अपनी बात

इसका मतलब राज्य के IAS/IPS, सरकार, चुनाव आयोग और जनता, इन तीनों को उल्लू बना रहे हैं

कल जिस प्रकार झारखण्ड विधानसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने यह कह दिया कि अधिकारियों की रिपोर्ट से नहीं लगता कि झारखण्ड में नक्सलवाद खत्म हुआ, उससे तो साफ यहीं लग रहा है कि झारखण्ड के आइएएस व आइपीएस का समूह, राज्य सरकार, चुनाव आयोग और यहां की जनता, इन तीनों को नक्सलवाद के नाम पर उल्लू बना रहा है, नहीं तो इतना तो तय जरुर है कि सरकार, चुनाव आयोग और इन अधिकारियों में से कोई न कोई तो झूठ अवश्य बोल रहा हैं, आखिर ये तीनों में से कौन हैं जो बड़ी सफाई से झूठ बोल रहा हैं और पकड़ा भी नहीं जा रहा।

कल ही देश के गृह मंत्री अमित शाह ने पलामू की एक चुनावी सभा में कह दिया, जिसे भाजपा वाले ही अपने सोशल साइट में प्रमुखता से डाल रखा है, और इस बात का जिक्र किया है कि अमित शाह ने कहा कि सीएम रघुवर दास ने झारखण्ड में जो बड़ा काम किया हैं वो है नक्सलवाद का खात्मा, जिसके कारण बिजली पानी, गैस सिलिंडर सब पहुंच गया, लीजिये अब तो देश के गृह मंत्री भी कह दिये कि झारखण्ड में नक्सलवाद का खात्मा, तो अब किसकी बात सुनी जाये, जब देश का गृह मंत्री कह रहा कि नक्सलवाद का खात्मा हो गया तो फिर झारखण्ड में पांच चरणों में चुनाव क्यों? आखिर कौन हैं वह झूठ का बेताज बादशाह जिसके चक्कर में झारखण्ड वासी दो महीने तक पीसने को मजबूर हो गये।

आखिर वह कौन ऐसी सरकारी एजेंसी है जो चुनाव आयोग, राज्य सरकार, केन्द्र सरकार को अलग-अलग रिपोर्ट भेजती है, जिसके रिपोर्ट पर सीएम रघुवर और देश के गृहमंत्री का बयान एक जैसा होता हैं और चुनाव आयोग का बयान, चुनाव के समय पलट जाता है, भाई जनता को ये जानने का हक हैं या नहीं कि उसके राज्य में नक्सलवाद हैं भी या नहीं, या नक्सलवाद भी चूं-चूं का मुरब्बा हो गया, जिसे देखो, उसने उस प्रकार से इस्तेमाल कर लिया।

जरा देखिये, कल रांची में सुनील अरोड़ा क्या कह रहे हैं? वे कहते है कि अधिकारियों ने आशंका जतायी है कि चुनाव प्रक्रिया बाधित करने के लिए इस बार कोई नया तरीका नक्सली अपना सकते हैं, अब सवाल उठता है कि ये संवाद तो वहीं कह सकता है, जिसका खुफिया नेटवर्क बहुत ही मजबूत हो, और जब इनका खुफिया नेटवर्क इतना ही मजबूत हैं, तो फिर बड़े पैमाने पर इनके पुलिसकर्मी नक्सली घटनाओं में कैसे मारे जाते हैं? नक्सल प्रभावित राज्य होने के कारण ही पांच चरण में चुनाव कराये गये, तो ऐसे तो इस देश में कई राज्य हैं, जो नक्सल प्रभावित हैं, वहां पांच चरणों में चुनाव क्यों नहीं, इसका इस्तेमाल सिर्फ झारखण्ड विधानसभा चुनाव में ही क्यों?

मुख्य चुनाव आयुक्त का यह कहना कि राज्य में नक्सलवाद खत्म होने की कोई सूचना चुनाव आयोग को नहीं है, सरकार क्या कहती है, कोई मंत्री क्या कहता है या सदन के अंदर क्या बातें होती हैं, पता नहीं, आयोग ने झारखण्ड के अधिकारियों की रिपोर्ट देखी है और उनसे बातचीत की, इसके बाद ऐसा नहीं लगता कि नक्सलवाद में कोई कमी आई है, इसका मतलब चुनाव आयोग को अपने देश के सदन पर भी विश्वास नहीं, और जब चुनाव आयोग को सदन पर विश्वास नहीं तो फिर आम जनता सदन पर कैसे विश्वास करें?

सिर्फ इसलिए कि सदन में बैठनेवालों को उसने चुन कर भेजा, और जिसने चुनने में मुख्य भूमिका निभाई, उसका कोई फर्ज नहीं बनता, ये भी नहीं कि वह सदन पर विश्वास तक कर सकें, भाई ये तो सचमुच ही धमाल है, कम से कम पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषण को यहां इस वक्त रहना चाहिए था, वे रहते तो कम से कम इस बयान पर निःसंदेह खुद भी चक्कर में पड़ जाते, शायद यहीं कारण है कि झारखण्ड के चुनाव के पूर्व ही वे इस दुनिया को बाय-बाय कर दिये।