अपनी बात

रामगढ़ में आजसू की आशीर्वाद सभा में जनता की अनुपस्थिति और खाली कुर्सियों ने सुदेश महतो की ही नहीं, भाजपा गठबंधन की भी नींद उड़ाई, इस बार चंद्र प्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी का यहां से जीत पाना मुश्किल

कल रामगढ़ के बाजार टांड़ स्थित सिदो-कान्हु मैदान में आजसू ने नामांकन आशीर्वाद सभा का आयोजन किया था। जहां जनता की अनुपस्थिति और खाली कुर्सियों ने आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की ही नहीं, बल्कि भाजपा गठबंधन की भी नींद उड़ा दी। कल की सभा को देखकर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार गिरिडीह के सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी का जीत पाना यहां से इतना आसान नहीं, स्थिति सुनीता चौधरी के अनुकूल नहीं हैं।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर स्थितियां इनके अनुकूल रहती तो जनता की उपस्थिति अवश्य रहती, साथ ही यहां एक भी कुर्सियां खाली नहीं रहती। लेकिन यहां तो 90 प्रतिशत कुर्सियां खाली रह गई। जो बता रहा है कि सुदेश महतो और उनके चंद्रप्रकाश चौधरी तथा चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी की राजनीति अब थमती जा रही है। आप माने या न माने, आजसू अब हर जगह दम तोड़ती नजर आ रही है।

ऐसे भी राजनीतिक पंडित मान रहे है कि 2024 का झारखण्ड विधानसभा चुनाव ही अब तय करेगा कि सुदेश महतो की राजनीति झारखण्ड में चलेगी या नहीं चलेगी यानी वे कुर्मियों के नेता बने रहेंगे या उनकी जगह जयराम महतो जैसे लोग ले लेंगे। अगर जयराम महतो की पार्टी इस बार आजसू से ज्यादा सीटे ले आती हैं तो निश्चय ही सुदेश महतो जैसे लोगों का यहां की राजनीति में पूर्ण विराम लग जायेगा।

कल की रामगढ़ के बाजार टाड़ में संपन्न हुई बिना जनता की सभा ने निश्चय ही सुदेश महतो और उनकी पार्टी को तनाव में ला दिया होगा, साथ ही उन्हें भी तनाव में ले आया होगा, जो इनके साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि कल रामगढ़ में हुई आजसू की सभा और उसमें जनता की अनुपस्थिति तथा खाली कुर्सियों की रिपोर्ट भाजपा के पास भी हैं। लेकिन वे इस मुद्दे पर चुप हैं, बोलना नहीं चाह रहे।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो वर्तमान में जैसे भाजपा हर जगह से पिछड़ रही हैं। उसी प्रकार भाजपा का सहयोगी होने के कारण आजसू पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है। कई राजनीतिक पंडित तो सुदेश महतो के भी जीत पर प्रश्नचिह्न खड़े कर रहे हैं। उनका कहना है कि सिल्ली से वे जीत ही जायेंगे, इसका कोई भरोसा नहीं, इसलिए वे एक और सीट टुंडी से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन अंततः भाजपा ने वहां अपना उम्मीदवार दे दिया। इसलिए अब ये भी संभावना जाती रही। कुल मिलाकर इस बार भाजपा और आजसू का सम्मान दांव पर लगा है। देखते हैं, जनता क्या फैसला करती है?

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