हक की लड़ाई लड़ने अकेले ही निकल पड़े नवल, सन्मार्ग प्रबंधन बाहर का रास्ता दिखाने में लग गई
अपने हक की मांग करना तथा अपने साथ कार्य कर रहे मित्रों के साथ उनकी भी हक के लिए आवाज बुलंद करना सन्मार्ग में कार्य कर रहे पत्रकार नवल किशोर सिंह को महंगा पड़ गया। उन्हें सन्मार्ग प्रबंधन ने पटना स्थित नये कार्यालय में ज्वाइन करने का पत्र हाथ में थमा दिया है, चूंकि नवल किशोर सिंह रांची में ही रहकर काफी समय से पत्रकारिता करते रहे हैं, नये जगह जाने पर उन्हें फिर से नये सिरे से काम को करना होगा, दिक्कतें आयेगी, इसे लेकर वे अपनी समस्या सन्मार्ग प्रबंधन के समक्ष रख चुके हैं, पर प्रबंधन उनके अनुनय-विनय सुनने को तैयार नहीं है।
नवल किशोर सिंह का कहना है कि सन्मार्ग प्रबंधन का रवैया वहां कार्य कर रहे किसी भी पत्रकारों के साथ ठीक नहीं रहा, जिसके कारण अब तक 58 पत्रकार, 6 छायाकार और 6 विज्ञापन प्रबंधक इस संस्थान को छोड़कर दूसरे जगह चले गये।
नवल किशोर सिंह बताते है कि सन्मार्ग प्रबंधन अपने यहां कार्यरत लोगों को भविष्य निधि, ईएसआई तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराता, जिसकी शिकायत यहां के कर्मियों ने रांची स्थित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के समक्ष की थी, पर यहां से इन कर्मियों को न्याय नहीं मिला, पुनः सन्मार्ग में कार्यरतकर्मियों ने इसकी शिकायत केन्द्रीय भविष्य निधि आयुक्त, नई दिल्ली से की।
विदित है कि पिछले साल जनवरी में यहां कार्यरतकर्मियों ने प्रबंधन के समक्ष कुछ मांगे रखी थी। मांगे थी – क. वेतन में प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम से कम 20 प्रतिशत वृद्धि। ख. प्रत्येक माह वेतन देने की तिथि निर्धारित की जाय। ग. वेतन चेक से या सीधे बैंक एकाउंट में दिया जाय। घ. सभी संवाददाताओं और छायाकारों को नियुक्ति पत्र दिया जाय। ड. पीएफ, ईएसआई और कन्वेंस (पेट्रोल व मोबाइल खर्च) दी जाय। च, जरुरत पड़ने पर अग्रिम राशि का प्रावधान किया जाय।
प्रबंधन को लग रहा था कि सारे सन्मार्गकर्मियों को नवल किशोर सिंह ही भड़का रहे है, इसलिए फूट डालो शासन करो नीति के तहत सन्मार्ग प्रबंधन ने कुछ कर्मियों को अपने पक्ष में किया और नवल किशोर सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आश्चर्य इस बात की है कि सन्मार्ग जिस खबर को हेडलाइन बनाता है, सन्मार्ग स्वयं उस हेडलाइन की ही ऐसी-तैसी कर देता है। इसी अखबार ने झारखण्ड सरकार की नीतियो को लेकर खबर छापी थी कि अब कर्मचारियों को वेतन बैंक खाते में देना अनिवार्य होगा, पर नवल किशोर सिंह बताते है कि किसी भी कर्मियों को वेतन बैंक खाते में सन्मार्ग प्रबंधन उपलब्ध नहीं कराता, हाथों-हाथ कैश पेमेंन्ट यहां किये जाते है।
आश्चर्य इस बात की भी है कि इस संस्थान में फिलहाल ऐसे संपादक कार्यरत हैं, जो कभी झारखण्ड के शान समझे जाते थे, सूचना आयुक्त का भी पद संभाल चुके है, कभी भाजपा नेताओं से इनकी खुब पटा करती थी, पर वर्तमान में अब वह जमाना नहीं रहा, स्वयं अभी पहचान की संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे लोग के रहते हुए भी जब अखबार में काम करनेवाले लोग संकट में रहे तो आश्चर्य होता है, यानी जो बार-बार नैतिकता की दुहाई देते है, उनके यहां का ये हाल है, न पीएफ, न ईएसआई और न ही अन्य मौलिक सुविधाएं और जब कोई जायज मांग मांगे तो उसे स्थानान्तरण कर दो या बाहर का रास्ता दिखा दो, ऐसे में भला कोई भी पत्रकार सम्मान के साथ कैसे जी पायेगा? फिलहाल ये संकट नवल किशोर सिंह के साथ जुड़ गया है।
इसी बीच नवल किशोर सिंह अपनी आजीविका को लेकर चिंतिंत है तथा संघर्ष के रास्ते पर निकल पड़े है। वे अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रहे है, कई अधिकारियों व संबंधित विभागों को पत्र भेजा है। हाल ही में श्रम अधीक्षक रांची-1 को नवल किशोर सिंह ने पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने मजीठिया वेज, पीएफ, और ईएसआई की सुविधा न मिलने की शिकायत की थी, जिस पर श्रम अधीक्षक ने सन्मार्ग प्रबंधन को पत्र भेजा है, जिसमें प्रबंधन को आगामी 5 सितम्बर को अपना मंतव्य ऱखने के लिए अपने कार्यालय में बुलाया है।
Story on Nawalji was mind boggling. This is not at all fair that the journalists are bereft of their rights. This must be taken seriously by all the journalist unions and human rights body so that justice is meted out to them.