडिया द्वारा सहयोग नहीं मिलना, भाजपा को लेकर पूरे देश में चल रहे अंडर करंट पर ध्यान नहीं देना और आर्थिक संकट प्रमुख कारण बना।
इस चुनाव में पहली बार देखा गया कि अखबारों, चैनलों व पोर्टलों में कार्य कर रहे संपादकों, रिपोर्टरों, संवाद सूत्रों ने खुलकर भाजपा और नरेन्द्र मोदी की दिल खोलकर सराहना की, उनकी गणेश परिक्रमा की। देश में एक दो ही चैनल रहे, जिन्होंने ईमानदारी से चुनावी रिपोर्ट को जनता के बीच रखा, पर उन पर मोदी समर्थक चैनलों व अखबारों ने इस प्रकार हमला किया, कि उन पर भी महागठबंधन और वामपंथी समर्थकों का ठप्पा लग गया, जिसके कारण उनकी इमेज को भी धक्का पहुंचा, और ज्यादा धक्का पहुंचाने का काम किया बेगूसराय में चुनाव लड़ रहे सीपीआइ कैंडिडेट कन्हैया ने।
हालांकि कन्हैया वहां से चुनाव हार गये, उन्हें भाजपा के तेजतर्रार नेता गिरिराज सिंह ने हराया, क्योंकि गिरिराज सिंह का चुनाव जीतना उसी दिन तय हो गया था, जिस दिन गिरिराज सिंह को बेगूसराय से चुनाव लड़ाने का फैसला कर लिया गया, इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर बेगूसराय से गिरिराज सिंह चुनाव नहीं लड़ते तो कन्हैया को हराना इतना आसान भी नहीं था, पर जिस प्रकार से कन्हैया ने दूसरे स्थान पर आकर गिरिराज को टक्कर दी, वो टक्कर भी भाजपा और गिरिराज को जिंदगी भर चैन से सोने नहीं देगी।
भाजपा के इस जीत के बाद, कांग्रेस में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन के लिए हंगामा खड़ा हो सकता हैं, पर ये हंगामा अंत में जाकर टाय-टाय फिस्स ही हो जायेगा, क्योंकि बिना इंदिरा परिवार के आये, कांग्रेस कभी खड़ी नहीं हो सकती, ये भी एक ध्रुव सत्य है। इस बार के चुनाव में जनता ने सिद्ध कर दिया कि उसे वंशवाद पसन्द नहीं, जरा देखिये जिन-जिन पार्टियों में वंशवाद हैं, वो पार्टी अपने-अपने इलाके में साफ कर दी गई। समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल आदि पार्टियों का सफाया होना उसका एक उदाहरण हैं, पर यह भी सच्चाई है कि यहीं वंशवाद एनडीए के कुछ घटक दलों के लिए वरदान हैं, जो मोदी कृपा से पुष्पवित-पल्लवित हो रहे हैं, उदाहरणस्वरुप रामविलास पासवान की पॉकेट पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी इसी वंशवाद के लिए जानी जाती है।
कुल मिलाकर, भाजपा की जीत का एक बहुत बड़ा कारण हैं, देश के संपूर्ण विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा एक साथ बिना किसी योजना के मोदी पर अटैक, जो जनता को शायद बुरा लगा, जनता को लगा कि एक मोदी अकेले, और बाकी सारे दल मोदी पर अटैक किये हुए हैं, भारत की जनता इसे स्वीकार नहीं की और मोदी को समर्थन देने में कोई कोताही नहीं बरती, अब जब कभी लोकसभा के चुनाव होंगे, तो नये तरीके से मोदी विरोधियों को लड़ना होगा, नहीं तो आनेवाले लोकसभा चुनाव में जब कभी होंगे, उस समय भी मोदी को हराना संभव नहीं होगा।
विपक्षी दलों के नेताओं का एक उदाहरण देखिये। जब आप मोदी को रफेल पर घेरते हैं, तब रफेल पर ही सुप्रीम कोर्ट से माफी क्यों मांगते हैं, ये इमेज आपको जनता के सामने गिराता हैं, जनता को लगता है कि कहीं न कही रफेल के मामले में विपक्ष बेवजह मोदी को बदनाम कर रहा हैं, और अंत में इवीएम पर दोष मढ़ना, क्या बताता है?
दुनिया की कोई ताकत, अपनी चालाकी को कुछ पलों के लिए जमीन पर उतार सकती है, सदा के लिए नहीं, अगर मोदी ने इवीएम के मुददे पर चालाकी की हैं, तो ये चालाकी उन्हें आज नहीं तो कल महंगा पड़ेगा, पर इवीएम और भगवान के ध्यान पर भी जब राजनीति करेंगे तो भगवान को भी बर्दाश्त नहीं होगा, लीजिये केदार व बद्रीविशाल ने अपनी कृपा दृष्टि फैला दी है, मोदी एक बार फिर सत्ता में हैं।
हमें लगता है कि मोदी-शाह उन पत्रकारों और मीडिया हाउसों पर जरुर कृपा लूटायेंगे, जिन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं की तरह उनकी मदद की, और वे उनके निशाने पर होंगे, जिन्होंने जनता के समक्ष सही मायनों में पत्रकारिता की, हो सकता है कि उनके चाहनेवाले उन पर अटैक करें, मैं देख रहा हूं कि कुछ लोगों ने उन्हें अटैक करना शुरु किया हैं, मैं चाहूंगा कि जिन पर फिलहाल गालियों से अटैक हो रहे हैं, वे धैर्य रखें, ये अभी जीत का गुब्बार हैं, जैसे-जैसे ठंडा होगा, वैसे-वैसे सब कुछ ठीक हो जायेगा, पर इतना तो तय है कि लोकतंत्र में विपक्ष का भी एक अपना अलग स्थान है, जिस प्रकार 2014 में जनता ने विपक्ष को मजबूत नहीं बनाया और एक बार फिर विपक्ष 2019 में मजबूत नहीं है, इससे अंततः देश का ही अहित होगा, इसे गांठ बांधकर रख लीजिये।
2014 में मोदी ने क्या वायदा किया और क्या निभाया, सभी को पता है। 2019 में क्या वायदा किया और क्या निभायेंगे, वो अतीत से पता चल जाता है, वे वहीं करेंगे, जो उनके मन में आयेगा, क्योंकि जब बिना किये ही जब सत्ता मिल जाती हैं तो फिर कुछ करने की क्या जरुरत? कारपोरेट जगत जिन्दाबाद, मीडिया के टट्टू भक्त जिन्दाबाद और फिर उसके बाद नरेन्द्र मोदी ऐसे ही जिन्दाबाद।