आदिवासियों-मूलवासियों के रैयती जमीन लूट के साथ उन्हें समूल नष्ट करने को BJP आतुर – झामुमो
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के महासचिव एवं प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन के लिए जो मसौदा तैयार किया है, उसका तात्पर्य यह है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के मूल भावना को समाप्त कर जंगलों में रहनेवाले लोगों के संवैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जाय एवं वन क्षेत्र के नाम पर सैन्यराज स्थापित किया जाय।
झामुमो नेता ने कहा कि वन अधिकारियों को हथियार उपलब्ध कराकर भोले–भाले वनवासियों को प्रताड़ित एवं आतंकित कर उन्हें पलायन को विवश किया जाय ताकि वनोपज, जैव–संसाधन एवं खनिज संसाधन को निजी औद्योगिक एवं पूंजीपति घरानों को लाभ पहुंचाया जा सके। वन अधिकारियों को न्यायिक अधिकार सौंपने की परिकल्पना भी आदिवासी मूलवासियों के प्रति भाजपा की सोच एवं मानसिकता को व्यक्त करता है।
वन अधिकार अधिनियम 2006, पेसा कानून एवं संविधान की पांचवी अनुसूची जिस भावना के साथ आज आदिवासियों–मूलवासियों को संवैधानिक कवच प्रदान करती है, उसे समाप्त करने पर आमदा भाजपा और विशेषकर भाजपा शासित राज्य सरकारें एवं उनके मुख्यमंत्री इस संदर्भ में विशेष उत्साहित एवं सक्रिय है।
सोनभद्र का वीभत्स नरसंहार साधारण घटना नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण शोषित–दलित, आदिवासी–मूलवासी जन समूह पर हमला है। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा इस सामन्तवादी हमले का कड़े शब्दों में निन्दा करती है एवं राज्य सरकार से यह मांग करती है कि संपूर्ण घटनाक्रम की जांच एक निश्चित समय–सीमा के अंदर कर दोषियों को दृष्टांत मूलक सजा दिलवाए।
झामुमो का कहना है कि सोनभद्र की घटना इस बात का प्रमाण है कि आदिवासी–मूलवासी जनों के रैयती जमीन लूट के साथ उन्हें समूल नष्ट करने पर भारतीय जनता पार्टी आतुर दिखती है। झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, प. बंगाल, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडू के आदिवासी–मूलवासी जनों के रैयती जमीन को जबरन अधिग्रहित कर औद्योगिक घरानों के हाथों सौंपने का लगातार प्रयास चल रहा है। केवल औद्योगिक घराने ही नहीं, अपितु सामन्ती शक्तियों के हाथों में जबरन जमीन सौंपी जा रही है। विगत दिनों उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में इसी तरह के समर्थित कार्रवाई में दस आदिवासियों की नृशंस हत्या कर दी गई।