CM रघुवर के आगे तो PM मोदी भी कुछ नहीं, जनाब अब किसानों को आशीर्वाद भी देने लग गये
एक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देखिये जो 24 फरवरी 2019 को उत्तरप्रदेश में आयोजित कुम्भ मेले में सफाईकर्मियों के पांव पखारते हैं। जब वे एक बार छत्तीसगढ़ गये, तो वहां स्वच्छता के प्रति समर्पित वृद्ध महिला कुंवर बाई के पांव छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं और अपना सौभाग्य बताने से नहीं चूकते। जहां भी जाते हैं, वे गर्व से कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि प्रधान सेवक हैं, पर उन्ही की पार्टी का एक नेता, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को देखिये, आजकल अन्नदाताओं को आशीर्वाद देने में लग गये हैं।
वे इतने बढ़ गये कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चलाई जा रही प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तर्ज पर मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना चलवा देते हैं, यहीं नहीं जब इस योजना का उद्घाटन करवाते हैं तो भारत के उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू को बुलवाते हैं और जिस मंच पर भारत के उपराष्ट्रपति मौजूद हैं, उस मंच के बैक ड्राप में बड़े–बड़े अक्षरों में लिखा होता है “हो रहे हैं विकसित झारखंड के किसान…लेकर सरकार से आशीर्वाद और सम्मान…”
अब मैं आम जनता से पूछता हूं, साथ ही राज्य के बुद्धिजीवियों और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से, इस राज्य में लोकतंत्र हैं या राजतंत्र। अगर राजतंत्र हैं तो यहां का राजा अपने किसानों/अन्नदाताओं को आशीर्वाद दे रहा हैं तो चलेगा, पर जब लोकतंत्र हैं तो यहां के मुख्यमंत्री को आशीर्वाद देने का अधिकार किसने दे दिया? क्या भारतीय संविधान इस बात की इजाजत देता है कि यहां का मुख्यमंत्री अपनी जनता को आशीर्वाद दें, या कोई योजना चलाए तो उस योजना के लाभार्थियों को आशीर्वाद भी दें?
इस देश में एक प्रधानमंत्री हुए लाल बहादुर शास्त्री, जिन्होंने किसानों और जवानों के उत्साहवर्द्धन के लिए एक नारा दिया था –जय जवान, जय किसान। यह नारा भी बताता है कि लाल बहादुर शास्त्री जी ने किसानों को जय कहा, न कि उन्हें आशीर्वाद दिया। अरे मूर्खों, आप ये क्यों नहीं समझते कि अन्नदाताओं को आशीर्वाद दिया नहीं जाता, बल्कि उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है, क्योंकि वे अन्नदाता है, उनकी मेहनत से हमारा पोषण होता है, देश का पोषण होता है, आपकी हिम्मत कैसे हो गई कि आप उन्हें आशीर्वाद देने की सोच भी सकें।
वह कौन अधिकारी है? वह कौन व्यक्ति है? जो इस प्रकार के सलोगन लिखता है और सरकार से अन्नदाताओं को आशीर्वाद भी दिलवा देता हैं, क्या राज्य के मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री भगवान हो गये, जगद्गुरु शंकराचार्य हो गये, अब वे आशीर्वाद भी देने लगे? एक प्रधानमंत्री को देखिये, जो एक भी मौका नहीं छोड़ते देशवासियों से आशीर्वाद लेने का, और मुख्यमंत्री रघुवर दास को देखिये, वे आशीर्वाद देने में खुद को शान समझ रहे हैं, वे तो लिखकर, वह भी बड़े–बड़े अक्षरों में, इसे जता भी रहे हैं, कि अगर वे हैं तो किसान है, उनके द्वारा दिया जा रहा आशीर्वाद का मतलब तो यही होता है।
कमाल है, इस कार्यक्रम के समाचार को संकलन करने के लिए सभी अखबारों–चैनलों के संवाददाता मौजूद है, जो प्रशासन द्वारा मिले परिचय पत्र को मंगलसूत्र की तरह धारण कर लटकाकर गर्व महसूस कर रहे थे, पर इनकी इतनी भी हिम्मत नहीं कि वे मुख्यमंत्री से यह पूछ सकें कि क्या आप किसानों को आशीर्वाद देने की स्थिति में हैं? या इनकी इतनी भी हिम्मत नहीं कि वे इस मुद्दे को अपने चैनल या अखबार में उठा सकें, क्योंकि सभी रघुवरभक्ति में डूबे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ की बात मानें तो उनका कहना है कि हमारे यहां किसानों को अन्नदाता कहा जाता है, उनसे आशीर्वाद लेने की परम्परा है, न कि उन्हें आशीर्वाद देने की, पता नहीं लोग कैसे इस प्रकार की योजना का नामकरण कर देते हैं, और उसी प्रकार सलोगन भी लिख देते हैं, सच पूछिये तो इस मुद्दे को वहां के किसानों को उठाना चाहिए कि सरकार यह बताएं कि वह किसानों को सम्मान दे रही हैं या अपमान कर रही हैं? अच्छा होता इस प्रकार के कार्यक्रम से किसान खुद को दूर कर लेते।
पर ऐसा होगा यह लगता है कि संभव नहीं, क्योंकि अब तो लोगों को पता भी नहीं कि सामनेवाला उन्हें सम्मान दे रहा हैं या अपमान कर रहा हैं, क्योंकि देश की स्थिति ऐसी है कि अब लोग सम्मान और अपमान की परिभाषा भी भूल चूके हैं। हालांकि अभी भी मौका है, झारखण्ड के किसानों से जुड़े संगठनों को, यह मुद्दा सरकार और उनके प्रशासनिक अधिकारियों के बीच उठाना चाहिए कि वे किसानों को आशीर्वाद कैसे दे सकते हैं?