अपनी बात

मुस्लिमों ने किसी से कहा हैं क्या कि उन्हें दामाद बनाकर रखा जाये, और अगर नहीं, तो फिर ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों?

जब से भाजपा गठबंधन ने झारखण्ड में लोकसभा की 14 में से 12 सीटे जीती हैं, तब से राज्य के भाजपा नेताओं के पांव जमीन पर नहीं हैं, यहां तक की राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास भी कुछ ज्यादा ही उछल रहे हैं, उन्हें लगता है कि झारखण्ड में जो 14 में से 12 सीटें आई, वो उन्हीं के पुण्य प्रताप का प्रभाव है, जबकि सच्चाई यह है कि पूरा देश जानता है कि इस बार जो लोकसभा के चुनाव हुए, वो सिर्फ और सिर्फ मोदी को लेकर चुनाव हुए। 

जनता ने तो भाजपा देखा और ही कैंडिडेट देखा, सिर्फ यह देखा कि उसका उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के रुप में आकर खड़ा हो गया हैं, और उसने वोट गिरा दिये, ऐसे में राज्य भाजपा और राज्य के मुख्यमंत्री इस बात को समझने की जो कसमें खा रखी है, तो ऐसे में उन्हें भला यह बताने की कौन कोशिश करेगा कि आप गलतफहमी पाले हुए हैं, उस गलतफहमी को जितना जल्दी हो सकें, दूर कर लें।

आज भी ये नेता इन गलतफहमियों से निकलने की कोशिश नहीं कर रहे, उन्हें लगता है कि विधानसभा चुनाव में भी इसी प्रकार का परिणाम आयेगा और वे पुनःसत्तारुढ़ हो जायेंगे, जबकि राजनैतिक पंडितों का कहना है कि ऐसा बिल्कुल कम से कम झारखण्ड में नहीं होने जा रहा, ऐसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आकाश-जमीन का अंतर होता है, लोकसभा में लोग देश देखते हैं और विधानसभा में राज्य का विकास ही मुख्य मुद्दा होता है, साथ ही मुख्यमंत्री का हाव-भाव, चाल-चलन, बोल-चाल, भाव-भंगिमा भी काफी प्रभावित करता है।

राजनैतिक पंडित इसको लेकर उदाहरण भी रखते हैं, वे कहते है कि हाल ही में 23 मई को जो लोकसभा के चुनाव परिणाम आये तो कर्नाटक में भाजपा का बहार दिखा पर जैसे ही कुछ दिनों के बाद निकाय चुनाव हुए, वहां से भाजपा साफ हो गई, इसे समझने की जरुरत है, पर झारखण्ड में भाजपा के नेता समझने को तैयार नहीं, अभी भी भाजपा में ही बहुत सारे कार्यकर्ता है, जो राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से अभी भी नाराज चल रहे हैं, नाराजगी का मुख्य कारण, उनका स्वभाव ही है।

राजनैतिक पंडित यह भी कहते है कि जिस दिन चुनाव परिणाम आने के बाद, एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री के रुप में नरेन्द्र मोदी का चयन हुआ था और उस दिन जो बाते पीएम नरेन्द्र मोदी ने कही, शायद किसी भाजपा नेता ने ध्यान नहीं दिया, वो कहते है न, कि एक कान से सुनना और दूसरे कान से निकाल देना, वहीं किया, हालांकि पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में साफ कहा था कि अब तक जो मुस्लिमों के साथ किया गया, ये वक्त हे उनके विश्वास को जीतने का, पर क्या सचमुच विश्वास जीतने का काम लोग कर रहे हैं, वे तो अब भी उन्हें जलील करने का कोई समय जाया नहीं कर रहे।

एक मुस्लिम पत्रकार ने, विद्रोही24.कॉम को बताया कि जिस दिन हज हाउस का उद्घाटन हो रहा था, उस दिन जरा मुख्यमंत्री रघुवर दास की भाषा देखिये, वे इस प्रकार हज हाउस को समर्पित कर रहे थे, जैसे लग रहा था कि वे मुस्लिमों पर बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं, उनकी भाषा भी आक्रामक थी, जरा देखिये, वे कह क्या रहे थे, उन्होंने साफ कहा कि हम तुष्टिकरण नहीं करते और किसी को दामाद बनाके रखने में विश्वास नहीं रखते।

अब सवाल हैं कि क्या मुस्लिमों का प्रतिनिधिमंडल, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलकर कहा कि वे उनका तुष्टिकरण करें? क्या कोई मुस्लिम समुदाय, उनसे जाकर यह कहा कि आप उनके लोगों को दामाद की तरह बनाकर रखें, जब ऐसा नहीं तो फिर इस प्रकार की भाषा किसे सुनाई जा रही है, यही भाषा भाजपा को बर्बाद करने के लिए काफी है, किसी को आप किसी दिन सुंदर उपहार दीजिये और उसी दिन आप उसको लाठी से हांकने का काम कीजिये, तो यह नहीं चलेगा, इसे भाजपा के नेता गांठ बांध ले। हज हाउस देकर बनाकर उन्होंने कोई बहुत बड़ा रहम नहीं किया, ये मुस्लिमों का हक है, वे भी इसी देश के नागरिक है।

उक्त मुस्लिम पत्रकार ने विद्रोही24.कॉम को बताया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास को चाहिए कि एक बार फिर अपने नेता पीएम नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के भाषण को सुनें और उसे अपने जीवन में अमल  करें, तभी वे कुछ देश के लिए कर पायेंगे अथवा मुस्लिमों का दिल जीत पायेंगे, नहीं तो अभी तक जो उनके साथ हैं, वे भी उनके साथ रहना पसन्द नहीं करेंगे, और भाषण देने के पहले, अच्छा है कि वे तैयारी करके आये, तब जाकर भाषण दें, नहीं तो क्या-क्या बोल देंगे, उसका क्या रिजल्ट आयेगा, उन्हें पता नहीं, वे ले-देकर भाजपा को ही बैठ जायेंगे, ऐसे वे जान लें कि विधानसभा चुनाव के दौरान उनका सारा घमंड समाप्त हो जायेगा, फिलहाल चार-पांच महीने बचे हैं, जो बोलना हैं, बोलकर अपनी भड़ास मिटा लें।