आदिवासियों के परम्परागत व्यवस्था से खिलवाड़ करना बंद करे सरकार – एनएपीएम
कोल्हान के इलाके में हो तथा मुण्डा समाज अपनी परम्परागत स्वशासन व्यवस्था के अंतर्गत, समाज के तमाम फैसले लेते रहे हैं, चाहे वह जमीन का मसला हो या जाति प्रमाण पत्र बनवाने का मसला हो या अन्य सामाजिक तथा सामूहिक विकास के मुद्दे ही क्यों न हो। आदिवासी समाज ग्रामसभा के माध्यम से ही इन उपरोक्त मुद्दों पर निर्णय लेती रही है। 2014 के बाद से झारखण्ड में सरकार बदली और भाजपा शासित इस राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में खासकर कोल्हान में सरकार लगातार हस्तक्षेप कर रही है, जबकि इस क्षेत्र में ग्रामीण आदिवासी समाज, अपने पारम्परिक व्यवस्था के तहत अपने फैसले स्वयं लेती रही हैं।
लोग बताते है कि पूरे कोल्हान के अनुसूचित इलाकों में उपायुक्त ना सिर्फ आदिवासियों का संरक्षक होता है, बल्कि परम्परागत स्वशासन व्यवस्था के अधीन रहते हुए वहाँ के लोगों के सर्वागीण विकास करना उसकी जिम्मेदारी होती है। यह कहना है चाईबासा के लाकोपाई गांव के जमादार मुंडा का तथा एनएपीएम की राज्य संयोजक सुषमा बिरुली, जयपाल मुर्मू टाटा और रांची के मनोज ठाकुर का।
इनका कहना है कि वर्तमान सरकार के सहयोग से उपायुक्त आखिर क्या कर रहे है कोल्हान के लिये? एक बार मुण्डा मानकी से मैनुअल रसीद काटने का वर्षो पुराना हक छिनते हैं, फिर चुनाव से पहले रिस्टोर करके एहसान जताते है कि “देखो हमने दिला दिया।“ यही बात जाति प्रमाण पत्र के साथ भी हुआ। पहले जाति प्रमाण पत्र एक बार ही जारी होता था और ये सभी क्षेत्र (शिक्षा और नियोजन) में काम आता था। फिर सरकार ने जाति प्रमाण पत्र बार बार बनाने की बाध्यता को लाकर लोगों को भयभीत किया। अब कह रही है “एक बार ही बनेगा।”
मतलब यही कि “एक बार छीनों और फिर उसी को लागू करो” और सब से यह कहते फिरो कि “हमने दिला दिया।“ यही बात अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति एट्रोसिटी एक्ट के साथ भी हुआ। मतलब इतने सालों में यही होता आ रहा “एक बार सरकार अधिकार छीनती है और फिर उसी को लागू करने का ढोंग करती है।” सरकार और प्रशासन का ये ढुलमुल रवैया अब कोल्हान में नहीं चलेगा। अब लोग अपनी परम्परागत व्यवस्था के नियम कायदे को ही मानेंगे। अच्छा रहेगा, आदिवासियों के परम्परागत व्यवस्था से खिलवाड़ करना बंद करे सरकार।