श्रीरामजन्मभूमि विवाद पर SC ने लगाया विराम, ऐतिहासिक फैसले को सभी ने सराहा, NDTV की पत्रकारिता को सलाम
अब श्रीरामजन्मभूमि विवाद पूरी तरह समाप्त हो गया हैं। इस श्रीरामजन्मभूमि विवाद को लेकर पिछले कई वर्षों से दो समुदाय में काफी कटुता ने जन्म ले लिया था, पर अब भारतीयों का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले से अब यह विवाद सदा के लिए समाप्त हो गया हैं, साथ ही इसको लेकर अब चल रही राजनीति भी सदा के लिए समाप्त हो जायेगी। खुशी इस बात की है कि इस केस से संबंधित सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले का स्वागत किया हैं, तथा इसकी सराहना की।
आखिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वप्रथम शिया वक्फ बोर्ड की उस याचिका को खारिज किया, जिस याचिका में उसने जमीन पर अपना दावा पेश किया था। बताया जाता है कि शिया वक्फ बोर्ड का कहना था कि चूंकि बाबर शिया था और उसका सलाहकार मीर बांकी भी शिया था, जिसने बाबरी मस्जिद बनाने में मुख्य भूमिका अदा की थी, उसके अनुसार वह जमीन शिया वक्फ बोर्ड की हैं, यह दावा शिया वक्फ बोर्ड ने 1946 में किया था, जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 19वीं शताब्दी से ही इस पर अपना दावा ठोक रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की याचिका भी खारिज कर दी। निर्मोही अखाड़ा का कहना था कि चबूतरा वैरागियों ने बनाई थी, जहां रामलला की मूर्ति थी। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के आधार पर यह फैसला लिया जा रहा हैं। मस्जिद कब बनी, किसने बनवाई स्पष्ट नहीं हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद के नीचे मंदिर था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी सबूत पेश किये थे। भारतीय पुरातत्व के अनुसार वहां हिन्दू मंदिर था।
चीफ जस्टिस का कहना था कि हिन्दू अयोध्या को राम जन्मस्थान मानते हैं। एएसआइ ने यह नहीं बताया कि मंदिर गिराकर मस्जिद वहां बनाई गई। मुस्लिम गवाहों ने भी माना है कि वहां दोनों पक्ष पूजा करते थे। एएसआइ की रिपोर्ट के मुताबिक खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी। हिन्दू बाहरी अहाते में पूजा करते थे। विभिन्न विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे यात्रा विवरण के अनुसार वहां सिंह द्वार था, सीता रसोई का भी वहां जिक्र हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है। 1856-57 से पहले आंतरिक अहाते में वहां पूजा करने पर कोई रोक नहीं थी।
चीफ जस्टिस ने कहा कि मुसलमानों का बाहर अहाते पर अधिकार नहीं था। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसका एक्सक्लूसिव राइट था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा भारतीय संविधान किसी धर्म के साथ भेदभाव नहीं मानती। मुस्लिमों को मस्जिदों के लिए दूसरी जगह मिलेगी। केन्द्र सरकार तीन महीने में योजना तैयार करेगी। विवादित ढांचे की जमीन हिन्दूओं को सौंपी जाये। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए सरकार अलग से पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराए। मंदिर निर्माण के लिए सरकार ट्रस्ट बनाए यानी विवाद समाप्त, विवादित स्थल हिन्दूओं का यानी, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार विवादित स्थल ही रामजन्मभूमि और इस प्रकार जिस फैसले पर पूरे विश्व की नजर थी, वो फैसला आ गया।
