अधिवक्ता अभय कुमार मिश्रा ने कोचिंग के नाम पर मची लूट को सीधा करने का लिया संकल्प, केन्द्र व राज्य सरकार के शिक्षा मंत्रालयों को सुनाई खरी-खोटी, चलवायेगे कानूनी डंडा
झारखण्ड हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभय कुमार मिश्रा ने संकल्प लिया है कि वे कोचिंग के नाम पर मची लूट को सुधारने का काम करेंगे। भोजपुरी भाषा में कहे तो सोझा करेंगे। कानूनी डंडा चलवायेंगे। उन्होंने कहा कि सामान्य स्कूलों में लगनेवाले सामान्य फीसों को देने में गार्जियन आंख तरेरने लगते हैं। लेकिन इन्हीं कोचिंग संस्थानों पर लाखों लूटाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती, जबकि इसके लिए वे अपना सब कुछ लूटा चुके होते हैं। अभय कुमार मिश्रा इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार की शिक्षा व्यवस्था व शिक्षा मंत्रालयों में रहनेवाले अधिकारियों और मंत्रियों को दोषी ठहराते हैं।
अभय कुमार मिश्रा कहते हैं कि कल वो गये थे लालपुर, आंख में आंसू आ गये, कोचिंग के मधुमक्खी का छत्ता देख कर। अभिभावक स्कूल को 1000 रूपए देने में रोना रोते हैं और यहां लाखों-लाख कैसे देते हैं? वो भी पेट काट कर, लोन लेकर भूखे रह कर और ये मालामाल हो रहे हैं। इनका शुल्क कौन निर्धारित करता है।
कैसे ये मात्र कुछ घंटे पढ़ाने के एक कमरे में लाखों लेते हैं? भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय, राज्य सरकार का शिक्षा मंत्रालय क्यों चुप रहता है? क्या करोड़ों के कमाई में से विभाग को भी लाभ होता है? लूट मची हुई है। बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार मौन है। क्यों मौन है? एक कानून पारित हुआ तो लागू नहीं हुआ। मुझे लगता है सरकार कुछ नहीं करेंगी। अब जनता को ही कुछ करना होगा। इसी बीच जब ये सब सोच ही रहे थे कि उसमें से मिश्रा कोचिंग सेंटर तो उनके द्वारा चित्र उतारते देख आ गया झगड़ा करने।
अभय मिश्रा ने पूछा क्यों चित्र लेना मना है क्या? आपने ही तो बाहर मे लगाया है। उनके एक कर्मचारी तो आवेशित हो गया। लगा चिल्लाने। उन्होंने बोला चिल्लाओ मत, शांति से बात करो। मगर वे कहा मानने वाले थे। चिल्ला चिल्ला कर लगे हल्ला करने। अब कर्मचारी ने तो चिल्ला कर उन्हें डांट दिया। आगे तो कार्यवाही शुरू होगा।
अभय मिश्रा के अनुसार असल में उनकी गलती नहीं, यह सीधा पैसे की गर्मी है। भोले भाले लोग अनाप-शनाप पैसा जो दे रहे हैं। एक छोटे से कर्मचारी के आवेश में चिल्ला-चिल्ला कर बोलने से आगे-आगे देखिए होता है क्या? उन्होंने पार्किंग में देखा। बहुत महंगी-महंगी एक-डेढ़ करोड़ की गाड़ियों को तो पूछने पर पता चला। कोचिंग सेंटर के लोगों का है।
दुर्भाग्य है इस देश का शिक्षा मंत्रालय अशिक्षा मंत्रालय है। कोचिंग व्यवसाय में करोड़ों का आय जो है। अभिभावक लोन लेकर पैसे दे रहे हैं। 5% बच्चे सफल होते हैं। 95% का कुछ नहीं होता। अंत में पैसे नष्ट। आत्महत्या। जीवन बेकार गया। आखिर किसी न किसो को तो जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी, इसे बेहतर बनाने को, नहीं तो समाज व देश को इससे बहुत बड़ा खतरा है, ये सभी को मान लेना चाहिए।
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