धर्म

व्यक्ति संकल्पों को पूरा करने में तभी जुटता है, जब तक वो इसकी गंभीरता को नहीं समझ लेता, आप कोई भी संकल्प अवश्य लें और फिर उसे पूरा करने में एकाग्रता, दृढ़निश्चय और उत्साह का प्रयोग करेंः स्वामी ललितानन्द

रांची के योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी ललितानन्द गिरि ने कहा कि नये वर्ष का पहला दिन या कोई भी विशिष्ट पर्व-उत्सव या दिव्य महापुरुषों का जन्मदिन हमारे लिए विशेष दिन लेकर आता है, ताकि हम उस दिन कोई संकल्प लें या स्वयं को बदलने का दृढ़ निश्चय करें, तो उस दिन मिलनेवाली विशेष स्पन्दन का प्रभाव हमारे संकल्पों को पूरा करने में विशेष भूमिका निभा दें और हम एक बेहतर जीवन की ओर कदम बढ़ा दें।

उन्होंने कहा कि हमेशा याद रखिये कि कोई भी विशेष दिन और उस दिन की विशेष ऊर्जा आपको बदलने के लिए काफी है, यह एक अच्छा अवसर लेकर आता है, इसलिए इस दिन का लाभ अवश्य उठाएं, उस दिन एक अच्छा संकल्प अवश्य लें और आगे बढ़ें। उन्होंने परमहंस योगानन्द जी की आध्यात्मिक डायरी में उल्लिखित उन वाक्यांशों को पढ़ा और बताया कि परमहंस योगानन्द जी इन विशेष दिनों पर क्या कहा करते थे?

परमहंस योगानन्द जी के शब्दों में ‘आप जिन आदतों को नववर्ष में दूर करना चाहते हैं, उन्हें चुन लीजिये। उनके बारे में पक्का निश्चय कर लीजिये और अपने निर्णय पर दृढ़ बने रहिये। ईश्वर को अधिक समय देने का संकल्प लीजिये। प्रतिदिन नियमित ध्यान करना और हर सप्ताह एक रात कई घंटे ध्यान करना – ताकि आप ईश्वर में अपनी आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव कर सकें। निश्चय कीजिये कि आप क्रियायोग का नियमित अभ्यास करेंगे तथा अपनी लालसाओं एवं भावनाओं को वश में रखेंगे। अपने स्वामी बनिये।’

स्वामी ललितानन्द गिरि ने कहा कि दया माता ने इन विशेष दिनों को लेकर कहा था कि ऐसे दिनों में जब आप कोई संकल्प लेंगे तो निश्चय ही आप बेहतर स्थिति में होंगे। आप निश्चय कीजिये कि हर हाल में आप एक बुरी आदत छोड़ देंगे और एक नई अच्छी आदत को अपनाकर बेहतर करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि याद रखिये कि इन विशेष दिनों में आकाश सकारात्मक तरंगों से भर जाता है और आपकी संकल्पों को पूरा करने में लग जाता है। इसी से हमें बल व विश्वास मिलता है कि हमें अपने संकल्प को पूरा करने में इससे मदद मिलता है। बिना इसके हम अपनी प्रगति नहीं कर सकते। प्रगति के लिए हमें आतंरिक और बाहरी सीमाओं को तोड़ना आवश्यक होता है।

उन्होंने कहा कि कभी हमें लगता है कि हम ध्यान नहीं कर पायेंगे। नियमित या ध्यान की गहराइयों में नहीं जा सकते। दरअसल स्वनिर्मित या अपने पूर्व के कर्मों के आधार पर बनी इन दुर्बलताओं को आपको तोड़ना ही होगा, इसके बिना कोई दूसरा विकल्प भी नहीं। संकल्प लेने के पहले हमें आत्मनिरीक्षण करना जरुरी है कि हमारी सीमाएं क्या हैं? हमनें कितनी आध्यात्मिक प्रगति की है? अपने संकल्पों का वर्गीकरण करते हुए अपने अंदर की गुणवत्ता को पहचानने कि प्रवृत्ति होनी ही चाहिए और हम क्रियायोग के द्वारा इसमें सफल हो सकते हैं।

स्वामी ललितानन्द ने अपने अनुभवों और उदाहरणों के द्वारा समझाया कि व्यक्ति संकल्प की गंभीरता को तभी समझता है और उन संकल्पों को पूरा करने में तभी जुटता है, जब तक वो संकल्पों की गंभीरता को नहीं समझ लेता। उन्होंने कहा कि संकल्पों की लंबी सूची बनाने से अच्छा है कि आप कोई भी संकल्प जो जरुरी हो, उसे चुन लें और उसे पूरा करने में एकाग्रता, दृढ़निश्चय और उत्साह का प्रयोग करें।

उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति आत्मनिरीक्षण करने के बाद जब संकल्प लेता हैं और उसे अमल में लाने के लिए प्रयास करता हैं, तो उसके लिए संकल्पों को पूरा करने में देर नहीं लगती। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कभी संकल्प को पूरा करने में देर लगे या असफलता हाथ लगे। लेकिन हमेशा याद रखें कि ईश्वर कभी भी असफलताओं को बुरा नहीं मानता, वे तो आपके अंदर इसको लेकर आई उदासीनता को लेकर दुखी हो जाते हैं।

उन्होंने कहा कि हमेशा दिव्य पुरुषों का मानस-दर्शन का प्रयास कीजिये। योगदा परम्पराओं का निर्वहण कीजिये। ध्यान व क्रियायोग की गहराइयों में जाइयें। प्रतिज्ञापन पर ध्यान दीजिये। योगदा द्वारा दी जा रही शिक्षाओं का अनुपालन करना सीखें। आपका जीवन सकारात्मक ऊर्जाओं से भरकर अवश्य ही बेहतर स्थिति में आ जायेगा।

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