अपनी बात

NIA की छापेमारी के बाद रामकृपाल कंस्ट्रक्शन से उपकृत नेताओं, अधिकारियों व पत्रकारों के चेहरे पर हवाइयां उड़ी

जैसे ही झारखण्ड के विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, उच्चाधिकारियों व उंची पहुंच वाले पत्रकारों को इस बात की जानकारी मिली, कि रामकृपाल कंस्ट्रक्शन के कार्यालय में छापा पड़ी है, सभी के चेहरे पर हवाइंया उड़ने लगी, सभी आश्चर्य में पड़ गये, कई घोर निराशा के शिकार हो गये। आश्चर्य इस बात को लेकर था कि रामकृपाल कंस्ट्रक्शन पर कई लोगों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे, होना यह था कि राज्य का एंटी करप्शन ब्यूरो को छापा मारना चाहिए था, पर छापा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों ने कर डाली।

चूंकि मामला एनआइए से जुड़ा था, सभी ने संभावना जता दी कि मामला टेरर फंडिग से ही होगा, पर सच्चाई यह है कि इस बात की जानकारी न तो एनआइए से जुड़ी संस्थाओं ने संवाददाताओं को दी और न ही इस बात की जानकारी रामकृपाल कंस्ट्रक्शन से जुड़े लोगों ने अखबारों या चैनलों को पहुंचाई।

फिलहाल मामला अभी तक हवा में हैं, लेकिन रामकृपाल कंस्ट्रक्शन कार्यालय में एनआइए की छापेमारी ने राजनीतिक दलों के कई नेताओं, कई उच्चाधिकारियों व कई पत्रकारों की नींद जरुर उड़ा दी, जो रामकृपाल कंस्ट्रक्शन से अनेक बार उपकृत हुए हैं। सभी इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे कि राज्य में झामुमो गठबंधन की सरकार और केन्द्र में भाजपा की सरकार ऐसे में एनआइए की छापेमारी कुछ समझ में नहीं आई।

वह भी तब जब राज्य में पूर्व में रघुवर सरकार के दौरान रामकृपाल कंस्ट्रक्शन पर हमेशा कृपा बरसती रही, सूत्र तो बताते है कि राज्य में जितनी भी प्रभावशाली निर्माण हुए हैं, उसमें रामकृपाल कंस्ट्रक्शन की ही भूमिका रही है, यानी जहां इन्होंने टेन्डर में अपना नाम लिख दिया, बस उस टेंडर पर एकाधिकार उनका हो गया, पर राज्य में सरकार बदलने के बाद ऐसा अब लगता है कि संभव नहीं।

फिर भी जो पूर्व के टेंडर उन्हें मिले हैं, उस पर तो उनका एक छत्र राज हैं, और अगर इसी बीच हेमन्त सरकार की टेढ़ी नजर पड़ गई और सरकार ने इनके द्वारा निर्मित हर निर्माण की न्यायिक जांच करा दी, तो समझ लीजिये, रामकृपाल कंस्ट्रक्शन ही नहीं, बल्कि इनसे उपकृत कई लोग के चेहरे पर से भी नकाब उठ जायेंगे।

यही कारण रहा कि कल से लेकर आज तक सभी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही, कि पता नहीं एनआइए को क्या-क्या कागजात हाथ लगे और उसके हाथों से कौन-कौन लोग वहां पहुंच जाये, जहां पहुंचना कोई नहीं चाहता, फिलहाल जब तक ये मामला अपने चरम तक नहीं पहुंचता, तब तक चुप रहना ही बेहतर है, आगे-आगे देखिये होता है क्या?