अपनी बात

हम भारत के लोगों को देश से ज्यादा अपनी जाति और धर्म प्यारी है, वोट किसे देना है, हमें कोई नहीं बताएं

53 साल का हो गया हूं, भारत की जनता को नजदीक से देखा हूं, गजब है, इसके दिलों के राज को जान लेना सबके वश की बात नहीं हैं, ये क्या कहेगी और क्या कर देगी? आप अंदाजा नहीं लगा सकते। जरा देखिये, पहले हम आपको ज्यादा दूर नहीं ले चलेंगे, झारखण्ड की ही बात करेंगे, जिस चतरा और पलामू के लोगों ने जमकर भाजपा कैडिंडेट को लताड़ा, उसका खुलकर विरोध किया।

विरोध ऐसा कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह कहना पड़ गया कि इस लोकसभा चुनाव में आप मुझे या कैंडिडेट को नहीं देखिये मोदी जी को देखिये और वोट करिये और लीजिये उन स्थानों से भाजपा का कैडिंडेट कोई साधारण वोट से या जैसे-तैसे नहीं जीता लाखों वोटों से अपने प्रतिद्वंद्वियों को शिकस्त दे दी।

जरा धनबाद को देखिये, यहां की जनता दो सालों तक अपने किस्मत पर रोती रही, उनकी आजीविका ही नहीं बल्कि आवागमन पर प्रश्नचिह्न लग गया, 52 जोड़ियां ट्रेने रद्द हो गई, यहीं नहीं आज भी बिजली और पानी तथा कानून-व्यवस्था के लिए दर-दर सिर पटकने को मजबूर हैं, पर वोट देने की बारी आती है, सरकार को सबक सिखाने की बारी आती हैं, तो पता नहीं उसका दिमाग कहां चला जाता है।

राज्य के सीएम रघुवर चाहे कांके जाये या दुमका जाये, उनका विरोध जबर्दस्त होता है, पर लोकसभा में वोट देने की बात आये तो कमल ही कमल दिखता है, आश्चर्य है कि सिल्ली, गोमिया, लिट्टिपाड़ा, कोलेबिरा आदि स्थानों पर जब भी विधानसभा के उपचुनाव हुए, सत्तापक्ष हारा और विपक्ष जीता और जब लोकसभा का चुनाव आया तो विपक्ष साफ और सत्तापक्ष जीता, क्या ये जनता का फैसला था या इवीएम की जादूगरी जैसा कि विपक्ष अब धीरे-धीरे खुलकर बोलने लगा है।

बोलने तो वे लोग भी लगे हैं, जो खोजी पत्रकारिता में विश्वास रखते हैं, वे ताल ठोककर कह रहे हैं कि बहुत सारे लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जितने वोट गिरे, उससे ज्यादा वोट काउंट कर लिये गये, आखिर ये संभव कैसे हैं, ऐसे तो जितना बट्टा चुनाव आयोग पर इस बार लगा, हमें नहीं लगता कि इतना सम्मान कभी चुनाव आयोग का कभी प्रभावित हुआ होगा। ये सभी ने देखा और महसूस भी किया।

क्या जहां लोगों के रोजगार पर आफत हैं, जहां एनपीएस के खिलाफ लाखों केन्द्रीय व राज्य सरकारी कर्मचारी खफा है, जहां बड़े-बड़े केन्द्रीय कार्यालय में रोजगार घटते जा रहे हैं, जहां देखते ही देखते कई निजी संस्थान लकवाग्रस्त हो जा रहे हैं, और उसके बाद भी कोई पार्टी शानदार सफलता अर्जित करें तो शक जाहिर हैं, होगा ही।

लेकिन लोकतंत्र का तकाजा है कि आप जीते हैं, चाहे जैसे भी जीते हो, आपको बधाइयां मिलेगी ही, जिन्हें आप पसन्द है, वो आपके पक्ष में वो हर काम करेंगे, जिनके लिए वे जाने जाते हैं, पर जिनको सही मायनों में लोकतंत्र और संविधान पर आस्था है, वे आप पर कभी विश्वास नहीं करेंगे, चाहे आप कितना भी नौटंकी क्यों न कर लें?

हां, हम भारत की जनता के बारे में कह रहे थे, गजब की हैं, एक गजब तो आप उपर में देख ही लिये, पढ़ ही लिये, अब हम आपको भारत की जनता की वो कहानी सुनाने जा रहा हूं, जो अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल से जुड़ा हैं। आपको तो पता ही होगा कि भारत की जनता जब भी पन्द्रह अगस्त या 26 जनवरी या कोई राष्ट्रीय पर्व आता है तो ये गाना बड़े ही धूम-धाम से बजाती है। 

गाने के बोल है लाख फौजे लेके आये, अमन का दुश्मन कोई, रुक नहीं सकता, हमारी एकता के सामने, हम वो पत्थर है, जिसे दुश्मन हिला सकते नहीं, अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं और अब याद करिये कंधार विमान अपहरण कांड, ये गाना गानेवाला देश, उन मुट्ठी भर आतंकियों के आगे झूकता है, तीन कुख्यात आतंकी छोड़े जाते हैं, और सिर कटाने की गीत गानेवाला देश और उसकी जनता बड़े ही शान से उन आतंकियों के आगे सिर झूका देती है। ये घटना बताती है कि भारत के लोग कितने महान है।

भारत की महानता और इसकी जनता की महानता का पता तो इसी से लग जाता है कि भारत के कई पड़ोसी देशों को गुलाम बनाने कि हिमाकत न तो विदेशी कर सकें और न ही अंग्रेज, लेकिन भारत की जनता की बदौलत, अंग्रेजों ने तो दो सौ सालों तक और अन्य मुस्लिम शासकों को मिला दें तो हजार साल भी कम पड़ जायेंगे, विदेशियों ने भारत पर शासन किया, इसलिए भारत की जनता को न तो देश का विकास चाहिए और न ही देश के लिए सत्यनिष्ठ सरकार।

उसे तो सिर्फ ये चाहिए कि कौन उसे कितने अच्छे ढंग से उल्लू बना सकता है और चुनाव के दिन उसे कितना मनोरंजन उपलब्ध करा सकता हैं, क्योंकि उसका मानना है कि जो जितना मनोरंजन करवायेगा, वोट उसी को जायेगा, अगर उसे तकलीफ है तो ये तकलीफ उसे ही थोड़े ही हैं, सभी को हैं, कम से कम, उसे कहने में तो आ रहा हैं न कि उसके जात के लोग, उसके धर्म के लोग सत्ता में हैं और क्या चाहिए तो चलिए इसी बात पर बोलिये जय भारत की जनता और अंत में चिल्लाकर, हाथों में फट्ठा लेकर, बोलिये जयश्रीराम।