फिलहाल झारखण्ड BJP में कोई ऐसा नेता नहीं जो भाजपा को 20 सीटें भी अपने बलबूते दिला सकें
फिलहाल झारखण्ड में भाजपा का कोई ऐसा सिंगल पीस नेता नहीं, जो झारखण्ड में अकेले भाजपा को बहुमत दिला दें या वर्तमान में भाजपा के पास जो विधानसभा की सीटें हैं, उसमें से आधी सीटों पर भी भाजपा को जीत दिला दें। ले– देकर अंत में पीएम नरेन्द्र मोदी को ही झारखण्ड में पसीना बहाना होगा, उसके बाद भी भाजपा को विधानसभा में बहुमत मिल ही जाये, इसकी कोई संभावना दूर–दूर तक नहीं दिखती।
इधर भाजपा के स्थानीय नेता कुछ ज्यादा ही खुश है, उन्हें लग रहा है कि जो झारखण्ड में दूसरी पार्टियां हैं, और उन पार्टियों से टूटकर जो नेता या कार्यकर्ता उनके पास आ रहे हैं, उससे उनकी पार्टी पहले से कुछ ज्यादा मजबूत हुई है, जबकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जितने लोग भाजपा में आये हैं, ठीक उतने ही भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं और नेताओं ने दूरियां भी बनाई है, और वे भाजपा में ही रहकर भीतरघात कर, भाजपा को उसकी औकात बतायेंगे।
राजनीतिक पंडितों का ये भी कहना है कि झारखण्ड में चल रही रघुवर सरकार यहां की मीडिया को खरीदकर कितना भी अपना गुणगान क्यों न करा लें, पर सोशल साइट में रघुवर सरकार की जितनी किरकिरी हो रही हैं, उतनी किरकिरी आज तक किसी की नहीं हुई, उसका मूल कारण राज्य के मुख्यमंत्री का जनता को धोखे में रहना और झूठ बोलने में माहिर होना हैं।
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि किसी भी राज्य की जनता की तीन प्रमुख मांगे होती हैं, पहला बिजली, दूसरा सड़क और तीसरा पानी, और इन तीनों में ये सरकार पूरी तरह फेल हैं। बिजली को लेकर तो रघुवर सरकार ने दो–दो बार जनता को गुमराह किया। एक बार यह कहकर कि अगर दिसम्बर 2018 तक 24 घंटे बिजली नहीं दे पायें तो वोट मांगने नहीं आयेंगे और दूसरी बार जब उन्होंने रांची की जनता को इस साल एक अगस्त से जीरो कट बिजली का भरोसा दिलाया और दोनों झूठ ही साबित हुए।
राज्य की जनता का कहना है कि जब राज्य का मुख्यमंत्री जब झूठ बोले तो लोग विश्वास किस पर करें। राशन की स्थिति ऐसी है कि लोगों को इंटरनेट सुविधा नहीं मिलने पर राशन तक नहीं मिल रही। हाल ही में राजधानी रांची के ही एक इलाके में एक किसान ने अपने ही कूएं में डूब कर आत्महत्या कर ली। स्थिति ऐसी है कि भूख से मौत, किसानों द्वारा आत्महत्या, हर कार्य में भ्रष्टाचार की यहां ऐसी नींव पड़ चुकी हैं कि लोग परेशान हैं।
राज्य के आदिवासी और मूलनिवासी को नौकरी नहीं मिल रही और बाहरियों को आराम से नौकरी दे दी जा रही हैं, यहीं नहीं सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं पर बड़े–बड़े व्यापारियों ने कब्जा जमा लिया हैं और इसका जमकर दोहन कर रहे हैं। सीएनटी–एसपीटी और जल–जंगल–जमीन के मुद्दे पर तो यहां के आदिवासी–मूलनिवासी रघुवर सरकार को देखना पसन्द नहीं करते।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो जो लोग यह समझ रहे कि भाजपा की स्थिति यहां मजबूत है, वो शायद दिवास्वप्न देख रहे, उन्हें नहीं पता कि लोकसभा चुनाव में लोगों ने देश और मोदी को देखकर वोट किया था, और इस बार विधानसभा का चुनाव रघुवर के रिपोर्ट कार्ड पर होगा। जो भाजपा के छुटभैये नेता ये समझ रहे है कि बाबू लाल मरांडी की पार्टी समाप्त हो गई, कांग्रेस में विद्रोह चल रहा हैं, झामुमो एक खास इलाके में मजबूत हैं, उसका और कही जनाधार नहीं हैं, तो उन्हें इस खुशफहमी में रहने का पुरा अधिकार हैं।
लेकिन जिस दिन झामुमो–कांग्रेस–राजद–झाविमो और वामदल मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ गये, जिसकी संभावना ज्यादा दिख रही हैं, उस दिन भाजपा को लेने के देने पड़ जायेंगे, क्योंकि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के अंदर वो एकता नहीं बन पाई थी, जिसकी जरुरत थी, लेकिन अब लगता है कि सभी को समझ में आ गया है कि भाजपा को चुनौती देना हैं तो एक होना ही पड़ेगा, झारखण्ड से रघुवर सरकार की विदाई करना हैं तो एक होना ही पड़ेगा।
इधर भाजपा के नेता अभी से ही कोर कमेटी की बैठक करने में लग गये हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि इस बार वे कुछ भी कर लें, झारखण्ड में जीत उतनी आसान नहीं जितना वे समझ रहे हैं, क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा की ऐसी मिट्टी पलीद कर दी हैं कि भाजपा के वोटर तो दूर कार्यकर्ता तक रघुवर दास को पसन्द नहीं कर रहे, उनकी मांग है कि सिर्फ मोदी ही झारखण्ड मे कुछ कर सकते है, न कि रघुवर, उस पर भी कोई गारंटी नहीं कि पुनः भाजपा सरकार सत्ता में आ ही जाये।