झारखण्ड पुलिस खुद उड़ा रही ट्रैफिक नियमों की धज्जियां और जनता की काट रही चालान, नागरिकों में भड़का आक्रोश
पूरे राज्य में ट्रैफिक के नये जुर्माने से तंग लोगों का आक्रोश अब धीरे–धीरे विभिन्न स्थानों पर दिखने लगा है, लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर हैं, कि जिन लोगों पर दारोमदार है ट्रैफिक जुर्माने वसूलने का, जब वे ही ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, तो वे किस आधार पर जनता के खिलाफ चालान काट रहे हैं। कुछ लोगों ने तो इसे ट्रैफिक आतंकवाद की भी संज्ञा दे डाली है।
आज रांची अलबर्ट एक्का चौक पर ऐसा ही वाकया देखने को मिला, जब चालान काटे जाने से गुस्साए लोगों ने पुलिस की ही पीसीआर वाहन को तब रोक लिया, जब उसमें सवार पुलिसकर्मियों का दल बगैर सीट–बेल्ट लगाये दिख गये। करीब 250 की संख्या में गुस्साएं लोगों ने पीसीआर वैन का चालान काटने की मांग कर डाली, साथ ही जूर्माना वसूलने का जोर डालने लगे, जिससे पीसीआर पुलिसकर्मियों तथा वहां तैनात अन्य ट्रैफिक पुलिस की बोलती ही बंद हो गई।
दूसरी घटना रांची जगन्नाथपुर थाने के भुसरु टीओपी के है जहां का पदाधिकारी बिना वर्दी के ही रोब जमाने लगा तथा उधर से गुजरनेवाले राहगीरों की गाड़ी को रोकवा चाबी छिन कर चालान काटने की बात करने लगा, जब उक्त बिना वर्दी के ही कार्यरत पुलिस पदाधिकारी को लोगों ने जब बिना हेलमेट के ही उसे गाड़ी चलाते देखा तो वहां खड़े अन्य वाहनचालकों ने भी उसकी हालत पस्त करनी शुरु कर दी, अंत में उक्त पुलिस पदाधिकारी को भीड़ के आगे झूकना पड़ा और वहां से वह भाग खड़ा हुआ। इसका विडियो सोशल साइट पर खूब वायरल हो रहा है।
अब सवाल उठता है कि जो खुद गलत हैं, जो खुद ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं करते, वे दूसरे का चालान काटे, यह जनता कैसे बर्दाश्त करेगी? क्या ये ट्रैफिक के नियम पुलिसकर्मियों पर लागू नहीं होते, क्या उनके लिए चालान काटने का प्रावधान नहीं है और अगर ऐसा प्रावधान नहीं हैं तो यह किस कानून की किताब में लिखा है?
इधर ट्रैफिक जूर्माने पर हुई बेतहाशा बढ़ोत्तरी को लेकर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मिस्टर नितिन गडकरी को शायद नहीं मालूम कि डोर उतनी ही खींचनी चाहिए, जितनी डोर बर्दाश्त कर सकें, नहीं तो ज्यादा खींचने से डोर के टूटने का खतरा बना रहता है। राजनीतिक पंडितों को यह भी कहना है कि शायद नितिन गडकरी भूल रहे है कि इस देश में सारे के सारे वाहनचालक मुकेश अंबानी या नितिन गडकरी की तरह नहीं हैं, ज्यादातर फकीरचंद भी हैं, जो दस गुणा या अवांछित जुर्माना देने का सामर्थ्य नहीं रखते।
राजनीतिक पंडितों का ये भी कहना है कि अगर बच्चे गलतियां करते है, तो उनके मां–बाप उन्हें सूलियों पर नहीं चढ़ा देते, इसलिए अगर किसी ने ट्रैफिक नियम तोड़ा तो आप उसे आर्थिक रुप से इतना भी चोट नहीं पहुंचा सकते कि उसका भविष्य ही खतरे में पड़ जाये। फिलहाल नये ट्रैफिक जुर्माने से पुलिस पदाधिकारियों/कर्मचारियों में गजब का उत्साह है।
उन्हें लग रहा है कि उन्हें बैठे–बैठाये एक शानदार हथियार मिल गया, यानी जिसे चाहो उसे पकड़ो और कुछ न कुछ उसमें गड़बड़ मिलेगा ही, उसके बाद उसे जैसे पाओ, वैसे नचा दो, अगर ये मनोवृत्ति फैल गई तो जनता के आक्रोश को रोक पाना फिलहाल संभव नहीं, रांची के अलबर्ट एक्का चौक और धुर्वा की आज की घटना बताने के लिए काफी हैं कि लक्षण ठीक नहीं दिख रहे।