फिल्म “संजू” ने दर्शकों को बताया – संजू बाबा टेररिस्ट नहीं, एक अच्छे इन्सान हैं
किसी के बहन या पिता पर कोई आफत आयेगी तो वह भाई या बेटा, अपने विवेक के अनुसार वह हर प्रकार का प्रयास करेगा, जिससे उसकी बहन और उसका पिता सुरक्षित रह सके, शायद सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता संजय दत्त उर्फ संजू बाबा ने भी बाबरी मस्जिद गिरने के बाद जब पूरे देश में दंगे भड़के, और उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता एवं सांसद सुनील दत्त ने मुंबई के दंगा प्रभावित इलाकों में दंगों को रोकने और दंगा पीड़ितों को मदद पहुंचाने में जो उल्लेखनीय योगदान दी, और इस कारण उनके घर पर जो धमकियां आने लगी, उन धमकियों से बचने के लिए संजय दत्त उर्फ संजू बाबा ने अपने घर पर हथियार रखे, जो उनके पूरे जीवन में टेररिस्ट का ऐसा दाग लगाया कि उस दाग से वे कभी उबर ही नहीं पायें, शायद इसी दाग से स्वयं को मुक्त करने के लिए उन्होंने अपने जीवन से संबंधित एक किताब लिखवाने की सोची “कुछ तो लोग कहेंगे”।
अगर “संजू” फिल्म की बात करें, तो मध्यांतर के पूर्व फिल्म बहुत धीमी गति से चल रही होती हैं, पर मध्यांतर के बाद कहानी में जो गति आती हैं, उससे फिल्म देख रहे दर्शक अंत तक कुर्सी से बंधे रहते हैं। इस फिल्म में ड्रग्स ले रहे संजय दत्त की मनःस्थिति को बड़े ही सुंदर ढंग से दिखाया गया हैं, साथ ही संजय दत्त ने अपने बारे में कुछ भी नहीं छुपाया है, उन्होंने अपने चाहनेवालों को खुलकर बताया है कि वे शुरुआत में लड़कियों के पीछे कैसे दीवाने हुआ करते थे, संजय दत्त की दोस्ती का भी जवाब नहीं, चाहे वह खुशी में हो या गर्दिश में हो, अपने दोस्त को उन्होंने कभी नहीं भूला।
फिल्म “संजू” में एक बेटे का दर्द कैसे सुनील दत्त ने झेला, उसे बखूबी दिखाया गया हैं। एक सुखी संपन्न परिवार होने के बावजूद सुनील दत्त को मिले कष्ट ने उन्हें अंदर से तोड़कर रख दिया था, फिर भी वे अपने आप को अपने बेटे संजय दत्त के लिए संभाले रखा। संजय दत्त की पहली फिल्म “रॉकी मेरा नाम” के निर्माण और नरगिस की उस फिल्म से आशाओं का भी जबर्दस्त फिल्मांकन किया गया हैं, अपने बेटे को बचाने तथा देश के सम्मान के साथ कोई समझौता न करने के फैसले के बीच सुनील दत्त और संजय दत्त का चल रहा जीवन, एक पिता के लिए भी उतना ही अनुकरणीय हैं और बेटे के लिए भी उतनी ही अनुकरणीय है। फिल्मकार ने सुनील दत्त के उस दर्द को खूब उकेरा, कि कैसे सुनील दत्त कांग्रेस पार्टी के सम्मानित नेता एवं सांसद रहने के बावजूद, उन्हें किसी भी कांग्रेस के नेता ने उनकी मदद नहीं की, बल्कि उनसे दूरिया बना ली, और इन दूरियों के बावजूद संजय दत्त को एक अच्छे इन्सान बनाने में उन्होंने खूब मेहनत की, जिसे बाद में संजय दत्त ने बखूबी समझा। “मुन्ना भाई एमबीबीएस” फिल्म में दोनों बाप-बेटे की भूमिका और फिल्म में गले लगने की कहानी का चित्रण हृदयस्पर्शी हैं।
संजय दत्त की हथियार रखने और उसके बाद कैसे मीडिया जगत के लोगों ने उनके और उनके परिवार के सम्मान के साथ खेलने की कोशिश की, और कैसे सुनील दत्त ने उन्हें झेला, उसका भी सुंदर वर्णन इस फिल्म में किया गया हैं, खासकर एक अखबार के कार्यालय मे जाकर संपादक से मिल, संजय दत्त से संबंधित न्यूज पर एक पिता सुनील दत्त का दर्द खूब छलका, तथा इस दृश्य में भारतीय पत्रकारिता जगत में आजकल किस प्रकार पीत पत्रकारिता हो रही हैं, उसका भी फिल्मकार ने बखूबी बखान कर दिया है।
येरेवदा जेल में रेडियो सुनाना, संजय दत्त के लिए गजब का काम रहा, संजय दत्त की भूमिका में रणबीर कपूर खूब जमे हैं, अच्छा अभिनय भी किया है, सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल ने एक बार फिर सिद्ध किया है, कि उनका जवाब नहीं, बाकी सभी कलाकारों ने अपने-अपने अभिनय के साथ न्याय किया हैं।
फिल्म “संजू” क्यों देखें – अगर आपको सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता संजय दत्त और उनके पिता सुनील दत्त, मां नरगिस तथा उनके परिवार में दिलचस्पी हैं तो फिल्म जरुर देखें। अगर आप पिता हैं और आप को अपने बेटे का दर्द सालता हैं तो आप यह फिल्म जरुर देखे। जो लोग ड्रग्स के शिकार हैं, या जिनके परिवार के लोग ड्रग्स के शिकार है, वे इस फिल्म को जरुर देखे। पत्रकारिता में जूड़े लोगों के लिए भी ये फिल्म बहुत ही जरुरी हैं। अगर आप कलाकार हैं, चाहे किसी भी प्रकार के कलाकार क्यों न हो, आप ये फिल्म जरुर देखे और अगर आप विपरीत परिस्थितियों में कैसे जीये, ये जानना और सीखना चाहते हैं तो इससे अच्छी फिल्म आपके लिए, दूसरी कोई हो ही नहीं सकती।