मोदी जी, समझने की कोशिश कीजिये, आगे भी जनता आपकी बातों में आकर, आपको सत्ता सौंप ही देगी, इस भूल में न रहियेगा
ये कोई नई बात नहीं हैं, भाजपा का कोई भी नेता व कार्यकर्ता बहुत अच्छा भाषण देता है, नरेन्द्र मोदी तो प्रधानमंत्री ही हैं, ये अलग बात है कि झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को न तो भाषण देने आता है और न ही जनता या सदन में अपनी बातें रखनी आती है, जिसके कारण वे खुद कई जगहों पर हंसी के पात्र बनते हैं और सोशल साइट पर लोग उन्हें रगड़ने से बाज नहीं आते।
भाजपाईयों की अगर आप बात सुनें तो जैसे लगता है कि दुनिया की हर समस्या का समाधान उनके पास हैं, भारत की समस्या का समाधान करना तो उनके बाएं हाथ का खेल हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भारत के संसदीय इतिहास पर नजर डाले, तो इन्होंने भी करीब ग्यारह साल से भी ज्यादा भारत पर शासन किया हैं, और उनके शासन का क्या हश्र हुआ हैं, पूरा विश्व जानता है, अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में तो आतंकियों ने संसद पर हमला बोल दिया और भाजपा नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
इन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में भारत में कंधार विमान अपहरण कांड हुआ, जिसमें तीन कुख्यात आंतकियों को भारत सरकार ने छोड़ दिया, जिसका दंश आज भी भारत झेल रहा हैं, पूरे देश का ये हाल हो गया कि देश में एक नया विभाग ही बन गया, नाम था– निवेश मंत्रालय, जिसके कारण देश के विभिन्न उद्योग धंधों पर ताले लटकने शुरु हो गये और कई सरकारी संस्थान निजी हाथों में चली गई।
कहने का मतलब है कि जब ये विपक्ष में होते हैं तो अच्छी खासी चल रही सरकार के नाक में दम कर देते हैं, पर जब अपनी बारी आती हैं तो ताबूत घोटाला करने में भी बाज नहीं आते, ये लाहौर बस सेवा शुरु करते हैं और पाकिस्तान तोहफे में कारगिल युद्ध थोप देता हैं, और हम अपनी ही जमीन पर, अपनी ही जमीन को छुड़ाने के लिए युद्ध लड़ते हैं, पांच सौ जवानों को शहीद करवा देते हैं, और बाद में कारगिल दिवस मनाते हैं, यानी हम कितने भोले हैं, उसका ये कुछ उदाहरण है।
जरा ये भी देखिये न, पीएम मोदी के नेतृत्व में पांच साल सरकार चली, जिसमें नोट बंदी हुआ, और नोटबंदी की हवा निकल गई, काला धन कितना आया, वो सबको पता है, भ्रष्टाचार कितना मिटा वो भी पता है, राम मंदिर की जगह पर दिल्ली में भाजपा का जो राष्ट्रीय कार्यालय बना, वो अद्वितीय है, तो क्या भारत की जनता ने पीएम मोदी को 2014 में भाजपा कार्यालय बनाने के लिए जनादेश दिया था?
सरकारी नौकरियां की तो बात ही मत करिये? अपने लिए, अपने सांसदों के लिए, अपने विधायकों के लिए इनके नेता इतना ख्याल रखते है कि पूछिये मत, देखते ही देखते संसद और विधानसभाओं से अपने वेतन और पेंशन की व्यवस्था कर लेते हैं, और सीमा पर वीरगति प्राप्त करनेवाले जवानों के परिवारों के आंखों में धूल झोंकते हैं और यहां की जनता को देखिये जब वोट देने का समय आता है तो वह उन शहीदों के परिवारों की दशाओं, देश के किसानों की दुर्दशाओं को भूलकर हर–हर मोदी, घर–घऱ मोदी का जप करती है।
जाति–पांति के आधार पर राजनीति करनेवाले नेता, पीएम मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन करते हैं, और अपनी सुविधानुसार जय–जय करते हैं, जिसमें एक बिहार का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम सबसे उपर है। अब जरा देखिये 2019 का लोकसभा चुनाव परिणाम आ गया, जनाब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता भी चुन लिये गये, और देखते ही देखते भाषणों की झर्रियां लगा दी, भाषण ये सुना तो रहे थे अपने सांसदों को, लेकिन दूरदर्शनवालें इनके भाषण का रसास्वादन करवा रहे थे, देश की जनता को, इधर उनके परमभक्त झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनके सोशल साइट देखनेवाले परम शिष्य की तरह उनकी बातों को अपने सोशल साइट पर डाले जा रहे थे, तो हमने सोचा क्यों न, इनके भाषण का ऑपरेशन कर दिया जाये।
अमित शाह ने कहा कि 60 के दशक के बाद इस देश के लोकतंत्र को परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण इन तीन नासूरों ने डंसा हुआ था, हर जनादेश कही न कही परिवारवाद, जातिवाद, और तुष्टिकरण की राजनीति में ग्रसित था, 2019 के जनादेश ने परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण को राजनीति से बाहर निकाल दिया गया है, अब जरा अमित शाह ही बताएं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी खुद अमित शाह, और झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की जाति क्या हैं? बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जाति क्या हैं?
झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में कितने जाति सम्मेलन में भाग लिये हैं? हद हो गई यार, आप जनता को इतना उल्लू क्यों समझते हैं, और रही परिवारवाद की, तो आप बताएं मेनका गांधी, वसुंधरा राजे, राजनाथ सिंह, यशवंत सिन्हा, गंगा प्रसाद आदि की संतानें भाजपा के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ रही हैं क्या? क्या ये परिवारवाद नहीं हैं, ये तो वहीं बात हुई कि आप परिवारवाद करो तो धर्म और दूसरे करें तो अधर्म, मैं तो देख रहा हूं कि अपने यहां का मुख्यमंत्री का बेटा पूर्व में टाटा कंपनी में काम करता था, अब तो जब से जनाब के पिता मुख्यमंत्री बने हैं, वे टाटा का काम छोड़कर समाज सेवा में उतर गये यानी आप सभी को उल्लू समझ रहे हैं, क्यों जनता को नहीं पता कि वे समाज सेवा में किसलिए उतरे हैं?
पीएम मोदी कहते है कि हमें छपास और दिखावा से बचना चाहिए, जबकि सबसे ज्यादा छपास और दिखावा कौन करता हैं, उनसे बेहतर कौन जानता है, और झारखण्ड के मुख्यमंत्री तो इसी के लिए जाने जाते हैं, हमें याद है कि जब मोमेंटम झारखण्ड आयोजित हुआ तो उस वक्त रांची की सड़कों पर जब मुख्यमंत्री को पता चला कि महेन्द्र सिंह धौनी की होर्डिंग ज्यादा लगी हैं, तो वे अपने ही अधिकारियों की क्लास ले ली थी, ये कहकर कि महेन्द्र सिंह धौनी की इतनी होर्डिंग लगाने की क्या जरुरत हैं।
आनन–फानन में उन होर्डंगों को उतारा गया और लीजिये मुख्यमंत्री रघुवर दास का चेहरा सबको दिखाया जाने लगा, जरा ये मंत्र थोड़ा अपने मुख्यमंत्री रघुवर दास के कानों में फूंकिये, तो ज्यादा अच्छा रहेगा, दूसरे को क्या बता रहे हैं? क्या आप छपास और दिखावे के शिकार नहीं है, लोकसभा के चुनाव के दौरान अखबारों और चैनलों मे सर्वाधिक छवि आपकी ही दिखी, आपने तो हर पल का अपने हिसाब से मजा लिया और भाजपा का प्रचार करा दिया, यहां तक कि केदारनाथ दौरे को भी।
आप कहते है कि अखबार के पन्नों से न मंत्री बनते हैं और न मंत्रिपद जाते हैं, तो भाई ये बात तो हम भी जानते हैं, पर माहौल बनाने में इनकी भूमिका खूब रहती है, गुजरात के रुपाणी मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण पद लेने के लिए एक मंत्री की नाराजगी की कहानी तो आपको याद होगा ही, ये अलग बात है कि जनता आपकी गलतियों को जरा जल्दी भूल जाती है। आप कहते है कि वाणी से, बर्ताव से, आचार से, विचार से हमें अपने आपको बदलना होगा।
हे प्रधानमंत्री जी, आप थोड़ा इस राज्य पर कृपा कीजिये और अपने सबसे प्रिय मुख्यमंत्री रघुवर दास को अपने साथ कुछ दिन रखिये और बताइये कि कैसे बोला जाता है, अपनी बात कैसे रखी जाती है, क्योंकि इन्हें तो बोलना ही नहीं आता है, ये अपने विरोधियों के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग करते हैं, ये धमकी देते हैं कि हम ये कर देंगे, वो कर देंगे, ऐसे हम जानते है कि भाजपा में ये लोकोक्ति प्रचलित है, हाथी के दांत दिखाने को कुछ और, और खाने को कुछ और।
एक बात, तो मानना पड़ेगा प्रधानमंत्री जी, कि आपने 25 मई को कितनी बड़ी-बड़ी गोल–गोल बातें बड़ी ही सहजता से कह दी, आपने कहा कि वीआईपी कल्चर से देश को नफरत है, एयरपोर्ट पर चेकिंग होती है तो हमें बुरा नहीं लगना चाहिए। तो बड़ा ही एक सरल प्रश्न है, आप ही बताइये कि ओडिशा के संबलपुर में आपके काफिले की तलाशी लेने पर आइएएस मोहम्मद मोहसिन को निलंबित क्यों किया गया था?
जब उन्होंने चुनावी रैली के दौरान 16 अप्रैल को आपके चॉपर की चेकिंग की कोशिश की थी। पीएमओ ने इसके लिए दखलंदाजी क्यों की थी? पीएमओ की दखलंदाजी के बाद उन्हें चुनाव आयोग ने एसपीजी सुरक्षा प्राप्त शख्स के बारे में बने निर्देशों के उल्लंघन के आरोप में सस्पेंड क्यों किया था?, इसका क्या जवाब है?
पीएम मोदी जी, थोड़ा बोलिये कम, आप खुद क्या कर रहे हैं? और आपके लोग क्या कर रहे हैं? उस पर आप भले ही ध्यान दे या न दें, पर किसी न किसी की नजर आप पर हैं, जो आपको देख रहा है कि आप कितने भोले हैं और कितने चालाक? फिलहाल वक्त अभी आपका चल रहा हैं, ये वक्त किसी का नहीं होता, एक दिन जरुर पलटेगा और आपकी सारी चालाकी पर सदा के लिए विराम लगा देगा, फिर आप कुछ नहीं कर पायेंगे?
मैं देख रहा हूं कि आपकी चालाकी, ठीक 1990 वाले लालू प्रसाद की चालाकी की तरह हैं, कभी वे भी खुद को किंग मेकर कहा करते थे, आप तो साक्षात किंग ही हैं, मैं देख रहा हूं कि उनकी आज क्या स्थिति है? ये स्थिति आपकी न हो, इसके लिए आप थोड़ा खुद और अपने लोगों पर ध्यान दें, नहीं तो कबीर की पंक्ति तो आपको याद होगी ही… “निर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय, मरे मृग के छाल से लौह भस्म हो जाय।”