अपनी बात

दरअसल चमचई की पराकाष्ठा है – “शिष्टाचार भेंट”, इससे कुछ होता नहीं, पर सामनेवाला थोड़ा उछल जरुर जाता है

सही मायनों में देखियें तो शिष्टाचार भेंट कुछ होता ही नहीं हैं, ये चमचई की पराकाष्ठा है, जिसको कुछ नहीं करना है, वो एक बुके ले लेता हैं और गवर्नर तथा मुख्यमंत्री के कार्यालय में बुके ले जाकर खड़ा हो जाता है, फिर इन कार्यालयों के बाबूओं द्वारा ग्रीन सिग्नल मिलती हैं तो संबंधित व्यक्ति जिसको चमचई का कीड़ा काटे हुए रहता है, दांत निपोड़ता हुआ वेलकम या कोई भी अंग्रेजी की टूटी-फूटी शब्द बोलते हुए जिससे मिलने आया है, उसे बूके थमा देता हैं।

फिर वह कुर्सी पर बैठकर, इधर-उधऱ की बातें करता हुआ फोटो खींचवाता है, फोटो ग्रहण करता है और बाहर निकलकर शेखी बघारता है कि फलां गवर्नर, फलां मुख्यमंत्री उसे बेहतर ढंग से जानता है, जबकि ऐसा कुछ होता नहीं हैं, क्योंकि गवर्नर या मुख्यमंत्री के पास उसके जैसे कितने धूल छूनेवाले आते रहते हैं।

राजनतिक पंडितों की मानें तो दरअसल ये विशुद्ध आरती कार्यक्रम है, पर नाम शिष्टाचार भेंट रख दिया गया हैं। यह पूछे जाने पर कि शिष्टाचार भेंट को आरती कार्यक्रम क्यों? तब राजनीतिक पंडितों का कहना था कि आप देखेंगे, जैसे मंदिरों में पुष्प माला लेकर पहुंचा भक्त भगवान के हाथों या उनके गले या उनके श्रीचरणों में पुष्प अर्पित कर देता हैं, तो उस वक्त आंखे बंदकर बुदबुदाता हैं।

पर यहां आंखे बंदकर नहीं, बल्कि खोलकर बुदबुदाता हैं, मन में इस प्रकार की भावना रखता है कि सामनेवाले गवर्नर या मुख्यमंत्री के आगे लहालोट हो रहा हैं, गवर्नर और मुख्यमंत्री भी सामने दिख रहे भक्त के इस लहालोट पर स्वयं को अनुप्राणित करता रहता है कि काश जब तक उसकी जिंदगी रहे, इन्हीं कुर्सियों पर समाप्त हो जाये ताकि उसकी जिंदगी स्वर्गमय हो जाये।

क्योंकि ये दोनों महाशय जानते है कि स्वर्ग नरक कही दूसरी जगह नहीं, जो मस्ती में हैं वो स्वर्ग में हैं, और जो गफलत में हैं वो नरक में हैं। उसी प्रकार गवर्नर व मुख्यमंत्री की कुर्सी पा लेना ही स्वर्ग की यात्रा पर सवार हो जाने के बराबर होता है, इसलिए इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं होता। फिलहाल अभी हमारे झारखण्ड राज्य में शिष्टाचार भेंट यानी आरती कार्यक्रम खुब चल रहा हैं।

और ये अभी चलेगा, नये-नये जनाब आये हैं, तो लहालोट होइये, मस्ती में डूब जाइये, लाट साहेब के गुण गाइये, और उन्हें स्वर्गिक जीवन के आनन्द प्राप्त करने की बधाई दे आइये, हो सकें तो आरती कार्यक्रम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर आइये, क्योंकि चमचई करना भी कोई आसान बात नहीं, बाबा चम्मच दास ने स्वलिखित दोहे में बताया है…

धन्य-धन्य वे लोग हैं, करते जो शिष्टाचार भेंट।

मूरख संग इतराये खूब, पत्नी-पुत्र समेत।।