PM मोदी, योग दिवस और रांची का एक अद्भुत संन्यासी, जिसने हार्ट-केयर की परिभाषा ही बदल दी
21 जून को पीएम मोदी रांची में थे। उन्होंने योग की विशेषता और रांची के ही योग से संबंधित एक मठ का अपने भाषण में जिक्र किया था कि कैसे वह संस्थान योग के लिए पूरे विश्व में काम कर रहा है, सचमुच प्रधानमंत्री के मुख से रांची के एक संस्थान का नाम आना, उक्त संस्थान के लिए बहुत बड़ी बात थी, साथ ही रांचीवासियों के लिए भी, तथा उनके लिए भी जो उक्त संस्थान से जुड़े हुए हैं।
इन दिनों ऐसे भी पूरे देश में योग की चर्चा है, क्योंकि पूरे देश ने एक साथ, योग को 21 जून को सेलिब्रेट किया और इसका सारा श्रेय पीएम मोदी को जाता है, क्योंकि योग को प्रतिष्ठित करने के लिए एक शासक के तौर पर जो उन्होंने किया, वह किसी ने नहीं किया, ज्यादातर शासक तो योग को समझ ही नहीं पाये और इसे धर्मनिरपेक्षता का भेंट चढ़ा रखा था, जबकि भारतीय संतों का समूह दिन-रात एक कर सदियों से योग के महत्व को देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी रख रहा था।
जिसका प्रभाव था कि पश्चिम के देशों ने योग को जाना और जितनी तेजी से योग का प्रभाव पश्चिमी देशों पर पड़ा, वो भारत में नहीं पड़ा। इसीलिए कई राजनैतिक पंडित अथवा योग विशेषज्ञ ये कहने से नहीं चूकते कि देश को जितना धर्मनिरपेक्षता ने तबाह किया, उतना किसी ने नहीं, आज भी कुछ राजनीतिक दल योग को धर्म के चश्मे से देखते है, जिसके कारण योग की भारत में यह दुर्दशा है, पर पश्चिम के देशों में योग की लोकप्रियता और पीएम मोदी की योग पर सक्रियता ने संयुक्त राष्ट्र संघ को साल में एक दिन योग के लिए रखने को मजबूर होना पड़ा और पूरे विश्व में अन्तरराष्टीय योग दिवस एक साथ 21 जून को मनाया जाता हैं, इसके लिए निश्चय ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बधाई के पात्र है।
इधर आज योग पर ही रांची के उक्त संस्थान में, जिसकी चर्चा पीएम मोदी ने अपने भाषण में की थी, वहां के एक संन्यासी ने जमकर आज योग पर चर्चा की, और वहां आये सुधीजनों का योग के मूलभूत सिद्धांतों से परिचय कराया। उन्होंने बताया कि लोग कहते है कि योग से लोग स्वस्थ होते है, आखिर स्वस्थ का मतलब क्या होता है? इसे समझने की जरुरत है, आम तौर पर स्वस्थ का मतलब शारीरिक स्वस्थता से लोग लगा लेते हैं, पर क्या ये सही हैं? जरा स्वस्थ का संधि विच्छेद करें – स्व+स्थ = स्वस्थ यानी जो स्वयं में स्थित रहे, स्वयं को जान लें, स्वयं में खुद को प्रतिष्ठित कर लें, वहीं स्वस्थ हैं।
आखिर ऐसा स्वस्थ कौन होता है, तो ऐसा स्वस्थ वो नहीं होता, जो शरीर में स्थित मांस का एक पिंड जिसे हम हृदय कहते हैं, जिसका काम होता है, हमेशा पंपिंग करना, तथा इसके माध्यम से शरीर के सभी कोनों में शुद्ध प्राणवायु को पहुंचाना और अशुद्ध प्राणवायु को फेफड़ों की सहायता से स्वच्छ रखना, केवल उसी की ठीक करने में लगता है, इसे तो आप यानी अपने हृदय को दवाओं से भी ठीक कर सकते हैं, या ज्यादा खराब हो गया तो अब तो इसका कृत्रिम आरोपण भी हो जाता है, तो इससे क्या हमारा हृदय बदल जाता है, हमारी सोच बदल जाती है, ऐसा तो होता नहीं, तो फिर इसके केयर करने और इसको ठीक करने से हमारी सोच में बदलाव आ जायेगी, हम मानसिक रुप से ठीक हो जायेंगे, हमारी चेतना का विस्तार हो जायेगा, और सही मायनों में हम योग के मूलस्वरुप जो आत्मा का परमात्मा से एकीकरण का हैं, क्या वो प्राप्त हो जायेगा, उत्तर है – नहीं।
अगर आपका शरीर केवल ठीक रहे, इस कारण से योग के कुछ व्यायामों को कर रहे हैं, तो वह अलग बात है, पर योग का मतलब केवल हृदय को शारीरिक रुप से ठीक रखने का नाम ही नहीं, जैसा कि इस बार का थीम था – योगा फॉर हार्ट केयर। यह तो हृदय को इससे भी उपर शुद्ध करने की वो प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति अपने हृदय को प्रेम से इस प्रकार भर देता है, जिससे उसकी चेतना का विस्तार होता चला जाता है।
