मां का दरबार और उद्घाटन करेंगे नेता-अधिकारी, जो मां के भक्तों का सुख-चैन ही लूट लेते हैं
कमाल है दुर्गा पूजा उत्सव चरम पर हैं, और मस्त हैं वे नेता व अधिकारी जो इस दुर्गा पूजा में भी स्वयं को भगवान को चुनौती देने से बाज नहीं आये, कहने को तो वे यह भी कह सकते हैं कि वे करें तो क्या करें, हम थोड़े ही खुद जाते हैं, पंडालों का उद्घाटन करने। अरे हमें पूजा समितियां बुलाती हैं, तो चले जाते हैं। बात भी सही हैं, पर यहीं समितियां अगर इन्हें कूएं में कूदने के लिए कहेंगी तो क्या ये कूएं में कूद जायेंगे, नहीं न। उस वक्त तो अपना दिमाग लगायेंगे और जो उनको शूट करेगा, वहीं करेंगे।
आमतौर पर देखा जाये, तो जो मां का भक्त हैं, जो सही मायनों में पूजा पद्धति को जानता हैं, वो यह जानता है कि उस महाशक्ति को ये सब तनिक अच्छा नहीं लगता, वह कभी ऐसे लोगों को भाव नहीं देता, वो तो माता के श्रीचरणों में ही अपनी भक्ति लूटाकर, मां से ही पंडाल के उद्घाटन का अनुमति लेता हैं और मुस्कुराते हुए मां का ही ध्यान करते हुए महाशक्ति के दरबार अथवा पंडाल को सर्वजन के लिए खोल देता हैं, पूजा पद्धति भी यहीं हैं, धर्म भी यही कहता हैं।
ऐसे भी कहा जाता है कि जिसका जो काम हैं, वहीं साजे, पर हमारे राज्य में इसका ठीक उलटा प्रचलन हैं, जिनका काम हैं दुर्गापूजा महोत्सव में आम जन को आनन्द प्रदान करना, उन्हें सुविधा प्रदान करना, वे खुद सुविधा लेने में ज्यादा दिमाग लगाते हैं, पूजा समितियों से अपनी आवभगत कराते हैं, और पूजा समितियां भी उन्हें इस प्रकार ट्रीट करती हैं, जैसे लगता हैं कि उनके पंडाल में भगवान का आगमन हो गया, और इसी में महाशक्ति की पूजा पूर्णतः गौण हो जाती हैं, और भ्रष्ट नेता व अधिकारी महान सिद्ध हो जाते हैं। जहां इस प्रकार की सोच कार्य करती हो, वहां न महाशक्ति होती हैं, और न ही पूजा पद्धति। ऐसी जगहों पर मां स्वयं नहीं होती, क्योंकि वो जानती है कि यह समिति, केवल मिट्टी की प्रतिमा को ही सर्वस्व समझ, नेताओं–अधिकारियों में ही भगवान को ढूंढ रहा हैं।
एक बड़ी ही धर्मनिष्ठा महिला प्रसन्ना देवी जो इस दुनिया में नहीं हैं, वो बराबर कहा करती थी, मां के दरबार में अगर स्व दिख गया तो फिर वहां भक्ति कहां? और जहां भक्ति नहीं, वहां सब व्यर्थ? मां के पंडाल या दरबार का उद्घाटन किसी नेता या अधिकारी से कराना साक्षात महाशक्ति का अपमान है, और जो नेता या अधिकारी इसमें भाग लेता हैं, उसे कभी मां क्षमा भी नहीं करती, उसे दंड देती हैं, उसे दंड प्राप्त भी होता हैं, पर माया–मोह और अत्यधिक पापकर्म में निवृत्त रहने के कारण उसे पता भी नहीं चलता कि जो उसे दुख या कष्ट प्राप्त हुआ, उसका कारण क्या है?
सच्चिदानन्द कहते हैं कि जिस नेता या अधिकारी ने अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन नहीं किया हो, जो हमेशा सामान्य जन के लिए बनी योजनाओं में कमीशन खाता हो, जिसके कारण देश व राज्य का हमेशा अहित होता हो, जो हमेशा सत्यनिष्ठों का जीना दूभर कर देता हो, अगर वो मां के दरबार के पंडाल का उद्घाटन करेगा, तो समझ लीजिये वो मां का कोपभाजन ही बनेगा, क्योंकि उसने अपने कर्म के प्रति निष्ठा नहीं रखी और जो कर्म के प्रति निष्ठा नहीं रखा, उसे मां कभी माफ नहीं करती, चाहे वह कितना भी ढोंग क्यों न कर लें। ऐसे भी न तो पूजा समितियां ही अब पूजा करती हैं, और न ही मां उन पंडालों में निवास करती हैं, जहां भ्रष्ट नेता व भ्रष्ट अधिकारी पंडालों का उद्घाटन करते हो, तो अब वहां पूजा किसकी हो रही हैं, समझते रहिये।