CM रघुवर को पुनः सत्ता दिलाने के लिए CMO सक्रिय, प्रभात खबर के संपादकों पर किया चोट, कराया स्थानान्तरण
भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए लिये अभी से ही साम–दाम–दंड–भेद का सहारा लेना शुरु कर दिया हैं। इसी क्रम में सर्वप्रथम झारखण्ड के विभिन्न नगरों से प्रकाशित होनेवाले प्रभात खबर पर उसने पहला प्रहार किया है। जिसमें इसका सहयोग प्रभात खबर में काम करनेवाले लोगों ने भी खुलकर किया है।
आश्चर्य इस बात की भी हैं, जो संपादक हर दम सीएम रघुवर के इशारे पर सीएमओ में हाजिर हो जाया करते थे, उनके बताए पद-चिन्हों पर चलकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे, कभी जो गोवा के समुद्रीय तट पर सत्ता और सरकार के साथ मिलकर पवित्र स्नान किया करते थे, और बाद में उसे फेसबुक पर डालकर, स्वयं को अनुप्राणित हुआ महसूस किया करते थे, उन पर भी गाज गिर गई है, बेचारे को रांची छोड़ना पड़ा है, बेचारे की हालत पस्त हो गई, क्योंकि उनके पास अब कोई विकल्प ही नहीं, इसलिए वे धनबाद ज्वाइन कर चुके हैं।
वह आदमी धनबाद ज्वाइन कर चुका है, जो रांची यानी राजधानी में खूब अपनी धाक जमाया है। अपने पद के घमंड में जिसे पाया, उसे तबाह करने में कोई कोताही नहीं बरती। उसके इशारे पर तो कई लोग विभिन्न संस्थानों से निकाल दिये गये, क्योंकि उक्त संस्थान का मालिक चाहता ही नहीं था कि वो व्यक्ति उससे नाराज हो, घमंड इतना कि उसे लगता था कि दुनिया की सारी बुद्धिमानी उसके आगे गिरवी पड़ी हुई है।
लेकिन अब वो धनबाद का संपादक बना है, उस धनबाद का जहां प्रभात खबर की स्थिति सर्वाधिक खराब है, क्योंकि धनबाद में आज भी हिन्दुस्तान सर्वाधिक बिकनेवाला अखबार है, जबकि धनबाद के संपादक को जमशेदपुर भेजा जा चुका है, जमशेदपुर के संपादक को देवघर और देवघर के संपादक को शानदार पदोन्नति देते हुए रांची मुख्यालय में योगदान करने को कहा गया है।
स्वभाव से वामपंथी माइन्डेड और जब जैसा तब तैसा भाव से अभिभूत संजय मिश्र रांची में आकर वह काम करेंगे, जो काम सरकार चाहती है, ऐसे भी उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में जो देवघर- गोड्डा में किया वह सबने देखा, शायद यही कारण है कि उन पर कृपा बरस रही है। सूत्र बताते है कि रांची में भाजपा और सीएमओ को प्रभात खबर में ऐसा स्थानीय संपादक चाहिए था, जो मन, वचन और कर्म तीनों से भाजपा के लिए समर्पित हो, जो अखबारों में भी वहीं लिखे और अपने फेसबुक पर भी वही लिखे और ऐसा व्यक्ति उन्हें मिल गया।
बताया जाता है कि पिछले कुछ दिनों से इस अखबार के रांची संपादक बिजली और पानी को लेकर हो रही समस्याओं पर कुछ अपने सोशल साइट पर ज्यादा सक्रिय थे, जिसको लेकर सीएमओ कुछ ज्यादा नाराज चल रहा था। सीएमओ इस बात को लेकर भी खफा था कि जिस अखबार के लोग उनसे अनुप्राणित हैं, उनसे हर प्रकार का उचित-अनुचित फेवर ले रहे हैं, आखिर उनके यहा काम कर रहे लोग सरकार के खिलाफ सक्रिय क्यों है? इसलिए एक चाल चली गई और ये खेल रच दिया गया। आनन-फानन में रांची के संपादक को धनबाद, धनबाद के संपादक को जमशेदपुर, जमशेदपुर के संपादक को देवघर और देवघर के संपादक को रांची बुला लिया गया।
सूत्र बताते है कि अब प्रभात खबर में वहीं होगा, जो सीएमओ या भाजपा के नेता चाहेंगे, क्योंकि प्रबंधन फिलहाल अपनी विभिन्न समस्याओं से घिरा है, और उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि ऐसे हालात में वे सरकार से दो-दो हाथ कर लें, ऐसे में जबकि प्रभात खबर में हरिवंश का दौर कब का समाप्त हो चुका है, प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी की अपनी पहचान की अलग संकट है, सभी अपने- अपने ढंग से दिमाग लगा रहे हैं, भाजपा को चिन्ता है कि प्रभात खबर पर ऐसा कब्जा जमा लिया जाये कि वह वहीं लिखे, जो वो चाहे, प्रधान संपादक चाहते है कि वे अपनी पहचान इस प्रकार स्थापित कर ले, जैसे कभी हरिवंश जी की यहां हुआ करती थी, जो कभी संभव नहीं है।
विजय पाठक को इस बात का गर्व था कि भला रांची से उन्हें कौन विदा कर सकता है, वे तो साक्षात् नारायण से हमेशा रांची में ही रहने के लिए अमरत्व का वरदान प्राप्त कर चुके हैं, वे भूल गये कि वक्त हर चीज का इलाज होता है, आप उसी से परास्त होंगे, जिस पर आपको ज्यादा भरोसा है, इनके भरोसे के लोगों ने वो काम कर दिया, अब ये धनबाद जाकर, रांची की यादों में खोयें रहेंगे, मोबाइल से पूछते रहेंगे कि रांची का क्या समाचार है, वे सपने देखेंगे कि कैसे वे गोवा के समुद्रीय तट पर पवित्र स्नान किया करते थे, और इधर प्रबंधन अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार के आगे नतमस्तक होते हुए कहेगा कि हमने आपका काम कर दिया, अब आप हमारा काम कर दिजिये और इस ले-दे की संस्कृति में सर्वाधिक पतन अगर किसी का होगा तो प्रभात खबर के उस साख का होगा।
जिस साख की बदौलत, इस अखबार ने, एक छोटे से जिले रांची से शुरु होकर, तीन-तीन राज्यों में अपनी पहचान बनाई, लोग तो अभी से कहने लगे है कि अब प्रभात खबर का जितना उत्थान होने का समय था, वो हरिवंश के जाते ही समाप्त हो गया, अब तो कुछ ही दिन इसके शेष बचे है, अब तो सिर्फ यह देखना है कि यह कब अपना सदा के लिए अस्तित्व खो देता है, जिसकी उलटी गिनती अब शुरु हो चुकी है, देखिये आगे क्या होता है?
खेल खेल में खेल
सत्ता सत्य से मेल
खबर कबर गेल..
फेल त झेल..होंने रेल इन्हें पेल