मोदी के 56 इंच सीने का कमाल, भारत के आगे झूका चीन
भाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिखा दिया कि उनका सीना सचमुच 56 इंच का हैं। अपने देश के अंदर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इमेज को नीचा दिखाने को प्रतिबद्ध यहां के विपक्ष और उनसे खार खाई कुछ मीडिया लाख उनकी इमेज को खराब करने की कोशिश करें, पर कुछ मामलों में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जवाब नहीं। मैंने जब से होश संभाला, बार-बार यहीं सुनने को मिलता कि चीन ने भारत के एक बड़े भू-भाग पर अवैध रुप से कब्जा जमा रखा है, पर आज तक हमने उक्त भू-भाग को चीन के अवैध कब्जे से मुक्त कराने में सफलता नहीं पाई। इसी बीच चीन ने कई बार भारतीय सीमाओं को अतिक्रमण किया और अपनी दादागिरी दिखाई। चीन की इस दादागिरी के आगे, अपने देश की सरकार हमेशा गिरगिराती दिखती और इस गिरगिरा रहे स्थिति को देख चीन का अतिप्रिय मित्र पाकिस्तान बहुत आनन्दित होता।
इधर पहली बार सुनने को मिला कि भारत ने चीन की दादागिरी को धत्ता बताते हुए डोकलाम में चीन की सारी हेकड़ी निकाल दी। पहली बार चीन को पता लगा कि उसकी दादागिरी अब भारत के आगे नहीं चल पायेगी। दरअसल आज से 73 दिन पहले 16 जून को डोकलाम में चीन ने अपना दावा ठोकते हुए सड़क निर्माण और अन्य गतिविधियां शुरु की, जिसका भारत और भूटान ने कड़ा प्रतिरोध जताया। इसी बीच 28 जून को चीनी सेना ने भारतीय सेना पर सड़क निर्माण को रोकने का आरोप लगाया। इधर 5 जुलाई को भूटान ने चीन के राजदूत को बुलाकर कहा कि चीन डोकलाम में यथास्थिति बहाल करें। 6 जुलाई को जी 20 की बैठक में डोकलाम विवाद के कारण भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति से बात करने में दिलचस्पी नही दिखाई।
इधर डोकलाम में भारतीय सेना की उपस्थिति और चीन द्वारा बनाये जा रहे सड़क भारतीय सेना द्वारा रोक लगा दिये जाने से भारत-चीन सीमा पर तनातनी शुरु हुई। भारत ने चीन सीमा पर भारतीय सैनिकों को भेजना प्रारंभ किया तथा सीमा की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना प्रारंभ किया। दूसरी ओर चीन की सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स और अन्य चीनी मीडिया ने भारत के खिलाफ एक सोची समझी रणनीति के तहत आग उगलना शुरु किया। जिसमें प्रतिदिन भारत के खिलाफ विषवमन होता। स्थिति ये थी कि लड़ाई अब हुई या तब हुई। शुरुआत 16 जुलाई को चीन की गीदड़भभकी से हुई। उसने अवैध रुप से कब्जा किये हुए तिब्बत में युद्धाभ्यास शुरु किया। इस युद्धाभ्यास का मकसद था, दिल्ली सरकार और भारतीय सेना को डराना, कि चीन की ताकत के आगे भारत कुछ भी नहीं।
29 जुलाई को स्वयं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने आदत के मुताबिक गीदड़भभकी दिखाई और सैन्य सूट में दिखाई पड़े। 8 अगस्त को चीन ने भारत के उस सुझाव को खारिज कर दिया, कि दोनों देश अपनी सेना साथ-साथ हटाये। 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता दिवस के दिन चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर पथराव किये, जिसका जवाब भारतीय सैनिकों ने बहुत ही शानदार तरीके से दिये, शायद चीनी सैनिकों को जिंदगी भर याद रहेगा। 17 अगस्त को जापान ने भारतीय पक्ष का साथ दिया और अमरीका ने पूर्व में ही चीन को संकेत दे दिया कि वह इस मामले को बातचीत व शांति से सुलझाये।
डोकलाम मुद्दे पर पहली बार चीन और पाकिस्तान को छोड़कर पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा था और चीन किंकर्तव्यविमूढ़ था। उसके पास अपनी इज्जत बचाने के अलावे कोई चारा नहीं दीख रहा था। भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति को देख पाकिस्तान की एक मीडिया ने तो एक गलत खबर ही चला दी कि चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत के 158 सैनिक मारे गये, इस समाचार को लेकर पाकिस्तान को भारी फजीहत झेलनी पड़ी, पर पाकिस्तान के जाने-माने युद्ध विश्लेषकों का मानना था कि अगर युद्ध होना होता तो अब तक हो चुका होता, अब चीन की ताकत नहीं कि भारत पर आक्रमण कर दें। पाकिस्तानी युद्ध विश्लेषकों का ये भी मानना हैं, कि यह भारत की एक बहुत बड़ी कुटनीतिक जीत है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इस मुद्दे पर भारत की प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि हुई और पाकिस्तान कही का नहीं रहा।
सचमुच डोकलाम मुद्दे पर जिस प्रकार से चीन की पूरे विश्व में फजीहत हुई और भारतीय पक्ष को सम्मान मिला, इसका श्रेय निःसंदेह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि को जाता है। यह श्रेय भारत की संपूर्ण विपक्षी दलों को भी है, जिन्होंने डोकलाम मुद्दे पर भारत सरकार के पक्ष के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहे। यह श्रेय भारत की जनता को भी जाता है, जिन्होंने चीन को उसकी औकात बताने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीनी सामानों का बहिष्कार किया। चीन के खिलाफ पूरे देश में एक प्रकार का ऐसा माहौल बनाया, जो चीनी सरकार को भी पता लग गया कि जिस आर्थिक संकट से चीन गुजर रहा है, युद्ध होने की स्थिति में ये आर्थिक संकट और बढ़ेंगे, जिसको झेल पाने की स्थिति में चीन फिलहाल नहीं हैं।
एक बात और, चीन और भारत दोनों अपनी सेना को हटाने को राजी हो गये है, पर चीन की बातों पर कदापि विश्वास नहीं किया जा सकता। चीन ने बता दिया है कि वह 1962 से आगे निकल नहीं पाया है। हमें स्वयं को हर प्रकार से मजबूत करना होगा। चीन निर्मित वस्तओं का जो हमने बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। उसे निरंतर जारी रखना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन का बना सामान खरीदना अपने सैनिकों की छाती में गोली दागने का प्रबंध करने के बराबर है, इसलिए चीन की दादागिरी और उसके द्वारा दी जा रही गीदड़भभकी की, जो भारत ने औकात बतायी है, उसमें हमें ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं, क्योंकि खतरा अभी भी बरकरार है, क्योंकि हमारा पड़ोसी चीन और पाकिस्तान है।