आखिर दीपावली के दिन भगवतीनगर कॉलोनी के किन लोगों पर महालक्ष्मी ने कृपा बरसाई थी?
कोई ज्यादा दिनों की बात नहीं। बस दो दिन पहले की बात है। इसी राज्य में एक भगवतीनगर कॉलोनी है। इस भगवतीनगर कॉलोनी में धर्म को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़-मरोड़ कर इस्तेमाल करनेवाले लोग रहते हैं। यानी जब जिसको जैसा मन किया, अपनी सुविधानुसार आर्यसमाजी बन गया और जिसको जब मन किया सनातनी बन गया। मतलब जब मन किया मूर्तिपूजा/पिंडदान आदि से खुद को मुक्त कर लिया और जब मन किया शिवजी और सूर्य नारायण के आगे एक लोटा जल चढा दिया।
जैसा कि हर गांव/शहर के कस्बे में होता हैं। किसी की आपस में खुब गाढ़ी दोस्ती हैं तो कोई ऐसा भी हैं, जो बिना वजह के ही एक दूसरे को दुश्मन समझ लेता है। यही हाल इस भगवतीनगर कॉलोनी का भी है। पर इसी भगवतीनगर कॉलोनी में एक ऐसा भी परिवार हैं, जो चाहता हैं, उसका कॉलोनी साफ स्वच्छ रहे, उसके कॉलोनी के लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो, वो समय-समय पर सरकार और उनके लोगों से मिलकर उस कॉलोनी के लोगों को हर प्रकार की सुविधा जुटाने में लगा रहता हैं, ऐसा करने के कारण भगवतीनगर कॉलोनी के ज्यादातर लोग, उस व्यक्ति को महामूर्ख समझते हैं और समय-समय पर उसकी उचित बातों पर उसे झार भी लगा देते हैं। बेचारा क्या करें, वो अपनी आदत से लाचार हैं और लोग अपनी आदत से। बस अंतर यहीं है।
इस भगवती नगर कॉलोनी में ज्यादातर लोगों के पास चार चक्के हैं, कइयों के पास दो-दो पहियों की भी बहुतायत हैं। मतलब सभी आर्थिक रुप से संपन्न हैं। किसी को किसी चीज की कमी नहीं। सभी शान से रहते हैं और समय-समय पर अपने परिधानों, चाल-चलन से अपनी शान का प्रदर्शन भी करते हैं। हाल ही में दीवाली थी, इस भगवतीनगर कॉलोनी में भी सभी लोग दीपावली की मस्ती में डूब रहे थे। कोई धनतेरस के दिन चार चक्का खरीद रहा था, भले ही उसे चार चक्का रखने के लिए जगह हो या न हो, कोई अपनी घर के सजावट में हजारों खर्च करने में लगा था, कोई मिठाई तो कोई पटाखों पर अनाप-शनाप खर्च किये जा रहा था।
कोई भगवान की दी गई वस्तु जल को इस प्रकार खर्च किये जा रहा था, जैसे उसने ही जल को तैयार किया हो, यानी सभी मस्ती में डूबे हुए थे। वहीं इसी भगवतीनगर में दो परिवार ऐसे भी थे, जिनके घरों में इसी वर्ष एक व्यक्ति-एक व्यक्ति का देहांत हो गया था, जिसके कारण वे इस बार दीपावली नहीं मना रहे थे। इन दो परिवारों के लोग शांत भाव से इस दीपावली पर अपने-अपने घरों में ज्यादातर समय कैद होने में ही बिताया, पर इनके घरों में जो बच्चे थे, उनको क्या पता कि दीपावली मनाना या नहीं मनाना क्या होता हैं, वो तो इसी भाव में थे, कि उनके घरों में भी ऐसा ही कुछ माहौल होगा, जैसा कि दूसरों के घरों में दिख रहा हैं।
इसी बीच भगवतीनगर कॉलोनी में जब दीपावली अपने चरमोत्कर्ष पर थी। उस वक्त भगवतीनगर कॉलोनी के लोग जमकर आतिशबाजी कर रहे थे, मिठाइयां खा रहे थे, घरों में सुंदर-सुंदर बने पकवानों का भोग लगा रहे थे, अपने आप में मग्न थे, उनके घर के ही बगल में किसी के घर अंधेरा छाया हुआ हैं, इससे उनको कोई मतलब नहीं था, जिन लोगों को ये घमंड था कि वो तो उनका मित्र हैं, वो जरुर कम से कम एक मिठाई लेकर उसके घर जरुर आयेगा, बेचारे उनको भी निराशा हाथ लगी, क्योंकि उनका दोस्त दीपावली की ऐसी मस्ती में डूबा था, कि उसे पता ही नहीं चला कि दीपावली का मायने क्या है? ऐसे भी इस भगवतीनगर कॉलोनी में रहनेवाले लोगों ने कभी दीपावली का अर्थ समझा भी नहीं था।
पर इसी भगवतीनगर कॉलोनी में एक चिराग रॉय रहते है। उनके एक बच्ची और एक बच्चे हैं। जैसे ही सायं सात बजने को हुआ। वे अपने घर से निकले, और आनन्द कुमार के घर पहुंच गये, चूंकि आनन्द कुमार को चिराग रॉय बहुत ही सम्मान करते थे, उन्होंने उनके पांव छूए, आशीर्वाद लिया और उन्हें ये भी समझते देर नहीं लगी कि आनन्द जी के यहां इस बार दीपावली नहीं मन रही। वे बिना कुछ बताये, आशीर्वाद लिया और भगवतीनगर कॉलोनी के अन्य परिवारों से भी मिलने के लिए निकल गये।