उक्त संन्यासी ने स्पष्ट रुप से कहा कि पहले आप स्वयं को जानिये कि आप क्या है, आप शरीर नहीं है, आप आत्मा है, और आपका सच्चा स्वरुप परमानन्द है, आपकी आत्मा सदैव आनन्द की खोज में रहती है, वह इसी आनन्द की खोज के लिए कई शरीरों को धारण करती है, और जब तक उस परम आनन्द को प्राप्त नही कर लेती, वह इस खोज में लगी रहती हैं। हां ये अलग बात है कि आप वर्तमान में स्वयं को नहीं जान पाते, जिस कारण आप शरीर को ही सब कुछ समझ कर, ईश्वर से मिली इस अनुपम सौगात को ऐसे ही गवां देते हैं।
संन्यासी ने कहा कि आप याद रखिये, जैसा शरीर आपको मिला, वैसा ही शरीर ईश्वर ने जानवरों को भी दिया है, पर जो विशेष चीजें आपको ईश्वर ने दी, वो पशुओं को नहीं दिया। आपको ईश्वर ने सोचने की शक्ति और इच्छा शक्ति प्रदान की, जो पशुओं को नहीं दी। आपको परमानन्द की खोज और उसे प्राप्त करने के लिए अन्तर्ज्ञान को प्रकाशित करने का हर मौका दिया, संसाधन उपलब्ध कराये, यही कारण है कि आप हमेशा परम आनन्द की खोज मे रहते है, चाहे वह परम आनन्द आपको धन को प्राप्त करने या कोई इच्छित वस्तु को प्राप्त करने में ही क्यों न होता हो, पर जब आप भगवान के सत्+चित्+स्वरुप को प्राप्त कर लेते है, तो ये सारी भौतिक वस्तुएं उनके सामने तुच्छ लगने लगती है, और यह तभी प्राप्त होगा, जब आप अन्तर्ज्ञान के द्वारा, आत्मा के स्वरुप, उसके विज्ञान को समझने की कोशिश योग के माध्यम से करें।
संन्यासी बतला रहे थे कि याद रखिये, जिस हृदय की केयर करने की बात इस बार कही गई है, हमारे संतों ने कहा कि हृदय के पास ही अनाहत चक्र होता है, जो हृदय के निकट और सीने के बीच में स्थित है, उस अनाहत चक्र को बिना खोले, आप परमानन्द को प्राप्त नहीं कर सकते, पर लोग अनाहत चक्र को समझने की कोशिश ही नहीं करते। संन्यासी कह रहे थे कि कि अनाहत चक्र पर विजय प्राप्त करने के बाद फिर आध्यात्मिक पुरुष आगे की चक्रों को वेधने में लग जाते है।
अनाहत चक्र को जगाने के लिए जरुरी है कि आप गुरु के बताये मार्गो का अनुसरण करें। ईश्वरीय प्रार्थना करें, कि वे अपने दिव्य प्रेम से आपको अभिभूत कर दें, ताकि आपकी आत्मा निर्मल होकर, ध्यान की ओर आकृष्ट हो, तभी आप योग के परम सुख को प्राप्त कर सकते हैं। आप प्रेम करना सीखें। तभी आपका अन्तर्ज्ञान जगेगा, और जब यह जगेगा तो आपके हृदय पर जमे अंधकार का पर्दा छंटने लगेगा। आपकी चेतना का विस्तार होने लगेगा, फिर इस चेतना के विस्तार का आनन्द लेते हुए आप स्वयं परमेश्वर से एकाकार होने लगेंगे, और फिर ईश्वरीय दर्शन सुनिश्चित हो जायेंगे, यहीं मनुष्य की सर्वोच्च उपलब्धि है, सही मायनों में तभी हृदय स्वस्थ होता है।
संन्यासी बतला रहे थे, कि हमेशा लोगों को प्रेम का अनुभव करना चाहिए, कभी भी किसी से जाति,धर्म, संप्रदाय, देश, रंगभेद आदि को लेकर घृणा न करें, क्योंकि जैसे ही आप घृणा व द्वेष में आ जाते है, आप ईश्वर से दूर होने लगते है, और जैसे ही सभी के लिए आप प्रेम का द्वार, अपने हृदय का द्वार खोल देते हैं, आप का विकार समाप्त हो जाता है, आप योग को समझ लेते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में एक से एक संन्यासी हुए, जिन्होंने योग के माध्यम से यह जान लिया कि उनका जन्म किसलिए हुआ, सृष्टि का जन्म कब हुआ, सृष्टि की आयु क्या है? क्योंकि योग के माध्यम से सब कुछ जाना जा सकता है, पर कौन सा योग, दिखावा या स्वयं को उसमें डूबा लेने जैसा, यह निर्णय आपको करना है, जितना जल्द आप निर्णय करेंगे, उतना ही आप स्वस्थ होंगे, आप खुद को, खुद में समा लेंगे, आप परमानन्द को प्राप्त कर लेंगे।