विश्व आदिवासी दिवस पर रांची की सड़कों पर अच्छे लगे अर्जुन और उनकी पत्नी मीरा मुंडा
आज विश्व आदिवासी दिवस है। राज्य की रघुवर सरकार और उनके अधिकारी सोए हुए हैं, पर केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को आज के दिन का ऐहसास है, वे अपनी पत्नी मीरा मुंडा और अपने सहयोगियों के साथ आदिवासियों की परम्परागत पोशाक में रांची की सड़कों पर पदयात्रा के लिए निकल पड़े। शायद वे रांची और राज्य की जनता को बताना चाहते थे कि आज का दिन एक आम आदिवासी के लिए कितना महत्वपूर्ण और क्या मायने रखता है।
आदिवासियों के परम्परागत पोशाक में केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा अद्भुत दीख रहे थे, साथ ही उनकी पत्नी मीरा मुंडा भी लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थी, जो भी उनसे मिलता, वो मुस्कुराकर, दोनों हाथ जोड़कर, “जोहार” कह अभिवादन करती और सामनेवाला भी उनके इस व्यवहार से गदगद हो जाता। यहीं हाल अर्जुन मुंडा और उनकी पत्नी मीरा मुंडा के साथ चल रहे बड़ी संख्या में उनके समर्थकों का था।
अर्जुन मुंडा ने केवल रांची में ही नहीं, बल्कि अपने संसदीय क्षेत्र में भी विश्व आदिवासी दिवस का लोगों को भान कराया और वे पदयात्रा पर निकले, उनके साथ इस अवसर पर राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा भी थे। अर्जुन मुंडा और उनकी पत्नी मीरा मुंडा की खासियत है, कि वे जिस किसी से भी मिलते हैं तो वे बड़ी ही विनम्रता से मिलते हैं, जिसका प्रभाव पदयात्रा पर दिखा। कई लोगों ने अर्जुन मुंडा को परम्परागत पोशाक में देखा तो वे सेल्फी लेने से नहीं चूंके, अर्जुन मुंडा ने भी किसी को ‘ना’ नहीं कहा। सेल्फी लेनेवालों में चैनलों–अखबारों के पत्रकारों–छायाकारों की भी संख्या अधिक थी।
अर्जुन मुंडा का कहना था कि आज के दिन किसी की आलोचना मात्र कर देने से कमियां पूरी नहीं हो जाती। हम अपनी भाषा, संस्कृति और परम्परा के साथ कैसे आगे बढ़े, यह संकल्प लेना आवश्यक है। वैसे लोगों के लिए यह आवश्यक है कि हमारे आचरण, आदर्श, मनोविज्ञान और दर्शन को महत्व देते हुए हमें समझने का प्रयास करें।
उनका कहना था कि इस वर्ष जनजातीय भाषा को संरक्षित रखने का संकल्प लिया गया है। जनजातीय भाषा अब धीरे–धीरे लुप्त होता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर दो सप्ताह में एक जनजातीय भाषा विलुप्त हो जा रही है। अगर, यह रिपोर्ट सही है, तो यह चिन्ता का विषय है। इसलिए हमें यह भी ध्यान देना होगा कि किस प्रकार जनजातीय भाषा को विलुप्त होने से बचाया जा सके। मेरी यह मान्यता है कि संवैधानिक परम्पराओं के छत्रछाया में भारत के हर जन अपने आपको समर्थ महसूस करें। ऐसा वातावरण निर्माण करने में सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास आवश्यक है।