राजनीति

CM रघुवर अपने गलत निर्णयों और आदेशों को तत्काल रद्द करें और आम जनता से क्षमा मांगे – JMM

केन्द्र सरकार द्वारा नये ट्रैफिक नियम के तहत वसूले जा रहे जुर्माने को राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा तीन माह न वसूले जाने की परिवहन विभाग को दिये गए निर्देश सरकार के संवैधानिक निर्णय पर सवाल खड़ा करते हैं। चुनाव को देखते हुए रघुवर सरकार ने जनाक्रोश के समक्ष समर्पण करने का कार्य किया है। ये कहना है राज्य की दूसरी प्रमुख पार्टी एवं सत्ता की प्रबल दावेदार पार्टी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का।

पार्टी का कहना है कि महाराष्ट्र से लोकसभा सांसद तथा केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के भाजपा शासित गृह प्रदेश महाराष्ट्र ने परिवहन विभाग के इस आदेश को सिरे से ही खारिज कर दिया। गृह मंत्री अमित शाह के भाजपा शासित गृह राज्य गुजरात ने इसमें आमूल-चूल संशोधन तक कर डाला। तो ऐसे में भाजपा शासित राज्य किस मजबूरी के तहत इस बढ़े हुए तुगलकी फरमान को जारी रखने पर आमदा है।

मुख्यमंत्री राजनैतिक धूर्तबाजी कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि वर्तमान नियम के तहत यदि केन्द्रीय फरमान जारी रखा जाये तो उनका आसन्न चुनाव में सुपड़ा साफ हो जायेगा। राज्य की जनता मुख्यमंत्री के इस धोखेबाजी को पूरी तरह समझती है। वर्तमान मुख्यमंत्री जिनका यह अंतिम कार्यकाल है, अब अपनी संभावित पराजय को देखते हुए इस तरह के निर्णय ले रहे हैं। राज्य सरकार को स्पष्ट करना पड़ेगा कि राज्य में कानून का राज्य रहेगा या अपने राजनैतिक सुविधानुसार नियमों को परिभाषित किया जायेगा।

राज्य के 88000 आंगनवाड़ी सेविका,सहायिका तथा पोषक सखी आज भिक्षाटन कर रहे हैं, 67000 पारा शिक्षक दाने-दाने को मोहताज है। दो लाख राज्य कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है, मनरेगा में काम करनेवाले मजदूरों को 123 करोड़ 30 लाख रुपये बकाया है, आपूर्तिकर्ताओं का एक हजार दो सौ करोड़ रुपये बकाया है। राज्य सरकार के 2019-20 का वार्षिक बजट 85 हजार 429 करोड़ रुपये है, जहां अब तक 85234 करोड़ रुपये केवल कर्ज के रुप में राज्य सरकार को देय है।

वही राज्य सरकार अपनी विलासिता के लिए रोज नये-नये सरकारी आयोजन कर रही है एवं उसके लिए जबरन ट्रैफिक टैक्स लगाकर उनसे पैसे की उगाही की जा रही है। देश के प्रतिष्ठित पब्लिक अफेयर्स सेन्टर बेंगलूरु द्वारा गुड गवर्नेंस के मुद्दे पर निकाली गई पब्लिक अफेयर्स इण्डेक्स 2018 के अनुसार झारखण्ड 30 राज्यों में से 28वें स्थान पर है। झारखण्ड से नीचे केवल मेघालय और बिहार जैसे राज्य है, वहीं झारखण्ड से उपर 27वें स्थान पर मणिपुर है। नेशनल कौंसिल फोर अप्लायड एंड इकोनोमिक रिसर्च के राज्य निवेश संभावित सूचकांक 2018 के अनुसार झारखण्ड 21 राज्यों में 20 वें स्थान पर है, जबकि 2017 में यह 19 वें स्थान पर था। 

राज्य के उद्योग विभाग के सौ करोड़ रुपये के बीपीएल कंबल घोटाला, लाखों करोड़ रुपये के मोमेंटम झारखण्ड घोटाला, करोड़ों रुपये के मेगा फूड पार्क घोटाला, नगर विकास विभाग के हजार करोड़ से भी ज्यादा स्मार्ट सिटी घोटाला, 600 करोड़ के सिवरेज-ड्रेनेज घोटाला, दस करोड़ से ज्यादा के डस्टबिन घोटाला, लगभग 100 करोड़ रुपये के हरमू नदी सौन्दर्यीकरण घोटाला, बिजली विभाग के अडानी पावर प्रोजेक्ट के नियमों के साथ छेड़छाड़ कर 7400 करोड़ रुपये के राजस्व घोटाला हो गया।

यही नहीं विद्युत निगम के टीडीएस घोटाला, महिला बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा के 110 करोड़ रुपये के मिड डे मिल घोटाला, 43 करोड़ रुपये के पोषाहार घोटाला, उच्च शिक्षा एवं कौशल विकास घोटाला, शौचालय निर्माण घोटाला, डोभा निर्माण घोटाला, मनरेगा घोटाला, मुख्यमंत्री स्मार्ट ग्राम के साढ़े चार करोड़ रुपये का घोटाला, कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के 20 करोड़ रुपये के कॉपरेटिव बैंक घोटाला, विभिन्न विभागों के एस्टीमेट एवं टेंडर घोटाला जिसमें अपने प्रिय पात्रों एवं सहयोगियों को प्रत्यक्ष रुप से लाभ पहुंचाने का काम किया गया।

शिक्षा का अधिकार कानून का उल्लंघन करते हुए 5800 बेसिक तथा प्राइमरी स्कूलों का विलय कर दिया गया, जिसमें 65000 बच्चे प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित हुए तथा सरकार के उदासीनता के कारण आज भी 2 लाख 60 हजार बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। सरकार के द्वारा स्कूलों को बंद करते हुए मुहल्लों-टोलों में शराब की धड़ल्ले से बिक्री की जा रही है और यहां तक की शराब की दुकानें, धर्मस्थान, महाविद्यालय, उच्च विद्यालय के समक्ष ही खोले जा रहे हैं।

जे-टेट पास शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई और पूरे पांच साल में एक भी जेपीएससी परीक्षाएं नहीं ली गई। प्लस 2 शिक्षक की नियुक्ति में अनारक्षित कोटे में 75 प्रतिशत से भी ज्यादा बाहरी राज्यों के लोगों की नियुक्ति की गई, वही विगत पांच वर्षों से झारखण्ड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा एक भी पारदर्शी नियुक्ति नहीं हुई। देश के सर्वाधिक कुपोषित पांच जिले झारखण्ड राज्य के ही हैं।

मुख्यमंत्री, भाजपा के केन्द्रीय नेताओं के चेहरे चमकाने के लिए विगत पांच वर्षों में लगभग 400 करोड़ रुपये के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रचार-प्रसार में खर्च किये गये, लेकिन राज्य की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। कार्यकाल के अंतिम दौर में माननीय मुख्यमंत्री को आम जनता से क्षमा-याचना करनी चाहिए एवं केन्द्र तथा राज्य सरकार के जनविरोधी निर्णयों एवं आदेशों को तत्काल रद्द कर देनी चाहिए।