भारतीय राजनीति में शुद्धता एवं आदर्श के प्रतीक महान वामपंथी विचारक ए के राय नहीं रहे
कोई उन्हें वामपंथी विचारक मानता, कोई उन्हें आदर्शवादी राजनीतिज्ञ मानता तो कोई उन्हें एक ऐसा इन्सान जो “भूतो न भविष्यति” है। वैसे ए के राय अब इस दुनिया में नहीं है, आज उन्होंने धनबाद के सेन्ट्रल हास्पिटल में अंतिम सांस ली है। उनके निधन की खबर सिर्फ धनबाद या झारखण्ड के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए शोकाकुल करनेवाला है, क्योंकि आज एक ऐसे व्यक्ति का निधन हुआ है, जो तीन–तीन बार विधायक रहा, जो तीन–तीन बार सांसद रहा और एक फकीर की तरह जिंदगी गुजार दी।
ज्ञातव्य है कि ए के राय सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से तीन–तीन बार विधायक रहे, जबकि धनबाद लोकसभा से तीन–तीन बार सांसद रहे, विधायक और सांसद रहने के बावजूद भी उन्होंने कभी वेतन नहीं लिया, अरे वेतन छोड़ दीजिये, पेंशन तक नहीं लिया, पूछने पर बोला करते वह सरकारी नौकर नहीं, बल्कि जनता का सेवक है, जनप्रतिनिधि है, और जनप्रतिनिधि होकर हम वेतन कैसे ले सकता हैं? आज मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरे देश में ए के राय जैसा सांसद या विधायक कोई नहीं, उन्होंने राजनीतिज्ञों के बीच ऐसी लकीर खींच दी है, कि उस लकीर के आगे कोई बड़ी लकीर नहीं खींच सकता।
हमेशा वे गरीब जनता व मजदूरों के लिए संघर्ष करते रहे, माफियाओं के लिए तो ये काल ही बने हुए थे, जब तक जीये, कभी भी अपने आदर्शों और चरित्र को मरने नहीं दिया, शायद यही कारण है कि आज पूरा कोयलांचल उनके निधन के खबर से ठहर सा गया है। उन्हें सांसद बनने के बाद रेलवे की सुविधा प्राप्त करने के लिए पास मिलता था, पर वे उस पास की सुविधा तभी प्राप्त करते थे, जब उन्हें दिल्ली के संसद में पहुंचना होता था।
बाकी अपने कामों के लिए हमेशा वे अपने पैसे का इस्तेमाल करते तथा स्लीपर थ्री टियर से यात्रा करते और लोकल यात्रा करना होता तो वे साधारण ट्रेनों के साधारण डिब्बों में सफर करते, उनका इस पर कहना होता कि हम जब सामान्य लोगों के लिए राजनीति करता है, तो हमें सामान्य लोगों की तरह ही जिंदगी का निर्वहण करना होगा, जबकि आज के सांसदों और विधायकों को चरित्र देख लीजिये।
साधारण एक जोड़ी कुर्ता पैजामा में जिंदगी गुजार देनेवाले, असाधारण ए के राय ने लोगों को बता दिया कि जिंदगी कैसे जी जाती हैं, आज वे जीवित नहीं हैं, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वे उन करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो राजनीति में आज भी शुचिता एवं शुद्धता लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
झारखण्ड आंदोलन हो या झारखण्ड को नई दिशा देने की बात, दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जीवन में भी राजनीतिक बीज बोने का काम ए के राय ने ही किया, जब झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का गठन धनबाद में किया जा रहा था तब शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो के साथ जो तीसरी सबसे बड़ी ताकत उस वक्त मौजूद थी, तो ये ए के राय ही थे, ए के राय का जाना सचमुच कोयलांचल या झारखण्ड के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है, हम दावे के साथ कह सकते है कि ए के राय जैसे लोगों का शरीर मर सकता है, पर उनकी कीर्ति कभी मर नहीं सकती, क्योंकि उपनिषद कहता है – कीर्तियस्य स जीवति।