अपनी बात

करिया मुंडा को नजरंदाज करना नीलकंठ को भारी पड़ सकता हैं, भाजपा की हालत खूंटी में ठीक नहीं

खूंटी में जो लोग रघुवर के अतिप्रिय ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा को बेहतर स्थिति में मानकर चल रहे हैं, उनके लिए इस बार का विधानसभा चुनाव उन्हें सकते में डाल सकता है। फिलहाल खूंटी में विपक्ष मजबूत स्थिति में हैं, क्योंकि पिछले कई सालों से पत्थलगड़ी मामले को झेल रहा खूंटी, नक्सलियों व ईसाई संगठनों के इन स्थानों पर तेजी से मजबूत होने के कारण चुनाव की स्थिति बदलकर रख दी है।

हालांकि आर्थिक रुप से बहुत ही मजबूत हो चुके नीलकंठ को लग रहा है कि उन्हें खूंटी में कोई चुनौती नहीं दे सकता, नीलकंठ को यह भी लगता है कि चूंकि भाजपा में आदिवासियों के नाम पर अर्जुन मुंडा के नाम के बाद वहीं आदिवासियों के फिलहाल सबसे बड़े नेता है, उन्हें यह भी लग रहा है कि अगर भाजपा इस बार सत्ता के करीब पहुंची और 2014 के विधानसभा चुनाव की तरह जैसे अर्जुन मुंडा चुनाव हारे थे।

अगर रघुवर दास इस बार जमशेदपुर पूर्व से हार का स्वाद चख गये, तो मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार वे ही होंगे। वे यह मानकर चल रहे हैं, उन्हें इस बात का गर्व हो चुका है कि खूंटी में अब करिया मुंडा का कोई अस्तित्व नहीं रह गया हैं, जो हैं तो वहीं है, इसलिए वे भाजपा के यहां के अधिकारियों की भी नहीं सुन रहे हैं, और जो लोग हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा को हराने के लिए जी-जान से लगे थे, फिलहाल उनसे उनकी घनिष्ठता बढ़ गई हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि खूंटी में आज भी संघ और भाजपा के लोगों के बीच में करिया मुंडा की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हुई हैं, जबकि नीलकंठ सिंह मुंडा मंत्री रहने के बावजूद अपनी लोकप्रियता की ग्राफ में कोई खास वृद्धि नहीं कर पाये, सूत्र बता रहे है कि इतना होने के बावजूद अभी तक नीलकंठ सिंह मुंडा ने करिया मुंडा से सम्पर्क नहीं साधा हैं, जबकि संघ और भाजपा के प्रति सदैव अनुराग रखने के कारण नीलकंठ सिंह मुंडा को जीत का आशीर्वाद करिया मुंडा ने दे रखा है।

इसी बीच सूत्र बता रहे है कि ऐसे हालात में भाजपा के कट्टर समर्थक दुविधा की स्थिति में हैं कि वे करें तो क्या करें, दूसरी ओर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने खूंटी में सुशील लौंग को अपना उम्मीदवार बना दिया है, सुशील लौंग के बारे में बताया जाता है कि इनकी अर्जुन मुंडा से बहुत ही करीबी रिश्ते हैं, उतारने के लिए तो झारखण्ड विकास मोर्चा ने दयामनि बारला को भी यहां से उम्मीदवार खड़ा किया हैं,पर यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच में ही हैं।

जैसा की सूत्र बता रहे हैं अगर वर्तमान स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया, तो खूंटी से भाजपा पिछड़ सकती हैं, उसे झटका लग सकता है, क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच के इन अंतरों में काफी परिवर्तन आ गया हैं, यहां कांग्रेस ने महागठबंधन के उम्मीदवार को समर्थन दे दिया है, पर कांग्रेस के कुछ लोग, अंदर ही अंदर भाजपा को समर्थन देने की बात कर रहे हैं, ये वे लोग हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा के अर्जुन मुंडा को हराने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी थी, लेकिन इसी बीच कांग्रेस के कुछ लोगों की भाजपा के साथ निकटता, भाजपा के लोगों को दूसरे दलों की ओर ले जाने को मन बनाने पर तैयार कर रही हैं, अगर ऐसा होता हैं तो रिजल्ट क्या होगा? समझते रहिये।