इसका मतलब दुमका में लोगों की दिलचस्पी राजनाथ सिंह के भाषण सुनने में नहीं थी
तो क्या, जो दुमका में भीड़ दिखाई पड़ रही थी, वो राजनाथ सिंह को सुनने नही आयी थी? क्योंकि जिस प्रकार की सूचना दुमका से मिल रही हैं, वो रघुवर सरकार के लिए हास्यास्पद है। एक अखबार की बात माने तो उसमें खबर छपी है कि रघुवर सरकार के 1000 दिन आपके नाम व गरीब कल्याण मेला में आये लोगों को जैसे ही आभास हुआ कि कार्यक्रम खत्म हो गया, कोई कुर्सी तो कोई होर्डिंग, जिसको जो मिला लेकर अपने घर चल दिया।
जब लोगों को कुर्सियां लेकर भागते भवन निर्माण विभाग के अभियंता ने देखा तो उन्होंने कुछ दूर तक पीछा किया, पर भीड़ में शामिल लोगों ने उनकी एक न सुनी। मात्र 4 कुर्सियां ही अभियंता के हाथ आयी, जबकि भीड़ में शामिल कई लोगों ने सभास्थल पर पड़ी कुर्सियों उठाया और अपने मोटरसाइकिल पर लाद कर चलते बने, कई लोगों ने तो कुर्सियों को बस पर लाद कर अपने घरो की ओर चल दिये।
दुमका की इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि लोगों को, अब नेताओं के भाषण में उतनी दिलचस्पी नहीं रही। शायद वे जान चुके है कि नेताओं के भाषण सफेद झूठ के अलावे कुछ भी नहीं। ये ज्यादातर अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं। जिसकी आड़ में प्रशासनिक अधिकारी भी परिसंपत्तियों के बंटवारे में अपने-अपने लोगों को लाभ पहुंचाते तथा उसके बदले कमीशन प्राप्त करते हैं।
हाल ही में एक ऐसी घटना जमशेदपुर में भी घटी थी, जब पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जमशेदपुर दौरा हुआ था, वहां कुर्सियों तो नहीं पर कुछ लोग वहां लगे स्टैंडिंग होर्डिंग्स को लेकर चलते बने थे। अगर ऐसा माहौल सभी जगह बना तो नेताओं के लिए एक प्रकार से सभा करना घाटे का सौदा हो जायेगा, क्योंकि फिर भीड़ जब भी आयेगी, वह देखेगी कि उसके फायदे के लिए कौन-कौन सी चीजें वहां मौजूद हैं और फिर नेता के भाषण समाप्त होते ही उन चीजों पर टूट पड़ेंगी, जिन पर उनकी नजर हैं, और जिसे वे अपने घर ले जाना चाहते हैं।
कल की घटना से राजनीति में शामिल सभी नेताओं को स्वीकार करना होगा, कि उन्होंने अपनी हरकतों से जनता का विश्वास खो दिया है और ये जनता उनकी भाषण सुनने में दिलचस्पी नहीं रखती, अब उनका मकसद बदल चुका है। वह एक प्रकार से सबक सिखाना चाहती हैं, उन राजनीतिक दलों को जो उनकी भावनाओं से खेल रही हैं। वह यह भी जानती है कि जो उनके बीच अपनी बात रखने आ रहा हैं, उसकी अपनी दिलचस्पी हैं, उसे आम जनता के दुख और तकलीफ से कोई मतलब नहीं। ये सारे के सारे जनता की आंखों में धूल झोंकने आये हैं। हमारा मानना है कि अभी तो ये शुरुआत हैं, आगे-आगे देखिये क्या होता हैं? दुमका की ये घटना, मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए एक प्रकार से खतरे की घंटी हैं।
Now a days along with price of petrol ,price of broomstick is going up because of swach aviyan,though there is plenty of 2nd hand brooms available in the market . People are not ready to accept used variety.