चैनलों/अखबारों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज होनेवाले ऐतिहासिक फैसले को लेकर लोगों में दहशत फैलाने की जबर्दस्त कोशिश की, पर जनता ने परस्पर प्रेम से उनके इस संशय पर ही पानी फेर दिया। ये अखबार व चैनल अपनी ओर से ऐसी-ऐसी अपील कर रहे थे, जैसे लगता था कि जनता यहां की दंगाई और ये सबसे बड़े भक्त हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यहां की जनता जितनी देशभक्त हैं, जितना एक दूसरे से प्रेम रखती हैं, उतना कहीं नहीं, बल्कि कहीं पर भी दहशत या दंगा फैलाने का काम यहीं लोग करते हैं, जो गलत-गलत लोगों को अपने चैनल में बुलाकर ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं, जिससे समाज में तनाव उत्पन्न हो जाता हैं, फिर भी आज का दिन रांची में शांति से बीता और हमें लगता है कि इस ऐतिहासिक फैसले का यहां कोई असर भी नहीं पड़ेगा।
एनडीटीवी तुम्हारा जवाब नहीं, तुम्हारी पत्रकारिता का कोई विकल्प नहीं, सलाम कमाल खान की पत्रकारिता को
उधर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना रही थी और इधर एनडीटीवी बड़ी ही ईमानदारी से बिना किसी चिल्लाहट, बिना किसी शोर-शराबे के, शांतिपूर्वक जनता को सुप्रीम कोर्ट में हो रही बातों को जनता के बीच रख रहा था। सचमुच जो लोग पत्रकारिता करते हैं, या पत्रकारिता में आना चाहते हैं, कम से कम उन्हें एनडीटीवी की आज की रिपोर्टिंग और प्रस्तुतीकरण देखना चाहिए। बिना किसी पक्षपात के, बिना किसी उदवेग के सच्ची बातों को जनता के बीच रखना एक बहुत बड़ी बात हैं। मैं यहां एनडीटीवी के संवाददाता कमाल खान की प्रशंसा करना चाहूंगा, जिन्होंने बड़ी ही विनम्रता से अयोध्या के ऐतिहासिक परिदृश्यों और उसके पन्नों को उलट कर रख रहे थे, यानी पत्रकारिता क्या होती हैं? तो कोई कमाल खान से सीखे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, उनके जेहन में नहीं था, वे सिर्फ और सिर्फ वहीं बात रख रहे थे, जो उनसे पूछा जा रहा था और वे वहीं बात रख रहे थे, जो एक पत्रकार को हर हाल में बोलना चाहिए। जरा देखिये, न्यूज रुम से पूछा जा रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने की बात कही हैं, वे साफ कहते है कि मस्जिद को शिफ्ट किया जा सकता हैं, क्योंकि विदेशों और भारत में भी ऐसे कई वाकयात हुए हैं, जिसमें मस्जिद को दूसरे जगह शिफ्ट किया गया हैं।
पूरा फैसला आने के बाद, वे अयोध्या में एक युवा से पूछ रहे हैं कि फैसला आ गया, विवादित स्थल पर राम मंदिर बनेगा, क्या कहोगे। शायद वह युवा को पता नहीं है कि क्या फैसला आया है, क्योंकि उसे इस फैसले पर लगता है कि ध्यान ही नहीं हैं, फिर भी कमाल खान के सवाल पर कहता है कि हां मंदिर बनना ही चाहिए, यानी उसके मन में न तो ज्यादा खुशियां हैं और न वह दुखी हैं, यानी हम कह सकते है कि एक सामान्य आदमी, आज भी इस डिजिटल युग में इन सबसे से दूर असली मस्ती में जी रहा हैं।
संघ ने सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया
उधर दिल्ली से खबर है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया हैं, और उन्होंने संभावना व्यक्त किया कि अब ये विवाद अब सदा के लिए समाप्त हो गया। उनका कहना था कि सभी पक्षों को इसका स्वागत करना चाहिए। वे यह भी कहते है कि इसमें न तो किसी की हार हैं और न किसी की जीत। हां, हिन्दूओं को लगता था कि श्रीरामजन्मभूमि ही वह स्थल है, जहां रामजन्म स्थान है, आज सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को स्वीकार किया, यह आनन्द का विषय हैं, संघ सभी लोगों से इस फैसले का स्वागत करने का अपील किया है, तथा नये भारत के निर्माण के लिए कदम बढाने को कहा है।