काश, यही उदारता सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले अत्यंत निर्धन बच्चों पर भी स्पीकर और सरकार दिखाती…
कल हजारीबाग के किसी माननीय के स्कूल में पढ़नेवाले बच्चे झारखण्ड विधानसभा के मानसून सत्र का दृश्यावलोकन करने पधारे थे, इन बच्चों का स्वागत बड़े शानदार ढंग से हो रहा था, क्योंकि ये बच्चे साधारण सरकारी स्कूलों के नहीं, बल्कि एक माननीय द्वारा संपोषित स्कूल के थे। बारी–बारी से उक्त माननीय द्वारा विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं को इन बच्चों के पास बुलाया जाता और माननीय उन बच्चों के साथ बड़ी अदब से फोटो खिंचाते।
साथ ही शुरु होता, मछली बाजार की तरह विभिन्न चैनलों, पोर्टलों का उन दृश्यों को कैद करना, जैसे लगता कि सबसे बड़ा समाचार वही हैं, ये बड़ा समाचार हो भी सकता है, क्योंकि कहा जाता है न कि सुंदरता, किसी वस्तु या स्थान में नहीं होती, वो देखनेवाले के आंखों में कैद होती है कि उसने देखा क्या?
बच्चे बड़े उत्साहित थे, क्योंकि बहुत सारे नेता उनके साथ फोटो खिचवा रहे थे, मीडिया के लोग उनसे बातचीत कर रहे थे, और विधानसभाध्यक्ष ने तो सदन में ही कह दिया, वह भी तब जब वनाधिकार मुद्दे पर उन्होंने विपक्ष द्वारा किये जा रहे हंगामों पर कह दिया कि विपक्ष मर्यादा में रहे, क्योंकि उनके द्वारा की जा रही हरकतों को बच्चे भी देख रहे हैं, भाई बच्चे तो तब भी देख रहे थे, जब कभी भाजपा विपक्ष में हुआ करती थी, या जिन विधानसभाओं में भाजपा विपक्ष में हैं, ये कोई नई बात नहीं, जहां जो विपक्ष होता हैं, वो सदन में बच्चों को देख, अपनी बात कहने तो गया नहीं है, उसे जो अच्छा लगेगा, बात करेगा और आप ये कहकर विपक्ष को डरा भी नहीं सकते, कि देखों बच्चे देख रहे हैं।
खैर, माननीय भी खुश, उनके द्वारा संपोषित स्कूली बच्चे भी खुश, माननीय स्पीकर खुश और फिर इसी पर एक सवाल, कि आखिर यहीं सब कुछ सरकारी स्कूलों के बच्चों को नसीब क्यों नहीं होता? उसने कौन से पाप किये है, सरकार और स्पीकर बताएं? होना तो यह चाहिए कि जब–जब सदन चले तो सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले उन निर्धन बच्चों पर भी कृपा हो, जिनकी रुचि सदन में हैं, चल रहे सदन को देखने में है, पर आप तो वो करेंगे नहीं, क्योंकि आप करना ही नहीं चाहते।
और अब लीजिये, जरा अपने पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से सीखिये। संभवतः 2003 में झारखण्ड विधानसभा प्रेस एडवाइजरी कमेटी की टीम पहली स्टडी टूर पर थी, उस दौरान एडवाइजरी कमेटी टीम छत्तीसगढ़ विधानसभा पहुंची, और वहां जो हमें बताया गया, उसकी रिपोर्ट हमने तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को सौंपी थी, जो उस वक्त के झारखण्ड विधानसभा की पत्रिका “उड़ान” में भी छपी थी।
बताया गया कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक दीर्घा ऐसा भी है, जिसमें 40 बच्चों को बैठने का स्थान निर्धारित है। जब विधानसभा चल रहा होता है तो राज्य के विभिन्न कोनों में स्थित सरकारी स्कूलों से बच्चों को आमंत्रित किया जाता है, वे उक्त दीर्घा में आकर बड़े ही शांत भाव से विधानसभा की चल रही प्रक्रियाओं को देखते हैं, तथा बाद में एक समय ऐसा भी होता है कि वे अपने अनुसार सत्तापक्ष और विपक्ष के दो नेताओं का चयन करते हैं और उनसे सवाल–जवाब कर, अपना ज्ञान बढ़ाते हैं।
यह जानकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई, हमने ये बात तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी को बताई थी, उन्होंने कहा था कि आनेवाले समय में कभी झारखण्ड का नया विधानसभा बना तो वे चाहेंगे कि बच्चों को ऐसी सुविधा मिले, और मुझे पूरा भरोसा है, साथ ही रघुवर सरकार पर पूरा विश्वास है कि जो झारखण्ड नया विधानसभा बनकर तैयार हो चुका है, जिसका उद्घाटन मात्र बाकी है, ऐसी सुविधा राज्य के निर्धन बच्चे जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, उनके लिए इन्होंने नहीं की होगी, क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास की ज्ञान–सीमा को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं।
अब सवाल उठता है कि अगर किसी परिवार को ईश्वर ने खुब धन दे दिये हैं और एक परिवार को निर्धन बना दिया, तो जिस निर्धन घर में एक होनहार बच्चे ने जन्म लिया, क्या उसका सिर्फ यह गुनाह है कि वो निर्धन है और उसे वो चीज प्राप्त नहीं हो सकती, जो माननीयों द्वारा संपोषित स्कूली बच्चों को मिलती है, अगर ऐसा है तो जो मैं देख रहा हूं, झारखण्ड विधानसभा में कितने भी माननीय क्यों न हो जाये, झारखण्ड का कभी भला नहीं हो सकता और न ऐसे माननीयों को जीवित रहने या मरने पर शांति ही प्राप्त हो सकती है, क्योंकि शांति तो उसे प्राप्त होती है, जो निर्धनों/निर्बलों पर अपना सब कुछ न्योछावर कर दें।