अपराध एक, सजा दो, JMM के अमित को दो साल, पर BJP के ढुलू डेढ़ साल में निबट गये, MLA बने रहेंगे
31 जनवरी 2018 – कोयला तस्करी के आरोप में गोमिया के झामुमो विधायक योगेन्द्र महतो को अदालत तीन साल की सजा सुनाती है और इस प्रकार उनकी विधानसभा की सदस्यता खत्म कर दी जाती है और वे अगले दस साल के लिए चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं रहते।
23 मार्च 2018 – सोनाहातु के तत्कालीन सीओ आलोक कुमार के साथ मारपीट करने के मामले में झामुमो विधायक अमित महतो को अदालत दो साल की सजा सुनाती हैं और इस प्रकार उनकी विधायकी समाप्त कर दी जाती हैं, साथ ही वे अगले दस साल के लिए चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं रहते।
23 जून 2015 को डा. के के सिन्हा से मारपीट करने व रंगदारी मांगने के आरोप में आजसू विधायक कमल किशोर भगत को सात साल की सजा सुनाई गई और इस प्रकार इनकी भी विधायकी चली गई और वे भी दस साल तक चुनाव अब नहीं लड़ सकते। यानी झारखण्ड में अब तक ये तीन विधायक ही हैं, जिन्हें सजा मिली और विधायकी चली गई और ये सभी भाजपा छोड़कर दूसरे दलों से आते हैं।
लोगों में चर्चा का विषय, अपराध एक तो सजा का प्रावधान भी एक हो, एक को दो साल और एक को डेढ़ साल की सजा क्यों?
कमल किशोर भगत और योगेन्द्र महतो को अगर दरकिनार कर दें, तो झामुमो के अमित महतो का जो मामला हैं, वो भाजपा के बाघमारा विधायक एवं सीएम रघुवर के चहेते ढुलू महतो से पूरी तरह मेल खाता हैं, दोनों पर आरोप समान हैं और धाराएं भी एक, पर आज जो ढुलू महतो को सजा सुनाई गई, उस सजा में अंतर था, ढुलू महतो को मात्र डेढ़ साल की सजा सुनाई गई, मतलब साफ है कि ढुलू की विधायकी बरकरार रहेगी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद, इस फैसले को लेकर सोशल साइट पर कई लोगों ने भारत की न्यायिक व्यवस्था पर सवाल उठा दिये, साथ ही खुलकर कह दिया कि क्या अब सजा भी पार्टी देखकर मिलेगी? संजीव रंजन ने तो अपने पोस्ट में साफ लिखा कि यह दो तरह की न्याय व्यवस्था के कारण एक की विधायकी चली गई, एक की विधायकी रह गई? सत्ता के साथ न्याय का कोई कनेक्शन है क्या?
ढुलू को जैसे ही डेढ़ साल की सजा सुनाई गई, कई पत्रकारों ने ढुलू महतो की स्तुति तक गा दी
दूसरी ओर जैसे ही ढुलू महतो को मात्र डेढ़ साल की सजा हुई, उनके समर्थकों, उनके पत्रकार मित्रों के चेहरे खिल उठे, कई ने मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ाएं, कई ने एक दूसरे को मुबारबाद दी, कई ने एक दूसरे को मिठाइयां खिलाई और अपने विरोधियों पर जमकर गुस्सा उतारा, उन्हें जमकर गालियां भी दी।
कई पत्रकारों ने तो अपने सोशल साइट पर इस मुद्दे को लेकर संपादकीय तक लिख डाली और ढुलू महतो की स्तुति कर स्वयं को कृतार्थ किया, यहीं नहीं उसे ढुलू के टाइगर सेना तथा अन्य ढुलू समर्थकों तक खुद अपने संपादकीय को शेयर भी किया। इन लोगों को इस बात के लिए तनिक शर्म महसूस नहीं हो रही थी कि अदालत ने उसके विधायक ढुलू महतो को पुलिस के साथ गलत व्यवहार करने, वर्दी फाड़ने तथा वांरटी को छुड़ाने के मामले में डेढ़ साल की सजा सुना दी।
उन्हें तो सिर्फ इस बात की खुशी थी कि ढुलू महतो पर अदालत ने आखिर कृपा लूटा दी, उन्हें झामुमो के अमित महतो की तरह दो साल की सजा नहीं सुनाई, बल्कि ढुलू महतो को डेढ़ साल की सजा में ही निपटा दिया, इस प्रकार ढुलू की विधायकी भी बच गई और दूसरी ओर वे आगे भाजपा के टिकट पर बाघमारा से चुनाव भी लड़ सकते हैं।
आज धनबाद कोर्ट पर सभी की नजर थी, नजर उनकी भी थी, जो ढुलू के कुकृत्यों से तंग हैं तथा उसको जेल की सलाखों में देखना चाहते हैं, और नजर उनकी भी थी, जो ढुलू में खुदा का नूर देखते हैं, तथा ढुलू से समय–समय पर उपकृत होते रहते हैं, इन उपकृत होनेवाले में पत्रकारों की भी एक बहुत बड़ी शृंखला है, इसे नहीं भूलना चाहिए। जैसे ही अदालत ने ढुलू महतो को डेढ़ साल की सजा सुनाई, वैसे ही अदालत में बैठे ढुलू के समर्थक, एवं ढुलू के पत्रकार मित्रों के चेहरे खिल उठे, उन्हें ऐसा लगा कि जैसे दोनों जहां मिल गया।
राजनैतिक पंडितोंं की भविष्यवाणी ऐसे फैसलों से जनता का न्यायिक व्यवस्था से विश्वास उठ जायेगा
राजनैतिक पंडित बताते है कि अदालत का फैसला, अदालत का फैसला हैं, उस पर कोई टीका टिप्पणी नहीं की जा सकती, पर सोशल साइट पर जिस प्रकार लोगों ने इसकी फैसले की तुलना झामुमो के अमित महतो से की हैं, उसे गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। निश्चय ही आज के फैसले से यह क्लियर हो गया कि आप सत्ता में हैं तो आप फायदे में हैं, और अगर विपक्ष में हैं तो आप पर गाज गिरना तय हैं, नहीं तो अमित महतो और ढुलू महतो पर आरोप तो समान हैं, एक को दो साल की सजा और दूसरे को डेढ़ साल की सजा क्यों?
अगर अमित महतो के अपराध और ढुलू के अपराध का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाय, तो ढुलू का अपराध अमित महतो के अपराध से बीस ही निकलेगा, पर अब चूंकि न्यायालय ने फैसला सुना दिया तो फिर अब कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन आज के फैसले से एक आम आदमी का न्यायालय से विश्वास डिगा है, अब शायद ही कोई सामान्य आदमी न्यायालय पर विश्वास करेगा, ऐसे पूरे झारखण्ड में खासकर सोशल साइट पर लोग पूछने लगे है कि अमित महतो और ढुलू महतो के अपराध एक तो सजा में अंतर क्यों और हमें लगता है कि जो लोग न्यायिक व्यवस्था से जुड़े हैं, उनके पास इसका जवाब भी नहीं होगा।