वाह री सरकार, पहले पेड न्यूज, फिर पत्रकारों को 15-15 हजार की लालच और अब ब्रेन वॉश की तैयारी
पहले अखबारों के संपादकीय पेजों को पेड न्यूज से भरकर, संपादकों और मालिकों को रघुवर– रघुवर भजने पर मजबूर किया। दूसरी ओर राष्ट्रीय/क्षेत्रीय चैनलों के आधे घंटे का स्लॉट खरीद कर अपनी जय–जयकार करवाई। इसके बाद इन अखबारों/चैनलों को कानक्लेव के बहाने जमकर इनके मालिकों/स्थानीय संपादकों/ ब्यूरो प्रमुखों पर पानी की तरह पैसे बहाए।
उसके बाद इन अखबारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में कार्यरत छोटे–मंझौले पत्रकारों को पन्द्रह–पन्द्रह हजार का लालच दिखा एवं पांच हजार रुपये अलग से देने का विज्ञापन निकलवाकर, अपने आगे झूकवाया और अब कार्यशाला आयोजित कर, पूरे मीडिया के लोगों का ब्रेन वॉश करने के लिए, अपनी ताकत का ऐहसास कराते हुए रघुवर सरकार की जी–हूजुरी करने का बीजमंत्र, खुद पत्रकारों द्वारा ही पत्रकारों को दिलवा दिया।
आश्चर्य है कि इन थोथे कारनामों में खुद को विशिष्ट अतिथि कहलाने का गौरव बोध भी इन पत्रकारों को करवाया और कुछ लोग उनके इस कार्य की जय–जय भी करने लगे, यानी हमारा समाज आज इतना गिर चुका है कि अब उसे यह भी समझ नहीं आ रहा है कि जिसकी वह तारीफ कर रहा हैं, वह प्रशंसा के योग्य है या अपमान के योग्य। शायद यहीं कारण है कि हमारे ऋषियों–महर्षियों ने कलियुग के बारे में जो पूर्व में लिखा, वह आज अक्षरशः सत्य हो रहा है। फिल्म गोपी में तो गीतकार ने ऐसे ही नहीं लिख दिया – जो होगा भोगी और लोभी, वो योगी कहलायेगा, हंस चुगेगा, दाना–तुनका कौवा मोती खायेगा।
जरा देखिये पिछले दिनों 26 सितम्बर को पूर्वाह्न 11 बजे, पलामू के आयुक्त कार्यालय में एक प्रमंडलस्तरीय कार्यशाला आयोजित हो रही है। उस कार्यशाला का विषय है – विकासात्मक पत्रकारिता एवं सकारात्मक रिपोर्टिंग। आयोजक है – प्रमंडलीय सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, पलामू। जो पत्रकार इस कार्यशाला में बतौर विशिष्ट अतिथि बने हैं, इनमें से कुछ गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं, जबकि कुछ को इस कार्यक्रम पर ही विवाद है, और ऐसे लोग इसका प्रतिकार करते हुए, आमंत्रण मिलने के बावजूद भी जाने से इनकार करते हैं।
राज्य सरकार और उनके आइपीआरडी के अधिकारियों ने रघुवर सरकार की जय–जय कराने के लिए निचले स्तर तक के पत्रकारों का ब्रेन वॉश कराने हेतु बड़ा ही खुबसूरत दुष्चक्र रचा है और पत्रकार आराम से जान–बूझकर इसमें फंस रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उन्हें आनेवाले भविष्य में फायदा होगा, जब फिर से राज्य में रघुवर सरकार होगी।
विद्रोही24.कॉम ने इस संबंध में जब पलामू के ही एक वरिष्ठ पत्रकार फयाज अहमद से बातचीत की, तब उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से संबंधित व्हाट्सएप मैसेज यहां के संजीव कुजूर, उपनिदेशक, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने भेजा था, जिसमें उन्हें और उनके साथ सतीश सुमन, राणा अरुण सिंह और नीलकमल को बतौर विशिष्ट अतिथि निमंत्रण दिया गया था। जब व्हाटसऐप मैसेज में फयाज अहमद ने पूछा कि यह कितने देर का प्रोग्राम है और इसमें श्रोता कौन होंगे?
तब संजीव कुजूर ने कार्यक्रम की अवधि बताई पर श्रोता कौन होंगे, इसके उत्तर के बदले, श्रोताओं की संख्या बता दी, जिस पर फयाज अहमद ने व्हाट्सएप मैसेज में साफ कह दिया कि सॉरी आइ एम नॉट कमिंग, रिगार्ड्स। कमाल है, जब सर पर विधानसभा के चुनाव लटक रहे हैं, तब ऐसे हालत में सकारात्मक एवं विकासात्मक रिपोर्टिंग पर कार्यशाला आयोजित करना, तथा वहीं के पत्रकारों को विशिष्ट अतिथि बुलाकर, वहीं के अन्य पत्रकारों का सरकार के हित में कार्य कराने के लिए उनका ब्रेन वॉश करना क्या ये लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र नाथ कहते हैं कि इस प्रकार का आयोजन अगर प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया या एडिटर्स गिल्ड या पत्रकारों के लिए कार्य कर रही कोई निजी संस्था आयोजित करती तो समझ में आता, पर राज्य सरकार द्वारा वह भी चुनाव के समय ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना सरकार की सोच पर अंगूलियां उठाने को विवश कर रहा है, आखिर विकासात्मक व सकारात्मक से उनका क्या आशय है? क्या जनता नहीं जानती या वे पत्रकार नहीं जानते, जो इस प्रकार के ब्रेन वॉश वाले कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं, या शामिल होंगे।
चूंकि येन–केन–प्रकारेन पत्रकारों को अपने कब्जे में लेना है, और अपनी जय–जयकार करवानी हैं तो बात ही अलग है, पर ये राज्य के लिए और राज्य के पत्रकारों के लिए भी ठीक नहीं। जो सही मायनों में पत्रकार है, वे अच्छी रिपोर्टिंग करते ही हैं, और जहां उन्हें अच्छा लगता है, या बेहतर कार्य होते देखते है, उसकी रिपोर्टिंग वे करते ही हैं, पर हरदम केवल सरकार की जय–जय होते रहे, कोई उन्हें आइना न दिखाये, सही चीज सरकार के समक्ष नहीं रखे, अगर ये सोच किसी में जन्म ले चुका है, तो भला हम जैसे पत्रकार कहां तक उसे सच कहेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार इंद्रजीत सिंह कहते है कि हर सरकार अपनी जय–जयकार करवाती है और उसके लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाती है, इसमें उन्हें गलत नहीं लगता, हां जो सत्यनिष्ठ पत्रकार हैं, वे सही और गलत का निर्णय खुद कर ही लेते हैं, उन्हें इस प्रकार के कार्यशाला ज्यादा प्रभावित भी नहीं कर पाते, क्योंकि वे पत्रकारिता के भैल्यू को खुब समझते हैं।