मॉब लिंचिंग के विरोध के नाम पर दंगा करनेवालों तुम्हारी हिम्मत नहीं कि तुम चन्दन से आंख भी मिला सको
मैं सही कह रहा हूं, पांच जुलाई को जिन्होंने भी मॉब लिंचिंग के नाम पर दंगा फैलाने का काम किया, बस पर पथराव किये, राहगीरों को पीटा, महिलाओं के साथ बदसलूकी की, चंदन के पेट और सीने पर चाकू गोदे, दीपक को मार-मार कर लहुलूहान करने का काम किया, राह चलते लोगों से लूटपाट की, उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि मेडिका में इलाज करा रहे चंदन से आंख से आंख मिलाकर बात कर सके।
अरे हिम्मत तो पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों और जिला प्रशासन की भी नहीं कि वे उससे आंख मिलाकर बात कर सकें, क्योंकि उसके साथ पांच जुलाई को जो भी कुछ हुआ, उस दृश्य को अब तक वह भूला ही नहीं हैं, अरे चंदन और दीपक तो किसी पार्टी से जूड़े ही नहीं हैं, वह तो रोजमर्रें की जिंदगी जीनेवाला आम इन्सान है, तुम्हारी लड़ाई तो मॉब लिंचिंग करनेवालों से थी, तुम तो अपना आक्रोश सरकार के समक्ष रख रहे थे, पर अपना आक्रोश इन बेचारों पर उतार दिया, आखिर क्यों?
विद्रोही24. कॉम का तो मानना है कि दरअसल मॉब लिंचिंग को धर्म के चश्में से देखनेवाले ही असली अपराधी व गुनहगार है, और इन्हीं से देश व समाज को सर्वाधिक खतरा हैं, पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन को ऐसे ही लोगों पर नकेल कसना चाहिए, जिस दिन इन पर नकेल कस जायेगा, फिर कोई तबरेज, चंदन या दीपक किसी मॉब लिंचिंग के शिकार नहीं होंगे, क्योंकि फिर सब को डर हो जायेगा कि अगर वे गलत करेंगे तो बच नहीं पायेंगे, पर सच्चाई यह है कि वे जानते है कि जिस प्रशासन को खुद पता नहीं होता कि उसके शहर में क्या हो रहा हैं? या क्या होनेवाला हैं, वो उन अपराधियों व गुनहगारों को क्या दबोचेगा, जो इसी के लिए जाने जाते हैं।
यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि छह जुलाई को जब विद्रोही24. कॉम ने राज्य के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह से बातचीत की, तब उन्होंने कहा था कि जब उन्होंने रांची के एसडीओ से बात की और पूछा कि क्या मेन रोड में जुलूस निकला है, तो उनका कहना था कि नहीं, और न ही उन्होंने जुलूस की इजाजत दी है, सीपी सिंह के शब्दों में रांची की अनुमंडलाधिकारी ने उनसे झूठ बोला, यानी जहां की प्रशासनिक अधिकारी अपने ही सरकार में शामिल एक मंत्री से झूठ बोले तो ऐसे में राजधानी की स्थिति क्या होगी? झामुमो, जैसी राजनीतिक दल के लोग यह आरोप लगाते हैं कि राज्य में खुफिया तंत्र तथा कानून-व्यवस्था पूरी तरह से फेल हैं तो क्या गलत है?
इसमें कोई दो मत नहीं और ये सच्चाई भी है कि आजकल सचमुच झारखण्ड मॉब लिंचिंग का हब बनता जा रहा हैं, जिसे देखो धर्म के नाम पर अपने लोगों को उकसा रहा और अपना राजनीतिक कद बढ़ाने में लगा है, प्रेस और प्रशासन भी धर्म से इतना भय खाने लगे है कि वे सच बोलने से चूक रहे हैं, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा हैं, जिनका इस तथाकथित धर्म से कोई लेना-देना नहीं हैं। आजकल नेता भी, चाहे वह किसी भी पार्टी का ही क्यों न हो, धर्म का इस्तेमाल बखूबी अपना चेहरा चमकाने के लिए कर रहे हैं, वे अपने वोट के हिसाब से उन लोगों से मिलने जा रहे हैं, जो इस मॉब लिंचिंग के अब तक शिकार हुए हैं।
चंदन से मेडिका में मिलनेवालों में भाजपा के दो लोग शामिल है, एक सांसद संजय सेठ और दूसरे नगर विकास मंत्री सीपी सिंह, अब सवाल उठता है कि भाजपा छोड़, अन्य दलों के नेताओं की फौज चंदन से मिलने, उसका हाल-चाल पूछने क्यों नहीं गई? क्या उन्हें नहीं जाना चाहिए था? क्या चंदन और दीपक भाजपा के कार्यकर्ता थे? क्या चंदन और दीपक से मिलने पर उनके वोट बैंक को खतरा था? आखिर ये सब क्या हो रहा है?
