कल रांची की सड़कों पर आदिवासी CM रघुवर को ढूंढ रहे थे, पर जनाब कही दिखे नहीं, लेकिन विपक्ष हर जगह मौजूद था
कल जब सारा विश्व, विश्व आदिवासी दिवस के दिन आदिवासियों को बधाई और मुबारकवाद दे रहा था। कल जब भारत के विभिन्न प्रान्तों में रहनेवाले आदिवासियों के कल्याण के लिए विभिन्न सरकारें सुध ले रही थी, ठीक उसी दिन झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास इन सबसे बेपरवाह दूसरे कामों में लगे थे।
कमाल है, साहू, तेली और वैश्य सम्मेलनों में भाग लेने के लिए महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और दिल्ली तक का दौर लगा देनेवाले झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को रांची में ही रहकर इतनी फुर्सत नहीं थी कि वे राज्य के आदिवासियों को कल विश्व आदिवासी दिवस के दिन बधाई तक दे सकें, जबकि झारखण्ड के बारे में जो लोग जानते हैं, वे यह भी अच्छी तरह से जानते हैं, खुद भाजपा भी जानती है कि यह राज्य आदिवासी बहुल राज्य है।
आश्चर्य इस बात की भी है, कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को जैसे ही सूचना मिली कि भाजपा झारखण्ड के विधानसभा चुनाव प्रभारी ओम प्रकाश माथुर को बनाया गया है, और नंद किशोर यादव को चुनाव सह प्रभारी बनाया गया है, मुख्यमंत्री रघुवर दास को इन दोनों को बधाई देने में देर नहीं लगी, पर इस राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को आदिवासियों को बधाई देने के लिए समय नहीं था।
अगर झारखण्ड के ही भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा, जो केन्द्र में केन्द्रीय मंत्री भी है, वे कहते है कि “1993 में आदिवासी अधिकार घोषणा पत्र के प्रारुप को मान्यता मिलने पर 9 अगस्त 1994 को यूएनओ के जेनेवा महासभा में सर्वसम्मति से इसे पूरी दुनिया के देशों में लागू करने का फैसला लिया। इसके बाद से ही प्रत्येक 9 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रुप में निर्धारित की गई।
9 अगस्त का दिन पुरी दुनिया के सभी आदिवासी समाज के लोगों को अपनी भाषा–संस्कृति व स्वशासन परम्परा के संरक्षण और विकास के साथ–साथ जल–जंगल–जमीन व खनिज के पारंपरिक अधिकार के लिए संकल्पबद्ध होने का दिवस है, क्योंकि भारत भी यूएनओ का सदस्य है।“ उसके बावजूद भी राज्य सरकार ने कल के महत्वपूर्ण दिन पर विशेष ध्यान देने की जहमत तक नहीं उठाई।
इसके विपरीत राज्य के करीब–करीब सारे विपक्षी दलों ने विश्व आदिवासी दिवस के महत्व को समझा और अपने – अपने ढंग से इसे सेलिब्रेट किया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता व नेता प्रतिपक्ष तो रांची की सड़कों पर उतर गये और खुशी से झूम गये, उनके साथ काफी संख्या में उनके कार्यकर्ता और आदिवासियों का भी हुजूम था।
यहीं नहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता अर्जुन मुंडा भी कल अपनी पत्नी मीरा मुंडा के साथ रांची की सड़कों पर उतरे, पर उनका यह कार्यक्रम निजी नजर आया, क्योंकि इनके इस कार्यक्रम में भाजपा का कोई बड़ा नेता नजर नहीं आया। कांग्रेस, आजसू, झाविमो तथा अन्य आदिवासी संगठनों ने भी जमकर विश्व आदिवासी दिवस मनाया, पर इनमें सरकार कही नहीं दिखी और न ही सरकार बहादुर दीखे।
जिसका मलाल राज्य के आदिवासियों के चेहरे पर नजर आया। सरकार से नाराज इन आदिवासियों का कहना था कि इस राज्य के मुख्यमंत्री से हम इससे बेहतर की कल्पना नहीं कर सकते, उन्हें राज्य के आदिवासियों का सिर्फ वोट चाहिए, उनकी खुशियों से उन्हें क्या मतलब? कई स्थानों पर वामसंगठनों ने भी विश्व आदिवासी दिवस पर जुलूस निकालकर अपनी खुशियां प्रकट की, तथा आदिवासियों के अधिकारों से संबंधित समस्याओं को जोर–शोर से उठाया।
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन का कहना था कि सदियों से आदिवासियों ने अपने खून–पसीने से इस धरती को सींचा है, यह आदिवासी समाज ही है, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ पहली आजादी की लड़ाई लड़ी। शोषकों को दांतों तले चने चबवाएं। संघर्ष कर झारखण्ड दिलवाया।
आज इसी संघर्षी समाज को शोषित करने की कोशिश की जा रही, उन्हें जंगल से बेदखल करने की साजिश की जा रही, उनके हक–अधिकार का हनन किया जा रहा है। आदिवासी समाज को बांटकर एक–दूसरे से लड़ाया जा रहा है। मगर आज के इन शोषितों को आदिवासी समाज कभी हावी नहीं होने देगा, फिर परास्त करेगा।