प्रभात खबर बताएं कि क्या सचमुच जम्मू-कश्मीर बंट गया, नहीं तो अपनी गलती के लिए देश से माफी मांगे
झारखण्ड का सर्वाधिक प्रसारित हिन्दी दैनिक “प्रभात खबर” जो अपना 35वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है, जिसके स्थापना दिवस समारोह में भाग लेने के लिए आगामी 10 अगस्त को स्वयं भारत के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु पहुंच रहे हैं, जिसका विषय ही है – देश के विकास में नए राज्यों की भूमिका, जरा देखिये, उसके आज के पृथम पृष्ठ को, क्या हेडिंग दी है – “ अनुच्छेद 370 अब इतिहास, 370 वोट से जम्मूकश्मीर को बांटनेवाला बिल लोकसभा से पास।”
अब सवाल उठता है कि जिस प्रकार से प्रभात खबर ने यह हेडिंग दी, सुर्खियां बनाई। उसका संपादक बता सकता है कि जम्मू-कश्मीर को बांटनेवाला बिल लोकसभा में पेश किया गया था या जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधयेक लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया था और ये बांटनेवाला से उनका क्या तात्पर्य हैं?
जो लोग जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के बारे में जानते है, या जो इस संसद में इसको लेकर बहस में भाग लिये, उनके मुख से भी यह बांटनेवाला शब्द नहीं सुना गया, तो फिर इस अखबार ने बांटनेवाला शब्द का प्रयोग क्यों किया? क्या संपादक बता सकता है कि पुनर्गठन का मतलब बांटनेवाला कब और कैसे हो गया?
और जैसा कि प्रभात खबर ने कह दिया कि जम्मू-कश्मीर को बांटनेवाला बिल लोकसभा से पास हो गया तो वह यह भी बता दें कि जम्मू कश्मीर को बाटंनेवाला वह व्यापारी कौन था और वह ग्राहक कौन था जिसके बीच इसे बांटा गया? क्योंकि जो भी देश से प्यार करते हैं, वे तो इस बांटनेवाला शब्द पर अपना आक्रोश जतायेंगे ही? या हम यह समझे की प्रभात खबर को केन्द्र सरकार के इस निर्णय से खुशी ही नहीं हुई, वह चाहता था कि धारा 370 समाप्त ही न हो, और समस्या बराबर बनी रहे।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने इस प्रकरण पर विद्रोही24.कॉम से बातचीत मे कहा कि अगर किसी अखबार ने ऐसी हेडिंग दी है, तो इसे गलत ही कहा जायेगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर बांटा नहीं गया है और न कभी बांटा जा सकता है, अच्छा रहेगा कि लोग इसे सुधार लें।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ कहते है कि प्रभात खबर द्वारा दी गई यह हेडिंग शर्मसार करनेवाली है, भला जम्मू-कश्मीर कब से बंटने लगा, क्या प्रभात खबर के लोगों के पास शब्दों की कमी हो गई या उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक समझ ही नहीं आया। पुनर्गठन और बांटनेवाला में आकाश जमीन का अंतर है।
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते है कि यह हेडिंग ही गलत और भ्रामक है। सच्चाई यह है कि पहली बार जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना है, बांटनेवाला शब्द अपने आप में आपत्तिजनक है। वे इसकी कड़ी भर्त्सना करते है, सच्चाई यह है कि पहली बार जम्मू-कश्मीर के लोगों को सही में न्याय मिला है।
झारखण्ड सिविल सोसाइटी के आर पी शाही ने भी इस पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उनका कहना है कि इस प्रकार की हेडिंग से अखबार की निष्पक्षता और उसकी सत्यता पर प्रश्नचिह्न लगेगा, साथ ही अखबार को यह समझना चाहिए कि देश से बड़ा उनका अखबार भी नहीं हैं।
Unconstitutional heading… Jinke paas sabdo k chayan ka gyan nhi, unhe patrakaar kehlane ka koi haq nahi… Khabro k chayan k liye sampadak jimmedaar hota hai… Itne bade राष्ट्र हित के फैसले पर ऐसी भद्दी हेडिंग शर्मनाक है… नैतिकता के आधार पर उन्हें तत्काल संपादक के पद से इस्तीफा दे देना चाहिए… जय हिन्द… जय भारत… वन्दे मातरम्…