विधायक दल के नेताओं से स्पीकर ने पूछे सवाल, विधानसभा के प्रति उपेक्षा लोकतंत्र को कौन सी दिशा देगी?
झारखण्ड विधानसभा के आज से शुरु हुए मानसून सत्र के पहले दिन झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव ने अपने पहले प्रारम्भिक वक्तव्य में सदन के नेता समेत उन सारे विधायक दल के नेताओं को झिरकी लगाई, जो सदन की गरिमा को प्रभावित कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि मानसून सत्र को देखते हुए सदन को सुचारु रुप से चलाने के लिए स्पीकर दिनेश उरांव ने 19 जुलाई को अपने कक्ष में एक विशेष बैठक बुलाई थी।
जिसमें सदन के नेता, नेता प्रतिपक्ष तथा सभी दलों के विधायक दल के नेताओं को आमंत्रित किया गया था, पर इस बैठक में मात्र दो ही नेता पहुंचे एक संसदीय कार्य मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा और दूसरे नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन, सदन के नेता यानी मुख्यमंत्री रघुवर दास इस बैठक में अनुपस्थित रहे, साथ ही विभिन्न दलों के विधायक दलों के नेता भी इस बैठक में उपस्थित रहना जरुरी नहीं समझा। जिसको लेकर स्पीकर बहुत ही क्षुब्ध थे।
ज्ञातव्य है कि लोकसभा ही नहीं, बल्कि विभिन्न राज्यों के विधानसभा में होनेवाली विभिन्न सत्रों को सुचारु रुप से चलाने के लिए सत्र शुरु के एक–दो दिन पूर्व स्पीकर एक विशेष बैठक बुलाते है, जिसमें सदन के नेता, नेता प्रतिपक्ष एवं विभिन्न विधायक दलों के नेता भी उपस्थित रहते हैं, पर झारखण्ड में देखने को आ रहा है कि इस बैठक को अब सदन के नेता ही तवज्जों नहीं देते और न तवज्जों देते हैं, उन दलों के नेता, जो खुद को विधायक दल का नेता बोलने में गर्व महसूस करते हैं।
दरअसल इनमें इनका कोई दोष नहीं, दोष उनकी सोच का है, क्योंकि इन्होंने सदन को अभी कुछ समझा ही नहीं, जिस दिन ये सदन की गरिमा और सम्मान को समझ लेंगे, ये खुद–ब–खुद सम्मान देने लगेंगे, पर झारखण्ड में ऐसा कब होगा? ये कहना मुश्किल है, क्योंकि यहां तो सदन का नेता ही सदन को सम्मान नहीं देता। आज स्पीकर दिनेश उरांव ने अपने प्रारंभिक वक्तव्य में कहा कि…
“यहां मैं एक बात का और उल्लेख करना चाहता हूं, जो संसदीय व्यवस्था के कार्यवरण में इससे जुड़े लोगों की अभिरुचि के क्षरण को दर्शाता है। प्रायः सभा के प्रत्येक सत्र के पहले विधायक दल के नेताओं की बैठक की परम्परा संसद के साथ–साथ विधानसभा में भी रही है। मुझे इस बात का दुख है कि ऐसी बैठकों में माननीय नेताओं की उपस्थिति लगातार घट रही है। सत्र के पूर्व बुलाई गई इस तरह की बैठक में मात्र तीन सदस्यों की उपस्थिति गंभीर चिन्ता का विषय है। विधानसभा के प्रति यह उपेक्षा लोकतंत्र को कौन सी दिशा देगी, इसे देखना हम सभी का दायित्व है।”