रांची के मोराबादी मैदान में रावण ने दिखाई ताकत, CM रघुवर बनने चले वीर, नहीं चला तीर
आज विजयादशमी के अवसर पर रांची के मोराबादी मैदान में हमेशा की तरह पंजाबी हिन्दू बिरादरी ने रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के वध एवं पुतला दहन का कार्यक्रम आयोजित किया था। जिसमें भाग लेने के लिए राज्य के अब तक के सबसे ज्यादा होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास भी मौजूद थे, उनके साथ राज्य के होनहार नगर विकास मंत्री सी पी सिंह एवं सांसद संजय सेठ भी मौजूद थे।
नगर विकास मंत्री सी पी सिंह मेघनाद, रांची के सांसद संजय सेठ कुम्भकर्ण और मुख्यमंत्री रघुवर दास रावण पर तीर छोड़ने और उन्हें भस्मीभूत करने के लिए पहुंचे थे, सी पी सिंह ने मेघनाद पर प्रतीकात्मक रुप से तीर छोड़ा, संजय सेठ ने कुम्भकर्ण पर प्रतीकात्मक तीर छोड़ा, पर जैसे ही मुख्यमंत्री रघुवर दास का रावण पर प्रतीकात्मक तीर छोड़ने की बारी आई, रघुवर दास तीर छोड़ पाने में असमर्थ दीखे और उनका तीर छूटने के पहले जमीन पकड़ लिया, यानी उनके हाथ से छूट गया और उस जमीन पर गिरे तीर को किसी और ने उठा लिया और फिर रावण के पुतले में आग लगाने के लिए पहले से ही तैनात व्यक्ति को मंच से आदेश दिया गया कि वह पुतले में आग लगा दें।
जो मंच का संचालन कर रहा था, जिसे माइक मिली हुई थी, मंच का संचालन करने के लिए, उसकी भाषा न तो मधुर थी और न ही मंच संचालन के लायक, वह मंचस्थ लोगों के लिए बेहतर भाषा का प्रयोग कर रहा था, पर मंच के नीचे आतिशबाजी या पुतला दहन में लगे लोगों के लिए लाठी मार भाषा का प्रयोग कर रहा था, जबकि सार्वजनिक कार्यक्रमों में इस प्रकार की भाषा का प्रयोग नहीं होता, बल्कि मंच के नीचे हो या मंचस्थ हो, सभी को सम्मान देना आवश्यक होता है।
जरा देखिये मंच संचालक , पुतला दहन में लगे लोगों को क्या कह रहा हैं? वो कहता है – मेघनाद का पुतला दहन करो, आकाशीय आतिशबाजी शुरु करो, जैसे लग रहा था कि पुतला दहन करनेवाला या उस कार्यक्रम में शामिल व्यक्ति उसके घर का नौकर हो, ऐसे भी अगर वह घर का नौकर भी है तो सार्वजनिक कार्यक्रम में उसका एक अलग सम्मान है, शायद पंजाबी हिन्दू बिरादरी के लोगों को यह मालूम नहीं है कि अपने से छोटे को कैसे सम्मान दिया जाता है?
खैर बात आई और गई, लेकिन आज का रावण दहन में शामिल रावण, संकेत दे दिया कि वह राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के हाथों नहीं जलना चाहता। राजनीतिक पंडितों की मानें तो रावण ने संदेश दे दिया कि वह आज भी उन राजनीतिज्ञों से कही बेहतर हैं, जो महिलाओं का सम्मान नहीं करते, जो महिला के साथ अत्याचार करनेवाले लोगों को पार्टी में मिलाते हैं, उनका समर्थन करते हैं।
राजनीतिक पंडित तो साफ कहते है कि रावण ने सीता का हरण किया पर वह अपने रनिवास में नहीं बल्कि अशोक वाटिका में रखा, उसने सीता की सेवा और रक्षा में महिलाओं को लगाया, और उसमें भी कुशल रक्षिणी त्रिजटा को रखा, पर आज के नेताओं को देखिये, चले आते हैं, रावण दहन करने और खुद शशिभूषण मेहता जैसे लोग, जिस पर एक महिला की हत्या का आरोप है, ढुलू महतो जिस पर यौन शोषण का आरोप हैं, ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं, ऐसे में रावण खुद आकर तो ऐसे लोगों से तीर-धनुष छीनेगा नहीं, वो तो अपने करिश्माई से वह काम कर बैठेगा, जो सब को आश्चर्यचकित कर देगा, जैसा कि आज रांची के मोराबादी मैदान में हुआ, रघुवर बनने चले थे राम जैसा वीर, और नहीं छुटा तीर।
रावण नाम बीर बरी बंडा।।