गढ़वा के बाद, जामताड़ा की खबर से “दैनिक जागरण” ने मुस्लिम समुदाय के अंदर चल रहे विघटनकारी सोच का किया पर्दाफाश
झारखण्ड के मुस्लिम समुदाय में जिस प्रकार की सोच चल रही है। उसकी केवल परिकल्पना आप करें तो स्थिति आनेवाले समय में झारखण्ड के लिए भयावह दिख रही है। गढ़वा के एक गांव में यह कहना कि इस गांव में 75 प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की हैं, यहां वहीं होगा जो मुस्लिम चाहेंगे और उस गांव में पिछले कई सालों से हाथ बांधकर प्रार्थना होती रही।
राज्य का शिक्षा विभाग तथा वहां के वरीय अधिकारी कान में तेल डालकर सोता रहा, उस इलाके का मीडिया जगत भी चुप्पी साधे रहा, शायद उसे लगता हो कि चुप्पी साधना ही समस्या का समाधान हैं, पर ये बताने के लिए काफी है कि राज्य में किस प्रकार की गतिविधियां, इस राज्य की सांप्रदायिक सौहार्द्र व भारतीय संविधान की आत्मा को प्रभावित करने में लगी हैं।
उधर गढ़वा की घटना पर जैसे-तैसे प्रशासन ने पर्दा डाला और इधर जामताड़ा की घटना ने लोगों के समक्ष जो अपना रौद्र रुप दिखाया हैं, वो बताने के लिए काफी है कि राज्य की मुस्लिम समुदाय की सोच क्या है? दैनिक जागरण ने “शुक्रवार को जबरन स्कूल बंद करवा रहे मुस्लिम” नामक हेडिंग से जो खबरें छापी हैं वो धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करनेवाले लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है, तथा भारतीय संविधान की खूली अवहेलना है।
कमाल इस बात की है कि यहां पंचायत चुनाव होते हैं, एक मुखिया अपना नॉमिनेशन का पर्चा भरने आता है, हम बात गिरिडीह की कर रहे हैं, उसके नॉमिनेशन में एक नहीं कई बार पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा लगता है, पर होता क्या हैं, उस पर भी पर्दा डालने की कोशिश की जाती है। झारखण्ड के लोहरदगा के हिरही गांव में जिस प्रकार रामनवमी के जुलूस के दौरान दंगा हुआ, हिंदूओं पर चुन-चुन कर हमले हुए।
दस जून को रांची में जिस प्रकार दंगाइयों ने पुलिस बल पर हमला किया, मंदिरों पर हमले किये, पत्थरबाजी की, गोलीबारी की और जब इनके खिलाफ रांची पुलिस ने कार्रवाई करनी शुरु की तो इनके समर्थकों ने जिस प्रकार से रांची के दंगाइयों की मदद की और आज भी पुलिस प्रशासन पर यह दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि रांची की घटना के लिए सिर्फ और सिर्फ रांची पुलिस दोषी हैं तो यह घटना भी कम चिन्ताजनक नहीं है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो वे साफ कहते है कि गढ़वा और जामताड़ा की घटना बताने के लिए काफी है कि मुस्लिम समुदाय, अपनी जनसंख्या बढ़ाकर भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को चोट पहुंचाने का काम बड़े ही सुनियोजित ढंग से शुरु कर दिया हैं और इसमें खाद-पानी देने का काम यहां के राजनीतिबाज और प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं, नहीं तो भारतीय संविधान तो इन सभी बातों और गुंडागर्दी की इजाजत ही नहीं देता।
रांची से प्रकाशित दैनिक जागरण ने तो आज अपने प्रथम पृष्ठ पर पुख्ता प्रमाण के साथ वो चीजें छाप दी हैं कि राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के प्रशासनिक अधिकारी क्या, यहां की हेमन्त सरकार की भी हिम्मत नहीं कि इस समाचार को झूठला दें। दैनिक जागरण के जामताड़ा रिपोर्टर कौशल सिंह के इस रिपोर्ट ने पूरे झारखण्ड में बवाल मचा दिया है और यह सोचने पर लोगों को मजबूर कर दिया है।
कि क्या आनेवाले समय में झारखण्ड में धर्म-निरपेक्षता बची रहेगी या मुस्लिम समुदाय जैसे-जैसे अपनी जनसंख्या बढ़ाने में कामयाब हो जायेगा, वो जनसंख्या के आधार पर पूरे राज्य को इस्लामी स्टेट बनाने की मांग कर बैठेगा? क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो फिर जामताड़ा के मुस्लिम बहुल इलाकों में चल रहे स्कूलों के बोर्डों पर जबरन उर्दू स्कूल क्यों लिखा जा रहा, वहां रविवार की जगह शुक्रवार को स्कूल में साप्ताहिक अवकाश क्यों हो रहे हैं? राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को जवाब देना चाहिए।