अरे जहां भी मानवता खतरे में पड़ें आप वहां खड़े हो, ताकि लोगों को लगे कि ये उनके नेता है, इन पर विश्वास किया जा सकता है, आप मॉब लिंचिंग के नाम पर चल रहे आंदोलनों में भाग लेंगे, उनके शिकार लोगों से जाकर मिलेंगे और मॉब लिंचिंग के विरोध के नाम पर उभरे दंगे के शिकार लोगों से मिलने में कतरायेंगे और फिर ये भी चाहेंगे कि जनता का आपको प्यार भी मिले और वोट भी मिले, ये सब कैसे होगा? ये दोनों चीजें कैसे चलेंगी।
इधर पता चला कि पांच जुलाई को डोरंडा के राजेन्द्र चौक पर जिन उपद्रवियों/दंगाइयों ने लाठी चलाई/पत्थर बरसायें, उनकी मंशा कुछ और थी, वे बस जलाना चाहते थे, जरा सोचिये अगर बस जलती तो उस बस में सवार बच्चों का क्या होता? ये तो बधाई उस बुजूर्ग को दीजिये, जिसकी वजह से डोरंडा के राजेन्द्र चौक में ऐसी हृदय विदारक घटना घटने से बच गई, क्या समाज और प्रशासन को नहीं चाहिए कि उस बुजूर्ग की खोज करें, जिसने ऐसा करने से रोका? और उसे भरी सभा में सम्मानित करें, ताकि एक मैसेज जाये कि तुम उपद्रवियों रांची को लहकाओगे, तो हमारे पास ऐसे भी लोग हैं, जो इस रांची को बचाने के लिए अपना जी-जान लगा देंगे।
अरे ये शांति समिति की बैठक करने से क्या होगा? शांति तो वो फैलाते है, जो कहीं सीन में नहीं होते और अपना काम कर देते हैं, बैठक करनेवाले तो अपनी राजनीति करने में ही सारा समय बिता देते, अभी बैठक से ज्यादा विश्वास बहाल करने की है, पूरे रांची ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में इस रघुवर सरकार और रांची के जिला प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन ने विश्वास खो दिया है।
जरुरत हैं, विश्वास बहाल करने की, और यह तभी होगा, जब पांच जुलाई के गुनाहगार सलाखों के पीछे होंगे, चाहे वह कोई हो। विश्वास तभी बहाल होगा, जब प्रशासनिक अधिकारी, सरकार में शामिल मंत्रियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों को अपने जवाब से संतुष्ट करेंगे। विश्वास तभी बहाल होगा, जो पुलिस पदाधिकारियों को भी निशाना बनाते हैं, उन्हें उनके अपराध की सजा दी जाये, क्या याद हैं न कि भूल गये, मेन रोड में पिछले वर्ष एक दारोगा को असामाजिक तत्वों ने पीट दिया था, आज भी उस घटना के अपराधी आराम से घुम रहे हैं, वे कौन लोग हैं? जो जरा-जरा सी बात पर आसमां उठा ले रहे हैं, पत्थरबाजी करते हैं, राह चलते ही नहीं, बल्कि अपने आस-पास रहनेवाले लोगों का ही जीना हराम कर देते हैं।
आज पूरा रांची खफा है कि क्या अब उन्हें डर-डर कर जीना होगा? क्या एकरा मस्जिद से लेकर मेन रोड के गांधी चौक तक उन्हें अपना जान हथेली पर लेकर चलना होगा? आखिर ये माहौल का जन्मदाता कौन है? जब तक ऐसे असामाजिक तत्वों पर लगाम नहीं लगेगा, अमन व शांति पैदा नहीं होगा? हर कौम में जाहिलों व बदमाशों की जमात है, उन पर अंकुश लगाइये, देखिये सब ठीक हो जायेगा।
ये क्या? उपद्रवियों को उपद्रवी कहने में भी लोग डर रहे हैं, ये तो अच्छी बात नहीं? गलत को गलत कहना सीखिये। हद हो गई, पहले लोग ईमानवालों से डरते थे, अब तो लोग बेइमानों और लूच्चों-टपोरियों से डरने लगे हैं और ये बेईमान, लूच्चे, टपोरी पूरी रांची को डराने में लग गये। धिक्कार है ऐसी सरकार और ऐसे प्रशासन का, जिसने अपना विश्वास जनता के बीच खो दिया।
बहुत दुःखद,सच को सच कहने की हिम्मत नहीं..