जनता के बीच विश्वसनीयता खोते रांची के प्रमुख राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय अखबार और सम्मान खोता पत्रकार
आप रांची के मेयर्स रोड स्थित सूचना भवन चले जाइये, आप वहां किसी भी अधिकारी के पास जाकर, रांची से प्रकाशित होनेवाले अखबारों का बंडल मांगिये, आप देखकर हैरान रह जायेंगे कि आजकल रांची में भी कुकुरमुत्ते की तरह अखबार प्रकाशित होने लगे हैं, और ठीक इसी तरह भेड़िया धसान चैनल व पोर्टलों की लाइन लग चुकी हैं।
कमाल है, इन भेड़ियां धसान अखबारों व पोर्टलों में कट-पेस्ट की बीमारी को धारण किये पत्रकारों का समूह इस प्रकार से ज्ञान बखान कर रहा हैं, जैसे लगता है कि वो इंडियन एक्सप्रेस का ग्रुप एडिटर या किसी दक्षिण भारतीय भाषाओं में छपने वाले किसी प्रतिष्ठित अखबार का संपादक हो। इन सब का काम क्या है? तो किसी अखबार के कार्यालय में जाना और कहीं से कट-पेस्ट करके न्यूज निकालकर चार से सोलह पेज का पचास-सौ प्रतियां अखबार निकालना तथा और कहीं दे या न दें, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में जाकर डाल आना, और फिर बाद में वहां के अधिकारियों पर दबाव बनाना कि उसे डीएवीपी या सरकारी स्तर पर विज्ञापन दिया जाये।
अगर इन पत्रकारों में से अच्छा चाटुकार निकल गया, जिसकी वरीय अधिकारियों से पटने लगी तो लीजिये, उसकी कमाई निकल पड़ी और जो नहीं ऐसा कर सका, बस उसी समय उसको एक बीमारी लग गई कि “बड़ा भ्रष्टाचार है”, ये संवाद कहते हुए पूरी बिल्डिंग और यत्र-तत्र इन बातों को फैलाते रहना, और ऐसा नहीं कि ये जो बोल रहा हैं, वो गलत है, यहीं सच्चाई भी है।
मैंने देखा है कि कई ऐसे धूर्त पत्रकार है, जिनकी अच्छी निकल पड़ी हैं और वे लाखों-करोड़ों में खेल रहे हैं, यहीं नहीं ऐसा करके ये आइएएस-आइपीएस अधिकारियों से मिलकर, ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेल में दिलचस्पी लेकर भी अच्छा कमा लेते हैं, अपने मनपसन्द लोगों को विभिन्न विभागों में ठेका-पट्टा दिलाना भी इनका काम हैं, कुछ तो ठेका-पट्टा में लिप्त लोगों को ब्लैकमेलिंग कर भी अच्छा धंधा चला रहे हैं और जो कुछ लोगों को इनमें ज्ञान प्राप्त हुआ तो उनमें से कई बिल्डर और ठेकेदार भी पत्रकार बनकर अपना धंधा को एक बेहतर दिशा भी दे रहे हैं।
हालांकि ये बातें जो हमने लिखी हैं, वो निरन्तर चलती रहेगी, इसे कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि जो आदमी के रुप में छुछुंदर हैं, उसे आप लाख कुछ कर लें, आप उसे शेर नहीं बना सकते और जो शेर हैं तो वह शेर है ही, उसे छुछुंदर भी नहीं बना सकते, लेकिन सच्चाई यही हैं। इधर मैं देख रहा हूं कि जब से झारखण्ड में चुनाव की घोषणा हुई हैं, कई ऐसे अखबार है, जिन्होंने चुनाव की रिपोर्टिंग में ईमानदारी नहीं बरती है, जिसके कारण ये सारे अखबार आज जनता की नजरों में पूर्णतः गिर चुके हैं।
