एक देशद्रोह के मुकदमे ने झारखण्ड में कुकुरमुत्ते की तरह उगे जनसंगठनों की चूलें हिला दी, भागते फिर रहे हैं तथाकथित शीर्षस्थ नेता-पत्रकार
भाई एक बात तो मानना ही पड़ेगा, राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इतना तो जरुर कर दिया कि, जो जनसंगठन के शीर्षस्थ नेता–पत्रकार लाल झंडा लेकर पूरे राज्य में पलायन, विस्थापन, जल–जंगल–जमीन के लिए आंदोलन लेकर घूमते–फिरते रहते थे, उनकी उसने जमीन सूंघा दी है, अब ये नेता व पत्रकार अपने ही घर में जन्में क्रांतिकारियों, जो कि देशद्रोह के मुकदमें में फंस चुके हैं, उन्हें भला–बुरा कहने से नहीं चूक रहे, वे तो रोज उन्हें खरी–खोटी सुना रहे हैं, कि तुम्हें क्या जरुरत थी, सरकार के खिलाफ फेसबुक पर लिखने की, अब लो लिख दिये, तो झख पारो, हम क्या कर सकते हैं?
कमाल है, एक दाढ़ीवाले बाबा पत्रकार को अपने उपर बहुत गुमान था, वे तो सीधे–सीधे पहुंच गये मुख्यमंत्री से मिलने, उन्हें अपने समय के जेपी आंदोलन का याद दिलाया, युवा–वाहिनी का याद दिलाया, सीएम साहेब भी बेचारे को अच्छी तरह से जानते थे, उन्होंने भरोसा दिलाया कि उन्हें न्याय मिलेगा, पर ये क्या न्याय तो कही दिख नहीं रहा, पर जेल जाने की नौबत जरुर दिख रही है।
यही हाल पूर्व में क्रांति का बिगुल बजाकर पूरे देश में अपना नाम चमकानेवाली एक महिला क्रांतिकारी का है, जब से रघुवर दास और उनकी पुलिस ने देशद्रोह के मुकदमे का हथियार का प्रयोग करना शुरु किया है, सबकी सिट्टी–पिट्टी गुम है, कोई बोल ही नहीं रहा, और न आंदोलन में भाग ले रहा, लगता है सभी समझ चुके है कि भाई, सरकार से टकरइल त गइल, क्योंकि यहां विपक्ष बिखरा हुआ है, तथा केन्द्र और राज्य में भाजपा ही भाजपा है, गेरुआ ही गेरुआ है, जहां सरकार किसी भी चीज में फंसाया तो गये काम से।
एक पत्रकार जो कभी क्रांतिकारी थे, बीमारी का बहाना बनाकर चुप ही रहना ज्यादा पसन्द कर रहे हैं, क्या करें, बेचारे, जमाना देखकर शांत हो गये, इधर जो कल तक क्रांतिकारी बनकर उछल रहे थे, और जिन पर देशद्रोह के मुकदमे थे, उनका तो हालत ही पस्त है, क्योंकि हाई कोर्ट या निचली अदालत से उन्हें राहत मिलेगा, इसकी संभावना कम दिख रही, फिर भी इनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनके हौसले बुलंद है, और वे सरकार से टकराने के मूड में हैं, जिनकी संख्या एक या दो है, बाकी तो चाहते है कि आज सरकार या उनके पुलिस अधिकारी सुलह–समझौते कर लें तो ये लोग गंगा नहा लें, पर सरकार और उनके गेरुआधारियों तथा पुलिस को क्या पड़ी है, सुलह–समझौते की जब देशद्रोह का मुकदमा सब पर भारी पड़ रहा है।
इधर जिन पर देशद्रोह का मुकदमा है, उनके मुंह सूखते जा रहे है, क्योंकि उनके घर में जो बड़े–बड़े तथाकथित क्रांतिकारी मठाधीश थे, उनको अपनी ताकत का ऐहसास हो चुका है कि वे कुछ भी नहीं, और लीजिये ताकत का ऐहसास होने पर अपने लोगों को कोसे जा रहे हैं, ऐसे में बेचारे वे क्या करें, जो देशद्रोह के मुकदमे में फंस गये, ये तो दोनों से गये परिवार से भी और सरकार से भी।
इधर आज सुनने में आया है कि आज मित्रता दिवस है, जनसंगठनों में महिला–पुरुष को साथी ही कहने का रिवाज है, पर एक देशद्रोह के मुकदमे ने साथी शब्द की ही किरकिरी कर दी है, कल तक जिनके एक शब्द पर भीड़ जमा हो जाती थी, आज वो भीड़ गायब है।इधर जिन जनसंगठन के शीर्षस्थ नेताओं पर पूरे राज्य में जमावड़ा हो जाता था, लोग जुटते थे, आगे–आगे बैनर–पोस्टर लेकर चलते रहते थे, उन्हें भी लग रहा है कि कहीं उनका न नंबर अब आ जाये, क्योंकि जब उनके नेता ही सरकार से भय खा रहे हैं, तो उनकी क्या औकात?
पूरे खूंटी में सरकार और पुलिस को डरा देनेवाले लोगों की हालत, अभी खराब है, कहीं कोई दिख नहीं रहा, सभी भगवान से यहीं प्रार्थना कर रहे हैं, कि रघुवर दास को कोप शांत हो, और वे देशद्रोह के मुकदमे से हट जाये तथा अपने परिवार का कोपभाजन बनने से भी बच जाये, पर लगता है कि स्थिति ठीक नहीं। कमाल है, इस राज्य में दर्जनों से अधिक जनसंगठन मौजूद है, जिनमें ज्यादातर पॉकेटी संस्था है, जिनको हवा देने में यहां के कुछ लोग व पत्रकार शामिल थे, पर देशद्रोह के मुकदमे ने इन्हें कहीं का नहीं छोड़ा या यो कहें तो इनकी इज्जत उतार दी।
अरे जब जनसंगठन खड़े किये हो, जल–जंगल–जमीन की लड़ाई की बात करते हो, तो डरते क्यों हो, लड़ो–संघर्ष करो, कोई जरुरी नहीं कि हर संघर्ष में तुम्हें जीत ही मिले, कभी हारना भी पड़ता है, उस हार को भी जीत की तरह गले लगाओ। मत झूको, संघर्ष करो, पर तुम संघर्ष करोगे कैसे? तुम्हें तो जनसंगठन के नाम पर कांग्रेस पार्टी का टिकट चाहिए, वामदलों का टिकट चाहिए या भाजपा छोड़कर अन्य दलों का टिकट चाहिए, ताकि बाद में तुम भी अन्य नेताओं की तरह मस्ती काट सको, स्वर्ग की सैर कर सको, ऐसे में तुम्हारा जो आज हाल है, वो तो होना ही था, ये अलग है कि वर्तमान तुम्हारा ये हाल कर, रघुवर दास ने बाजी मार ली।