CM रघुवर पर धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ करने का आरोप, सिदगोड़ा थाने में शिकायत दर्ज
झारखण्ड विकास मोर्चा के वरिष्ठ नेता एवं केन्द्रीय महासचिव अभय सिंह ने जमशेदपुर के सिदगोड़ा थाने में झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई हैं, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास पर लोक-आस्था के महापर्व छठ में आस्था के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। उन्होंने सिदगोड़ा थाना प्रभारी को इंगित करते हुए शिकायत पत्र में लिखा है कि लोक आस्था का महापर्व छठ हिन्दूओं का पवित्र त्यौहार है। इस महापर्व में छठ महोत्सव के नाम पर स्थानीय एग्रीको मैदान जमशेदपुर में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री रघुवर दास की उपस्थिति में अश्लील गाने गाये गये।
अभय सिंह का कहना है कि छठ के दिन हम सभी लोक-आस्था को माननेवाले, धर्म-प्रेमी बन्धु केवल भक्ति-गीत बजाते हैं, पर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अश्लीलता से भरा हुआ गाना, अपनी मौजूदगी में छठ महोत्सव के बैनर तले करवाया गया। इस गाने की प्रस्तुति ने उन लाखों माताओं-बहनों को गहरा आघात पहुंचाया हैं, जिन्होंने लगातार चार दिन निर्जला उपवास कर छठ व्रत किया है।
शिकायत पत्र में यह भी उल्लेखित है कि जमशेदपुर जिला प्रशासन द्वारा शांति समिति, दुर्गापूजा समिति को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि लाउडस्पीकर में भक्ति गीतों के अलावा कोई फिल्मी गाना नहीं बजाना हैं, इसकी सख्त हिदायत भी हैं। उसके बावजूद मुख्यमंत्री ने उन लाखों धर्मावलम्बियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया हैं, अतः आग्रह है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ कड़ी से कड़ी कारर्वाई की जाय, अन्यथा वे न्यायालय की शरण में जायेंगे।
ज्ञातव्य है कि कल जमशेदपुर के एग्रिको मैदान में छठ महापर्व के अवसर पर सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया था, जिसमें सुप्रसिद्ध फिल्मी गायिका नेहा कक्कड़ अपना प्रस्तुति देने के लिए पहुंची थी। इस कार्यक्रम का आयोजक – सूर्य मंदिर कमेटी सिदगोड़ा के लोग हैं, जिसके संरक्षक स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं, जो कल के कार्यक्रम में अपने पूरे परिवार के साथ मौजूद थे, तथा उक्त नेहा कक्कड़ के कार्यक्रम का भरपूर रसास्वादन कर रहे थे।
आश्चर्य है कि छठ महापर्व के नाम पर इस कार्यक्रम में फूहड़ और अश्लील गीतों का प्रदर्शन हुआ, जिसका बड़े पैमाने पर बुद्धिजीवियों ने कड़ी आलोचना की हैं। बुद्धिजीवियों का कहना है कि इस प्रकार के गीतों-कार्यक्रमों का प्रदर्शन छठ महापर्व पर नहीं होना चाहिए। कुछ बुद्धिजीवियों ने इसे “हसुंआ के ब्याह में खुरपी के गीत” की संज्ञा दे दी, तथा इसे गैर-जिम्मेदाराना तथा बौद्धिक स्तर का दिवालियापन करार दिया। कई लोगों ने तो यह भी कह दिया कि क्या सांस्कृतिक का अर्थ भी मुख्यमंत्री जानते हैं? अगर जानते हैं तो वे बताएं कि नेहा कक्कड़ ने कितने छठ गीत गाये?
