CM रघुवर को पता होना चाहिए कि जनतारुपी श्रीकृष्ण का आशीर्वाद सिर्फ योग्य को ही मिलता है, अयोग्य को नहीं
हाथ में काले, पीले व लाल रंग वाले धागों को रक्षासूत्र के रुप में बांध लेने से हर कोई सुरक्षित नहीं हो जाता या उसे ईश्वरीय शक्ति अथवा ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त नहीं हो जाता और न ही जन –आशीर्वाद यात्रा पर निकल जाने से हर कोई को जनता आशीर्वाद ही दे देती हैं। आशीर्वाद तो उसे ही प्राप्त होता है, जो आशीर्वाद के योग्य है।
भारतीय साहित्य में तो एक उक्ति है, सुपात्रे दीयते दानं अर्थात् सुपात्र को ही दान देना चाहिए, ठीक उसी प्रकार आशीर्वाद भी सुपात्र को ही देना चाहिए, न ही तो जो कुपात्र हैं अगर उसे आशीर्वाद मिल गया तो समझ लीजिये देश व समाज ही नहीं, बल्कि खुद का भी अहित कर बैठेगा। वो भगवान शंकर और भस्मासुर वाली कहानी तो याद ही होगा।
ऐसे कई कहानियां और संदर्भ, भारतीय साहित्यों में भरे पड़े हैं, जिसका मैं जिक्र करना जरुरी समझता हूं, क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री इन दिनों जन-आशीर्वाद यात्रा पर हैं, और इस जन आशीर्वाद यात्रा में भाड़े में आ रही भीड़ तथा भाजपा के टिकट के लालच में स्थानीय नेताओं द्वारा जुटाई जा रही भीड़ और उस भीड़ में एक-दो के मुस्कराते चेहरे तथा उस भीड़ को देख, सीएम रघुवर का हाथ हिलाना, बदले में भाड़े की भीड़ द्वारा हाथ हिलाना, मुख्यमंत्री रघुवर दास समझ ले रहे है कि उन्हें जनता का आशीर्वाद मिल रहा हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि जनता रघुवर दास के नाम से ही भड़कती हैं, नहीं तो सीएम रघुवर दास द्वारा ही चलाया गया ‘घर-घर रघुवर’ अभियान का भाजपा में ही विरोध नहीं होता और न ही इस अभियान की हवा निकलती। सच्चाई यह है कि आज भी झारखण्ड के कुछ इलाकों में वैश्य वर्ग तथा ऊंची जातियों में पीएम मोदी का जलवा है, जो कही-कही मोदी के नाम पर दिख जाता है, नहीं तो रघुवर के नाम पर तो भीड़ क्या, एक आदमी भी न दिखे। अब सवाल उठता है कि क्या सचमुच इस जन आशीर्वाद यात्रा में रघुवर दास को आशीर्वाद मिल रहा हैं, या ये यूं ही भटक रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा जो खुद को हिन्दुत्व का झंडा ढोने वाली पार्टी बताती हैं, पर शायद उसे नहीं पता कि महाभारत में एक महान विदुषी महिला गांधारी थी, जिसने अपने पुत्र दुर्योधन तक को विजयी भव का आशीर्वाद नहीं दिया था, और यह विजयी भव का आशीर्वाद पांडवों के पक्ष में चला गया था। शायद आज के भाजपा के शीर्षस्थ नेता ये भूल रहे हैं कि दुर्योधन और अर्जुन एक साथ श्रीकृष्ण के पास कुछ मांगने को गये थे। दुर्योधन सिरहाने बैठा और अर्जुन भगवान कृष्ण के चरणों के पास।
श्रीकृष्ण की नजर सबसे पहले अर्जुन पर पड़ती है, श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि कहो अर्जुन कैसे आना हुआ? दुर्योधन को लगता है कि कही अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से नारायणी सेना न मांग लें, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने तो युद्ध में शस्त्र नहीं उठाने का प्रण लिया है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि भगवन्, अर्जुन से पहले वह आया हैं, हक तो सबसे पहले हमारा बनता है कि मैं आपसे कुछ मांगू, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि चूंकि हमारी पहली नजर अर्जुन पर पड़ी है, इसलिए हक तो अर्जुन को हैं।
अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से यहीं कहते है कि प्रभु आपका आशीर्वाद पांडवों पर सदैव बना रहे, भगवान श्रीकृष्ण तथास्तु कहते है और इधर दुर्योधन को लगता है कि चलो अर्जुन ने कम से कम भगवान श्रीकृष्ण से नारायणी सेना तो नहीं मांगा और इस प्रकार वह नारायणी सेना अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए मांग लेता हैं, और भगवान प्रसन्न होकर उसे नारायणी सेना दे भी देते हैं। अब सवाल उठता है कि नारायणी सेना के बावजूद दुर्योधन क्यों हार गया? क्योंकि दुर्योधन के पास नारायणी सेना तो थी, पर भगवान का आशीर्वाद तो अर्जुन के पास था, ये हैं आशीर्वाद की अहमियत और जो आशीर्वाद की अहमियत समझता हैं, वहीं विजयीश्री भी होता हैं और हम दावे के साथ कह सकते हैं कि जनता रुपी श्रीकृष्ण का राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को आशीर्वाद प्राप्त नहीं हैं।
अब भाजपा के राज्यस्तरीय शीर्षस्थ नेता चिन्तन करें कि क्या जनता रुपी श्रीकृष्ण का आशीर्वाद रघुवर के दास यानी हनुमान (कभी जमशेदपुर में 2015 में आयोजित रामनवमी कार्यक्रम में नये-नये मुख्यमंत्री बनने के बाद एक सभा में खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा था कि वे तो रघुवर के दास यानी हनुमान हैं, जनता की सेवा हनुमान की तरह करेंगे) को प्राप्त है, क्या रघुवर दास को यह बात मालूम है कि हनुमान को हनुमान, जाम्बवन्त ने बनाया था, और रघुवर दास ने सही मायनों में रामभक्त हनुमान बनने के लिए कभी भी जाम्बवन्त को खोजने की कोशिश ही नहीं की।
सीएमओ में एक जाम्बवन्त था भी तो उसे सीएमओ से मात्र तीन वर्ष में ही निकाल बाहर किया और कनफूंकवों की मदद से अपना तथा राज्य का कबाड़ा निकाल दिया और सच्चाई यह भी है कि किसी हनुमान को आज तक कनफूंकवों ने बेड़ा पार नहीं लगाया, अंततः उस हनुमान को जाम्बवन्त की ही जरुरत पड़ेगी, और लीजिये अब तो समय भी नहीं, कि आपको जाम्बवन्त मिल जाये और आप खुद को निखार लें, क्योंकि समय की दरिया में समय इतना बह गया कि आपके पास खोने के अलावा कुछ है ही नहीं।
जनता तो योग्य एवं भावी मुख्यमंत्री को आशीर्वाद देने के लिए मचल रही हैं, वह योग्य अभ्यर्थी को ढूंढ रही हैं, आपको तो वह कब का ठुकरा चुकी है, शायद आपको आभास नहीं हैं, आप तो अभी भी सत्ता के नशे में हैं, आप भूल रहे हैं कि आपकी सभा में विभिन्न योजनाओं का लाभ ले रहे ठेकेदारों द्वारा लाये जा रहे लोग या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे लोग या भाजपा के टिकट की लालच में नेताओं द्वारा लाये जा रहे लोग ही पहुंच रहे हैं, ताकि भीड़ देखकर आप प्रसन्न हो जाये, पर जनता, जनता तो वक्त का इंतजार कर रही हैं।
आप जो बार-बार डबल इंजन-डबल इंजन कह रहे हैं, जनता को मालूम है कि इसमें एक इंजन (राज्यवाली) पूरी तरह फेल हैं, आप कहते है कि उज्जवला योजना, अरे वो तो केन्द्र की देन हैं, आवास योजना, अरे वो भी केन्द्र की देन हैं, आपकी क्या हैं? वो बताइये न, ताकि जनता आपको आशीर्वाद दें, आपकी योजना क्या हैं? उसे हम बताते हैं। हाथी उड़ाओ योजना, बेटी के सम्मान से खेलो योजना तभी तो भाजपा की धनबाद जिला मंत्री जो एक साल से आपके ही चहेते विधायक ढुलू पर यौन शोषण का आरोप लगाने के लिए बेचैन थी, आपने उसे एक साल तक नाक रगड़वा दिया, अंत में जो हाईकोर्ट ने आंख तरेरी, तब जाकर उसका प्राथमिकी दर्ज हुआ।
आपने सुचित्रा मिश्रा हत्याकांड का मुख्य आरोपी शशिभूषण को भाजपा में शामिल कराकर बता दिया कि आपके मन में क्या चल रहा हैं, ये प्रमाण बताने के लिए काफी है कि आप जनता रुपी कृष्ण के आशीर्वाद को पाने का हक कब का खो चुके, ख्याली पुलाव पकाते रहिये, समय का इंतजार करिये, समय किसी का नहीं होता, वो ऐसा दंड देता है, कि हवा/आकाश में हाथी उड़ानेवाला व्यक्ति कहीं का नहीं रहता, हमें लगता है कि जनता ने अपना आशीर्वाद फिलहाल अपने पास आनेवाले विधानसभा चुनाव के लिए रख रखा हैं, और उसी समय वो योग्य अभ्यर्थी को आशीर्वाद प्रदान करेगी, जिसमें कम से कम आप तो नहीं ही होंगे।