रघुवर सरकार पत्रकारों को 15-15 हजार में खरीदने को तैयार और पत्रकार जमीर बेचने को तैयार
जो पत्रकार इस सरकारी प्रलोभनों में आकर कलम/बूम का दुरुपयोग करेगा, वह खुद समझ लें कि उसे क्या कहना उचित होगा? राज्य सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने पत्रकारों के आगे पन्द्रह-पन्द्रह हजार रुपये का टूकड़ा फेंका है। इस विभाग ने उन पत्रकारों से आवेदन आमंत्रित किया है, जो झारखण्ड सरकार द्वारा चलाये जा रहे लाभप्रदत्त योजनाओं में रुचि रखते हैं। यह आवेदन उन्हें आज ही 3 बजे तक विभाग में जमा करना था। 17 सितम्बर को इन आवेदनों के आने के बाद प्राप्त प्रस्तावों का चयन विभाग द्वारा गठित समिति द्वारा कर लिया जायेगा।
विज्ञापन में कहा गया है कि प्राप्त आवेदनों में से 30 पत्रकारों का चयन विभाग द्वारा गठित समिति करेगी। समिति की अनुशंसा पर इनके द्वारा लिखित आलेखों के प्रकाशनों के उपरांत पन्द्रह-पन्द्रह हजार रुपये थमाये जायेंगे। इस विज्ञापन में कहा गया है कि उनके द्वारा सरकार द्वारा की गई विकास योजनाओं पर लिखित आलेख उनके अखबारों में प्रकाशित होने के बाद 18 अक्टूबर तक समर्पित करना होगा।
विभाग ने इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े लोगों का भी ख्याल रखा हैं, उन्हें प्रसारित अपनी कटिंग डीवीडी के माध्यम से विभाग को सौंपनी होगी। विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि विभाग द्वारा विमोचित पुस्तिका में प्रकाशन हेतु 25 आलेखों के पत्रकारों को पांच-पांच हजार रुपये अलग से सम्मान स्वरुप दिये जायेंगे।
अब सवाल उठता है कि आखिर राज्य सरकार कहां तक गिरेगी? कितना गिरेगी? और कितनों के जमीरों से खेलेगी? अरे पहले झारखण्ड के अखबारों के संपादकीय पेजों को मुंहमांगी रकम देकर खरीद लिया। चैनलों को कॉनक्लेव देकर खरीद लिया। अखबारों में काम करनेवाले संपादकों और उनके मालिकों को मुंहमांगी रकम देकर, उनके यहां काम करनेवाले संवाददाताओं को विभिन्न शहरों में भेजकर, उनसे अपने पक्ष में रिपोर्टिंग करवाई और अब पन्द्रह-पन्द्रह हजार रुपये देकर उनसे अपनी आरती उतारने का यह विज्ञापन निकालना यानी अंत-अंत तक पत्रकारों के जमीर खरीदने की कोशिश।
आखिर इतना सुंदर दिमाग देता कौन है? अरे भाई तुम सबको खरीद लोगे, सब को… ये कैसी सोच हैं? क्या यहां के सारे के सारे अखबार और चैनल तथा उसमें काम करनेवाले लोग बिकने को तैयार है, क्या गठित समिति के लोग ऐसे समितियों के द्वारा उन बिकनेवाले लोगों की सूची जारी करेंगे, और उनसे कहेंगे कि आप सरकार की आरती उतारो, अरे कुछ तो शर्म करो।
शर्म तो सरकार को आनी चाहिए, शर्म तो गठित समिति में शामिल लोगों को भी आना चाहिए और शर्म तो उन्हें भी आना चाहिए, जिन्होंने मात्र पन्द्रह-बीस हजार के लिए अपना जमीर बेचने को तैयार हो गये, क्या ऐसे लोग पत्रकार कहलाने लायक हैं, वे खुद अपनी अंतरात्मा से पूछे। अरे सरकार खरीदने को तैयार हैं तो तुम बिकने को क्यों तैयार हो?