आश्चर्य की बात है कि कल के कार्यक्रम में वहां लगी कुर्सियों पर भी शामत आई, बड़े पैमाने पर दर्शकों ने कुर्सियां तोड़ी, जिन टूटी कुर्सियों का जमशेदपुर के एग्रिको मैदान में पहाड़ भी बन गया। लोगों का कहना था कि पहली बार देखने में आ रहा है कि सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुर्सियां भी टूटते हैं, भाई महापर्व छठ में कुर्सिया टूट जाये, तो कम से कम उस कार्यक्रम को सांस्कृतिक तो नहीं ही कहा जा सकता, उसे क्या कहा जा सकता है, इसके लिए मुख्यमंत्री से ही पूछा जाना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार अन्नी अमृता अपने फेसबुक पर इस कार्यक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखती है कि ”वैसे सैद्धांतिक तौर पर कहूं तो छठ के दिन नेहा कक्कड़ का या ऐसे कार्यक्रम करना सही नहीं। हसुआं के ब्याह में खुरपी का गीत नहीं होना चाहिए। हर चीज का एक वक्त होता है। ऐसी परम्परा पहले नहीं थी, पहले सूर्य मंदिर कमेटी छठ पर छठ के गीत गानेवाले मशहुर कलाकारों को लाती थी।
ये एक गलत परम्परा की शुरुआत हुई है, जो पिछले कुछ सालों से चल रही हैं। दो साल पहले मोनाली ठाकुर ने जरुर छठ के गीत न सिर्फ गाए बल्कि दूसरों से गंवाएं थे, पर नेहा कक्कड़ ने छठ का नाम तक नहीं लिया। हमने पश्चिम से उसके स्टाइल का नाच जरुर सीखा, पर कब, कहां और क्या नहीं होना चाहिए, ये अनुशासन नहीं सीख पाएं, अब बारात वाला डांस छठ के दिन तो नहीं कर सकते, हर चीज का एक वक्त और जगह होती है।”
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि बुलाइयेगा नेहा कक्कड़ को और उनसे छठ गीत सुनना चाहियेगा, ये तो संभव नहीं, दूसरी बात लोगों को चाहिए कि वह सिदगोड़ा के सूर्य मंदिर कमेटी और उसके संरक्षक मुख्यमंत्री रघुवर दास से सीधे सवाल करें, कि इस प्रकार के कार्यक्रम से उन्होंने जमशेदपुर के युवाओं और छठव्रतियों को क्या संदेश दिया? उनसे पूछा जाना चाहिए कि इस महापर्व पर अपनी ही संस्कृति के साथ खिलवाड़ करना आपको किसने सिखाया और अंत में किसी मंदिर कमेटी के पास इतने पैसे कहां से आ जाते है कि वे नेहा कक्कड़ जैसी लोगों का कार्यक्रम आयोजित कर डालते हैं?
क्या मंदिर कमेटी को ऐसे ही कार्यक्रम आयोजन करने के लिए पैसे मिलते हैं? जब मंदिर कमेटियां इस प्रकार की हरकत करेगी और उसके संरक्षक ही इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन करेंगे, तो क्या छठ महापर्व पर अंगूलियां नहीं उठेंगी, अन्य धर्म को माननेवाले हिन्दू धर्म के अंदर आ रही इस प्रकार की बुराइयों पर सवाल नहीं उठायेंगे? आखिर हिन्दू धर्म को लेकर चिन्तित रहनेवाली बहुत सारे संगठने इस प्रकार की घटनाओं के आगे अपना मुंह क्यों सील लेते हैं?
क्या इन बुराइयों पर रोक लगाने तथा इस प्रकार के आयोजन करनेवाले, जो धर्म का माखौल उड़ाते हैं, क्या उनका सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए, ताकि आनेवाले समय में कोई अपने धर्म-संस्कृति का मजाक न बना सकें, और मंदिर कमेटियां ऐसे कार्यक्रम आयोजन करने के पूर्व दस बार सोंचे। अब तो देखना यह है कि राज्य में लग चुके आदर्श आचार चुनाव संहिता के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत के बाद, इस शिकायत की प्राथमिकी में रुपांन्तरण कब होता हैं, क्योंकि यहां पुलिस प्रशासन भी कितनी मुस्तैद और कितनी संवैधानिक हैं, वो तो सबको पता हैं, तभी तो शिकायत दर्ज करानेवाले ने, सिदगोड़ा थाना प्रभारी को बता दिया कि अगर आप कार्रवाई नहीं करते, तो वह न्यायालय की शरण लेने में देर नहीं करेगा।
इधर जमशेदपुर में कल की घटना के बाद घर-घर चर्चा आम हो गई है कि अभी एक सप्ताह भी नहीं हुए हैं, भाजपा के ही नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा अपने घर में दीपावली के दिन काली पूजा कराते हैं, और उनके काली पूजा में दूसरे दिन प्रसाद ग्रहण करने के लिए भारी संख्या में लोग जुटते हैं, उन्हें दुआएं देते हैं, आशीर्वाद देते हैं और अपने घर जाते हैं, और एक वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं, जिन्हें महापर्व छठ के दिन छठगीतों में दिलचस्पी कम और नेहा कक्कड़ में रुचि ज्यादा बढ़ जाती हैं, नहीं तो जिस सूर्य मंदिर कमेटी के वे संरक्षक हैं, उनके लोगों ने छठ महापर्व पर नेहा कक्कड़ को क्यों बुलाया और सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर अश्लीलता व फूहड़ता क्यों परोसी? खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने ऐसे कार्यक्रमों में क्यों हिस्सा लिया?