मैंने झारखण्ड के कई इलाकों में गया हूं, आज लोग बोलने लगे हैं कि अखबार, चैनल व पोर्टल तो सत्ता के दलाल हो गये, अब जनता की बात कौन करता है, जिसे देखों वह सत्ता की दलाली करता है, ऐसे में हमें न तो अखबार चाहिए, न चैनल और न पोर्टल की सहायता। आज तो रांची में ही कई ऐसे इलाके हैं, जहां के घरों में टीवी बस एक शो-पीस बनकर रह गया हैं।
पूछने पर लोग बताते है कि उन्हें टीवी देखें, जमाना बीत गये, जबकि एक समय था कि सिर्फ एक चैनल दूरदर्शन रहने के बावजूद लोग टीवी से चिपके रहते थे, और आज सैकड़ों चैनलों के विकल्प लोगों के पास हैं, पर लोग चैनल नहीं देखते, कारण स्पष्ट हैं, लोग चीखने-चिल्लानेवाले एंकर तो देखना नहीं चाहते, क्योंकि चीखने-चिल्लाने वाले एंकरों को देखने का मतलब अपना दिमाग खराब करना, झूठे मक्कार नेताओं को देखने का मतलब है अपनी आंखे और सोच दोनों खराब करना, इससे अच्छा है कि आराम से दूसरी अच्छी किताबें पढ़ते रहे, इससे ज्ञानवर्द्धन भी हो जाता है, और दिल तथा मन को अच्छी खुराक भी मिल जाती हैं, क्योंकि दिल तथा मन का पोषण भी तो जरुरी है।
इधर मैं देख रहा हूं कि राज्य के सभी प्रमुख बड़े एवं छोटे अखबारों तथा चैनलों ने खुद का भाजपाईकरण कर लिया है, उनके अखबारों में भाजपा तथा इनसे जुड़े छोटे या बड़े नेताओं की बड़ी प्रमुखता से खबर प्रकाशित की जा रही हैं, चैनलों में स्थान दिया जा रहा हैं, लेकिन जैसे ही राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों की बात आ रही हैं, उन्हें पूरे प्रदेश की जनता के सामने इस प्रकार दिखाया या परोसा जा रहा हैं, जैसे लगता है कि ये लड़ाई में कही हैं ही नहीं, एक तरफा चुनाव है, और भाजपा ही जीतेगी, जबकि ऐसा कही नहीं हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो चुनाव इस बार भाजपा के लिए बहुत ही भारी पड़ने जा रही हैं, सीएम रघुवर और उनके इशारों पर दिये गये कुछ दागी लोगों को टिकट ने भाजपा की छवि को पूरे झारखण्ड में वह नुकसान पहुंचाया है कि भाजपा को खुद पता है कि 20-25 से ज्यादा सीटें उसे नहीं मिलने जा रही, फिर भी चूंकि चुनाव की अधिसूचना जारी होने तथा आदर्श आचार संहिता लागू होने के पूर्व जो अखबारों व चैनलों पर विज्ञापनों की उदारता दिखाई गई।
उसकी उदारता में आज सभी अखबार व चैनल स्वयं को सजा कर भाजपा के समक्ष खड़े हो जा रहे हैं, यही नहीं भाजपा वाले भी इन अखबारों व चैनलों के लोगों को विभिन्न अपनी प्रमुख सभाओं में ले आने-ले जाने से लेकर उनकी हर सुख-सुविधाओं का ध्यान रख रहे हैं, जिसका फायदा भाजपाइयों को प्राप्त हो रहा हैं, इसके ठीक उलट विपक्ष के पास उतने संसाधन नहीं कि वो इन अखबारों व चैनलों के लिए विशेष प्रबंध कर सकें।
लेकिन जनता की बात करें तो फिलहाल राजनीतिक पंडितों की नजरों में महागठबंधन के प्रति लोगों का प्रेम जैसे-जैसे चुनाव आ रहा हैं, बढ़ता जा रहा हैं, अगर यहीं हाल रहा तो यहां भाजपा कहा फेंकायेंगी, समझ नहीं आ रहा, लेकिन अखबार व चैनलवाले भी जान लें कि वे भी जनता की नजरों में कहां फेकायेंगे, इसकी अभी से ही तैयारी कर लें, क्योंकि वो दिन दूर नहीं कि लोग पत्रकार का नाम सुनते ही लाठी लेकर दौड़ें, हालांकि देश के अन्य भागों में ऐसी एक-दो खबरें अभी से आनी शुरु हो गई है।