नव-नियुक्त दारोगा जमीन पर बेहोश पड़ा था और शहंशाह-ए-झारखण्ड को उसकी फिक्र तक नहीं थी
आज शहंशाह-ए-झारखण्ड अर्थात् राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास नव-नियुक्त सब-इंस्पेक्टरों के दीक्षांत समारोह में शामिल होने हजारीबाग पहुंचे थे। जहां वे नव-नियुक्त सब-इंस्पेक्टरों का गार्ड सलामी ले रहे थे, उसी दौरान एक सब-इंस्पेक्टर बेहोश होकर गिर पड़ा, पर राज्य के मुख्यमंत्री तथा उनके साथ चल रहे राज्य के वरीय पुलिस अधिकारी मानवीयता को ताक पर रखकर चलते बने।
बताया जाता है कि कवायद का वसूल है कि जब कभी ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं, तो ऐसे में कोई जवान अगर बेहोश होकर गिरता हैं, तो उस पर बगल वाले ध्यान नहीं देते, क्योंकि यह परम्परा अंग्रेजों के समय से चलती आ रही हैं, जिसका निर्वहण आज तक होता आ रहा हैं, पर सवाल उठता है कि यह अंग्रेजों के समय से चली आ रही परम्परा पर कब ताला लगेगा?
सूत्र बताते है कि जिस परम्परा की दुहाई देते हुए जवान के बेहोश होकर गिरने पर भी राज्य के मुख्यमंत्री या वरीय पुलिस अधिकारी उक्त जवान को यथावत् छोड़ देते हैं, शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि जिस अंग्रेजी परम्परा को आत्मसात् करके चल रहे हैं, वे अंग्रेज अपने समय में, समय के पाबंद होते थे, समय पर ही दीक्षांत समारोह का कार्यक्रम होता था, और समय पर खत्म हो जाता था, चाहे उनके मुख्य अतिथि समय पर समारोह में आये अथवा न आये, लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं हैं।
कौन नेता कब आयेगा, खुद उस नेता को पता नहीं होता, और इधर दीक्षांत समारोह की तैयारी के क्रम में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होनेवाले जवानों को उनकी विलम्ब रहने की बीमारी के कारण भारी शारीरिक और मानसिक कष्ट उठाना पड़ता हैं, जिसके कारण ऐसी घटना घटित होती रहती हैं। जैसा कि आज हजारीबाग में देखा गया।
सूत्र बताते है कि गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान बेहोश होकर गिरनेवाले जवानों को यथावत् छोड़नेवाले नेताओं को मालूम नहीं कि हर व्यक्ति का एक स्टेमिना होता है, वह उतना ही बर्दाश्त कर सकता है, जितना उसकी कूबत हैं, अगर आप दो से ज्यादा घंटे एक ही मुद्रा में वह भी कड़ी धूप में बिना भोजन के खड़ा करा देंगे, तो वह बेहोश होगा ही।
नेताओं को यह भी मालूम होना चाहिए, जैसा कि खुद मुख्यमंत्री अपने सोशल साइट पर गर्व से लिख रहे है कि इसमें शामिल होनेवाले ज्यादातर गरीब परिवार अथवा मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं, तो वे बताएं कि क्या सरकार उन परिवारों को इस हालत में रखा है कि वे ठीक से भोजन भी कर पायें, और क्या सरकार ये दावे के साथ कह सकती है कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें उचित भोजन अथवा उचित पोषक तत्व दिये गये हो, जितने कि उन्हें एक दिन में आवश्यकता होती हैं।
सूत्र बताते हैं कि जहां इन्हें प्रशिक्षण दिया जाता हैं, वह खुद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा होता हैं, जिसके शिकार ये नव-नियुक्त गरीब परिवारों के बच्चे होते रहते हैं, पर नौकरी से हाथ धोना न पड़ जाये, इसलिए वे प्रशिक्षण केन्द्र में चल रहे सारे भ्रष्टाचार को सदाचार समझकर सहते रहते हैं, यह समझकर कि यह भी एक प्रशिक्षण का पार्ट है, जिसका परिणाम तब सामने आता है, जब घंटो लेट पहुंचे नेता या अधिकारी के सामने वह खुद को बेबस समझता हैं, और जितनी ताकत होती है, उस ताकत से स्वयं के द्वारा बेहतर देने की कोशिश करता हैं।
पर ये क्या ऐसा करने में उसको जान का भी खतरा रहता है, और सबसे ज्यादा मारक स्थिति तो तब आती हैं, जब ऐसे कार्यक्रमों में उसके परिवार के सदस्य अपने बेटे को गिरते हुए देखते हैं, और कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं होते, वे रो भी नहीं पाते और हंस भी नहीं पाते, और इस दर्दनाक दृश्य को देख उनकी जान मुंह को आ जाता हैं, पर मुख्यमंत्री और वरीय पुलिस अधिकारी को देखिये, वे झूठे अकड़ में खुद को ऐसे लोगों के सामने प्रकट करते हैं, जैसे लगता है कि उन्होंने चीन के साथ एक बहुत बड़ा जंग जीत लिया हो।
इन सभी चीजों से बचने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए थी। पहला – जैसे ही किसी जवान को चक्कर आया, तो उसके विकल्प में एक दूसरे को तैयार रखना चाहिए था, तथा उक्त जवान को जल्द वहां से हटाकर बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए थी, पर यहां हुआ क्या सीएम के सामने वह गिरा और सीएम के जाने के बाद भी गिरा रहा, जो मानवीय दृष्टिकोण से बहुत ही शर्मनाक है। दूसरा, इस प्रकार के कार्यक्रमों में एक रेस्कयू टीम होती हैं, जो यहां दिखा ही नहीं, अगर नहीं थी तो होनी चाहिए थी। तीसरा, कवायद में वो जवान अपना पूरा स्टेमिना लगाया होगा, यहीं कारण है कि वह गिर गया, अगर वह बैठ जाता तो शायद नहीं गिरता और ऐसी दृश्य देखने को नहीं मिलती।