“ए चंदा मामा, आरे आव, बाड़े आव” लोरी सुनकर बड़े होनेवालों, तुम्हें भोजपुरी में अश्लीलता कहां से दीख जाती है
जब-जब होली आता है, भोजपुरी में फुहड़ता है, भोजपुरी के गीत अश्लील होते हैं, ऐसी बातें कहनेवालों की संख्या बहुतायत हो जाती है, इधर जब से बिहार सरकार ने कथित अश्लील गीत बजाने पर प्रतिबंध लगाया है, तो ऐसा कहनेवालों की संख्या भी बलवती हो गई है, पर सच्चाई यह भी है कि ऐसा कहनेवालों की मोबाइल की ठीक ढंग से जांच हो जाये, तो इनमें 80 से 90 प्रतिशत लोग अश्लील फिल्में या अश्लील डांस या अश्लील गीतों को सुनते अथवा देखते मिल जायेंगे, जिसे सभ्य भाषा में ड्यूल करेक्टर भी कहते हैं।
मैं पूछता हूं कि क्या केवल भोजपुरी गीत ही अश्लील व फूहड़ होते हैं, अगर केवल भोजपुरी गीत ही अश्लील व फूहड़ होते हैं तो “चोली के पीछे क्या है? चोली के पीछे…, पिया तू अब तो आजा, सोला सावन भड़के आके बुझा जा…, सरकायलो खटिया जाड़ा लगे” के बारे में क्या ख्याल है, क्या ये हिन्दी गीत अश्लील नहीं, या इसे महान गीतकारों-संगीतकारों ने तैयार कर दिया, इसलिए ये सही हो गये।
सच्चाई यह है कि सदियों से हमारे समाज में नाना प्रकार के वर्ग है, जो अपनी-अपनी पसंदों व मन-मस्तिष्क के अनुसार गीतों को पसन्द करते हैं, गाते-झूमते हैं, लेकिन एक खास वर्ग के पसन्द करने पर आप पुरे भोजपुरी गीतों को इसी श्रेणी में ले आयेंगे तो फिर हमें नहीं लगता कि आप सही कर रहे हैं।
मुझे तो आज भी भोजपुरी गीतों के बोल कर्णप्रिय और दिल को छूनेवाले लगते हैं, अगर नहीं तो जरा इस पर ध्यान दिजिये…, आप खुद कहेंगे, कि भोजपुरी तुम्हारा जवाब नहीं। मैं तो कहता हूं कि शायद ही कोई ऐसा आदमी होगा, जो अपनी मां के मुख से ये भोजपुरी गीत नहीं सुना होगा, या इसे सुनकर बड़ा नहीं हुआ होगा?
जैसे – ए चंदा मामा, आरे आव, बाड़े आव, नदिया किनारे आव, बबुआ के मुंहा में घुटुक… (फिल्म – )। जुग-जुग जियसु ललनवा भवनवा के भाग जागल हो, ललना लाल होइहे…(फिल्म- पिया के गांव), दुसरी ओर जब उसने जवानी की दहलीज पर कदम रखे होंगे तो ये गीत नहीं गुनगुनायें होंगे…
लाल-लाल होठवा से बरसे ललइया हो कि रस चुवेला, जैसे अमवा का मोजरा…(फिल्म – लागी नाही छूटे राम)
जोगी जी, धीरे-धीरे, नदी के तीरे-तीरे, जोगी जी कोई ढूंढे मूंगा, कोई ढूंढे मोतिया, हम ढूंढे अपनी जोगनिया को….(फिल्म- नदिया के पार)
हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो, सैया से करदे मिलनवां…(फिल्म – गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो)
कहने का तात्पर्य है कि अगर हम/आप भोजपुरी के सुंदर, प्रभावशाली, आत्मीय गीतों को सुनना शुरु करें, तो आप आश्चर्य करेंगे कि भोजपुरी में भी सुंदर गीत लिखे गये हैं, पर जैसे हिन्दी गीतों के साथ हुआ, वैसा ही भोजपुरी गीतों के साथ हुआ। जरा देखिये भोजपुरी का यह क्रांतिकारी गीत – ना डरबे, ना डरबे, ना डरबे राम, ना डरबे राम, जान लेके हथेली पे चलवे जमाने से ना डरबे राम (फिल्म-बिदेशिया)
आप चलता-फिरता, काम चलाऊ, टपोरी गायकों के गाये हुए गीतों को भोजपुरी कहकर बदनाम करेंगे, तो ये तो भोजपुरी के लाखों-करोड़ों लोगों के साथ अन्याय कर रहे हैं, आज भी भोजपुरी को माननेवाले लोग जब तक रक्षाबंधन के दिन ये गीत नहीं सुनेंगे, उनका रक्षाबंधन ही नहीं हो पायेगा। गीत के बोल है – रखिया बंधाल भइया, सावन आइल, जिय तू लाख बरिस हो… (फिल्म-लागी नाही छूटे राम)
बिहार में ही, बिहार के कलाकारों ने एक बहुत पहले 1980 के दशक में एक फिल्म बनाई थी, फिल्म का नाम था – कल हमारा है, जरा उसकी होली गीतों को सुनिये, आप कैसे कह सकते है कि हमारे यहां अश्लीलता के पुट है। गीत के बोल थे – डालो रंग, डालो आज होली है, डालो रंग डालो आज होली है…