अचानक रात्रि के पौने ग्यारह बजे थे। आनन्द कुमार के घर पर किसी बच्ची की अंकल-अंकल पुकारने की आवाज आई। आनन्द कुमार और आनन्द कुमार की पत्नी चूंकि उस वक्त सो गये थे, अचानक एक बच्ची की आवाज सुनकर उठी और अपने घर का मुख्य द्वार खोला। आनन्द कुमार की पत्नी यह देखकर आश्चर्य थी कि घर के मुख्य द्वार पर चिराग रॉय की बेटी एक थाल लिये खड़ी थी। आनन्द कुमार की पत्नी को यह समझते देर नहीं लगी कि उस थाल में क्या होगा? वह मुस्कुराती हुई चिराग रॉय की बेटी से थाल ली और उसे आशीर्वाद देकर विदा किया। इधर चूंकि दूसरे दिन सूर्यग्रहण था, इसलिए थाल में रखी खाने की वस्तु खराब न हो जाये, उसी वक्त आनन्द कुमार और उनकी पत्नी ने बड़े ही प्रेम से भोजन को ग्रहण किया और चिरॉग राय की इस भलमनसाहत को लेकर सोच में पड़ गये और कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन पता चला कि जिस सरोज को गर्व था कि कोई आये या न आये पर उनका गहरा दोस्त भोला दीपावली के दिन उसको जरुर याद करेगा, भोला याद क्या एक मिठाई का टुकड़ा लेकर भी नहीं पहुंचा कि चलो सरोज के घर चले मिठाई लेकर, क्योंकि उसके दोस्त के घर इस बार दीपावली नहीं मनी, पर ये क्या एक गरीब खोमचेवाला जिसके घर में न तो चार चक्का और न दुपहिया, अरे वो तो सरोज का दोस्त भी नहीं, पर वो कई मिठाइयों को लेकर, सरोज के घर पहुंच गया था। सरोज और सरोज की मां, उस खोमचेवालों की इस भलमनसाहत और उसकी उच्च सोच पर गद्गद थी।
सरोज की मां को इस बात का ऐहसास हो गया था कि उस खोमचेवाले को दीपावली का मतलब क्या होता है, पता था। सरोज की मां ने यह भी बताया था कि बगल के सुधीर अपनी पत्नी के साथ आशीर्वाद लेने उनके यहां आया था, पर सरोज की मां ने ये भी कहा कि भगवती नगर कॉलोनी के अन्य लोगों के लिए उनके पास दीपावली के दिन आने का समय नहीं था।
इधर आनन्द कुमार दीपावली की रात नींद में मग्न थे, अचानक स्वप्न में लक्ष्मी प्रकट हो गई। लक्ष्मी ने पूछा कि बताओ आनन्द, आखिर तुम्हारे इस भगवतीनगर कॉलोनी ने दीपावली किसने मनाई? आनन्द ने कहा – मां लक्ष्मी, आप तो साक्षात् भगवती हो, भगवतीनगर कॉलोनी के लोगों को जानती हो, क्या आपको नहीं पता कि किसने दीपावली सही से मनाई, अच्छा रहता कि आप खुद ही इस प्रश्न का उत्तर दो।
लक्ष्मी ने कहा – मैं तो इतना ही जानती हूं कि तुम्हारे भगवतीनगर कालोनी में उस खोमचेवाले ने और दूसरा चिराग रॉय ने ही असली दीपावली मनाई। दीपावली का अर्थ ही हैं, अलौकिक प्रकाश से स्वयं को जगमगा देना और दूसरे को भी जगमग कर देना। जो केवल स्वयं के लिए धन-धन चिल्लाता रहें, शोर करें, अपने आप में ही लगा रहे, भला मैं उसके घर में कहां रह पाती हूं? मैं तो उसी के घर में रहती हूं, जहां सद्बुद्धि व ज्ञान का समन्वय होता हैं। जहां लोग धर्म के मूल स्वरुप को जानते हैं।
याद हैं, तुमने सुदर्शन की कहानी आशीर्वाद बचपन में पढ़ी थी। उस आशीर्वाद में भी मैंने हरो की सहायता करनेवाली उस महिला को कहा था कि तुमने तीर्थयात्रा नहीं, महातीर्थयात्रा की हैं। तभी अचानक भगवतीनगर कॉलोनी के सुपात्रों ने पटाखों का एक जोरदार का धमाका किया, आनन्द की नींद टूट गई, बाहर जाकर देखा, कुछ लोग अपने घरों को छोड़ दूसरे के घरों के पास धमाका करने का आनन्द प्राप्त कर रहे थे, जबकि रात के पौने बारह बज चुके थे। सरकार ने आठ से दस का ही समय दिया था, पर भगवतीनगर कॉलोनी के लोग खास है, वे धमाके पर धमाके करें, क्या फर्क पड़ता है, वे तो अपने तरीके से दीपावली मना रहे थे। खुशियां मना रहे थे। परमानन्द में डूबे जा रहे थे।