BJP व कांग्रेस के दलबदलूओं, टिकट के लिए पलटियामार कला में पारंगत लोगों, मेरे पास आओ, केला खाओ
भाड़ में जाये भाजपा और भाड़ में जाये कांग्रेस, हमें हर हाल में टिकट चाहिए, चाहे वह किसी भी पार्टी का ही क्यों न हो? हमारे पास इतना माल और इतना औकात है कि आराम से चुनाव जीत जायेंगे, बस हमें कोई भी दल सिर्फ अपना टिकट थमा दें, चाहे वह पार्टी बच्चों वाली ही क्यों न हो? चाहे उसका सुप्रीमो लगातार दो बार हार का स्वाद ही क्यों न चखा हो? चाहे वह एक-दो सीटों पर ही सिमट जानेवाला पार्टी ही क्यों न हो?
चाहे वह हमेशा सत्ता से चिपकने वाला ही पार्टी क्यों न हो? चाहे आनेवाले समय में वह पार्टी एक बार फिर चाहे किसी की ही सत्ता क्यों न आ जाये, उसके साथ वह चिपक ही क्यों न जाये, अगर उसमें चिपकने और चिपकाने की कला मौजूद हैं, तो हमारे लिए यह सोने में सुहागा हैं, ऐसे ही पार्टी की तो दलबदलूओं की जरुरत हैं, और दलबदलूओं को ऐसी पार्टी की आवश्यकता, ताकि बिना हर्रे-फिटकरी लगे, रंग चोखा हो जाये, जी हां अगर हमनें इतनी बात लिख दी तो आप समझ गये होंगे, कि यहां मैं किस पार्टी की बात कर रहा हूं। वह पार्टी हैं – आजसू।
फिलहाल यह पार्टी बहुत उछल रही हैं, ऐसे भी उसका उछलना वाजिब भी हैं, क्योंकि राज्य के प्रमुख नेता,जो राष्ट्रीय पार्टियों से जुड़े रहे हैं, जिन्हें इस बार उनकी पार्टियों ने इस बार टिकट का लॉलीपॉप नहीं चभाया, वे अंगूर खट्टे हैं कहकर आजसू में जाकर टिकटवाली लॉलीपॉप जमकर चाभ रहे हैं, यानी हम ऐसे लोगों की इन हरकतों पर कह सकते है कि फिलहाल राष्ट्रीय पार्टियों के दलबदलूओं की पहली पसन्द राज्य की आजसू पार्टी हो गई हैं, जिसके सुप्रीमो सुदेश महतो हैं।
ऐसे भी जो राजनीतिक पंडित हैं, वे ऐसे ही नहीं झारखण्ड को राजनीतिक प्रयोगशाला कहते हैं, यानी झारखण्ड ऐसा राज्य हैं, जहां नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं दिखती, अगर कोई राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल यह कह रहा है कि उसने नैतिकता का संकल्प लिया हैं, तो वह एक नंबर का झूठा और बेईमान हैं, वह जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा हैं। यहां सर्वाधिक अगर किसी ने नैतिकता को शर्मसार किया तो वह भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल इस प्रकार के नेता हैं, जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ की राजनीति कर, अपने और अपने परिवार का भविष्य संवारा तथा जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया।
जरा देखिये, जिस कांग्रेस ने प्रदीप बलमूचु को कहां से कहां लाकर खड़ा किया, आज टिकट नहीं मिली तो उन्होंने आजसू का दामन थाम लिया। जरा देखिये राधाकृष्ण किशोर को, इनके बार में कहां जाता है कि कांग्रेस, जदयू, भाजपा अब आजसू पता नहीं, इन्होंने अब तक कितने राजनीतिक दलों के घाटों का पानी पिया हैं, और आनेवाले समय में कितने घाटों का पानी पीने का सपना संवार रखा हैं।
राजनीतिक पंडितों की माने, तो आजसू ने भाजपा को संबक सिखाने के लिए इन दलों के नेताओं, जिन्हें इनके यहां से टिकट नहीं मिली, उनके लिए दरवाजा खोल रखा हैं, आइये टिकट लीजिये, चुनाव जीतेंगे या हारेंगे, आपकी किस्मत, पर आजसू आपको टिकट देने में कोई कोताही नहीं बरतेगी, आराम से आइये, केला खाइये, केला खिलाइये, मोटा हो जाइये, राज्य मोटा हो या न हो, इसकी गारंटी भी हम मांगने को नहीं जा रहे, बस इतना कीजिये कि जैसे हमने आपको बुरे वक्त में टिकट रुपी उपहार प्रदान किया, आनेवाले समय में हमारा यह उपकार नहीं भूलियेगा।
इधर बेचारी भाजपा क्या करें? उसे समझ ही नहीं आ रहा, जिसे टिकट काटा, वह उसी की सहयोगी पार्टी से टिकट लेकर, उसी को आंख दिखा रहा हैं, और भाजपा को हराने का काम कर रहा हैं, हालांकि ये जीतेंगे तब भी भाजपा को ही सहयोग करेंगे, पलटी मारेंगे, ये पलटी भी अनोखा होगा, क्योंकि झारखण्ड पलटीमार विधायकों के लिए ही तो जाना जाता हैं, क्या लोग भूल गये कि झाविमो के छः विधायकों ने 2015 में और बाकी एक विधायक ने 2019 के चुनाव में आखिर-आखिर तक पलटी मार ही दी, ऐसे में ये आजसू में जाकर, चुनाव जीतने (हालांकि चुनाव जीतने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती) के बाद पलटी नहीं मारेंगे, इसकी कौन गांरटी देगा?