कोरोना से पत्रकारों की हो रही मौत व पत्रकारों को झूठे मुकदमें में फंसाने के खिलाफ AISMJWA उतरा सड़कों पर, मनाया काला दिवस
आज पूरे झारखण्ड में AISMJWA के नेतृत्व में विभिन्न अखबारों/चैनलों व पोर्टलों में कार्यरत पत्रकारों ने सड़कों पर उतरकर, काला दिवस मनाया। इस दौरान आंदोलनरत पत्रकारों में राज्य सरकार, विपक्षी दल व अपने संस्थानों के खिलाफ आक्रोश भी दिखा। इन पत्रकारों का कहना था कि आखिर जिस संस्थान में वे काम करते हैं, वे संस्थान भी इस महामारी के दौरान मर रहे पत्रकारों की सुध क्यों नहीं ले रहे, वे ये मानने को क्यों तैयार नहीं कि मृतक पत्रकार उनके यहां काम करता था, इसलिए जिम्मेवारी बनती है कि उसके परिवार का वे सुध लें।
आखिर राज्य सरकार व यहां के विपक्षी दल के नेता, पत्रकारों के मामले में चुप्पी क्यों साध लेते हैं, जबकि अन्य के बारे में उनकी जुबानें लंबी हो जाती है, क्या पत्रकार, आदमी नहीं होता, क्या उसकी कोई पारिवारिक जिम्मेवारी नहीं होती, क्या समाज, प्रबंधन व सरकार की उसके प्रति कोई जिम्मेवारी नहीं, अगर नहीं तो फिर पत्रकार क्या करें? इन्हीं सभी कारणों से आज झारखण्ड के कई इलाकों में पत्रकार सड़कों पर उतरें, आंदोलन किया, नारेबाजी की व काला दिवस मनाया। आश्चर्य यह भी है कि इस आंदोलन की आंशिक ही सही, पर गुपचुप तरीकें से सभी ने इसका समर्थन किया, जो AISMJWA के लिए बड़ी सफलता है।
सूत्र बताते है कि पत्रकारो की विडम्बना है कि वे अपनी लड़ाई भी खुद नहीं लड़ सकतें, जहां वे अपने हक की बात करेंगे, प्रबंधन उन्हें ठिकाने लगा देगा। राज्य सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर अखबार के प्रबंधक व संपादक से लड़ने की ताकत नहीं रखता, क्योंकि उसे लगता है कि इनके हक की बात करेंगे तो अखबार व चैनल उनका चेहरा व उनके संवाद ही जनता तक पहुंचने नहीं देगा, ले-देकर ये चुप बैठ जाते हैं, तो क्या ऐसे में छोटे-मझौले पत्रकारों की कोई औकात नहीं, वे इसी तरह मरते रहेंगे।
राज्य में ऐसे कई पत्रकारों के संगठन हैं, जिन पर किसी न किसी अखबार के प्रबंधक या संपादक का कब्जा हैं, वे इन संगठनों को अपने हित में इस्तेमाल करते हैं, तथा इस संगठन के माध्यम से अपनी सेहत सुधार लेते हैं, यही कारण है कि झारखण्ड में कई पत्रकार कोरोना से काल-कलवित हो गये, कई पत्रकारों पर झूठे मुकदमें हो गये, पर जरा पूछिये पत्रकारों के हितों को लेकर बनानेवाले उन पत्रकार संगठनों व गद्दार संपादकों से कि उसने कब पत्रकारों के हितों के लिए आंसू बहाएं हैं, ये तो सिर्फ समय-समय पर सेमिनार-वेबिनार कराकर, उसमें भी नेताओं से अथाह पैसे उठाकर, अपनी जेबें भरकर अपने कार्यों की इतिश्री कर लेते हैं, जिसकी जितनी भी निन्दा की जाय कम हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो AISMJWA ने एक बेहतर कार्य के लिए आंदोलन खड़ा किया और निश्चय ही इसका लाभ आनेवाले समय में पत्रकारों को मिलेगा, जिसे कोई रोक नहीं सकता।
इसी बीच प्रीतम सिंह भाटिया ने विद्रोही24 से बातचीत में कहा कि आए दिन पत्रकार साथियों के कोरोना से हो निधन की खबरों ने उन्हें व उनके संगठन के लोगों को विचलित कर दिया है। स्थिति बहुत ही भयावह है। दर्जनों पत्रकार कोरोना के कारण काल-कलवित हो गये, पर किसी ने उनके परिवारों की सुध नहीं ली, आखिर जिस व्यक्ति ने स्वयं को समाज की सेवा में लगा दिया, उसके लिए कुछ करना क्या सरकार, संस्थान व समाज की जिम्मेवारी नहीं बनती।
उन्होंने कहा कि जिस हाउस में रहकर एक पत्रकार सर्दी, गर्मी व बरसात को सहता हुआ, सेवा दे रहा होता है, ऐसे समय में उसका भी उससे मुंह मोड़ लेना क्या बताता है? अतः कोरोना के इस संकट में जिस प्रकार से छोटे-मझौले पत्रकार संकट में हैं, उस पर से ऐसे पत्रकारों को कानूनी पेंच में, झूठे मुकदमें में फंसाया जा रहा है, उसकी लड़ाई उनका संगठन AISMJWA लड़ता रहेगा, चाहे उसके लिए हमें किसी से भी क्यों न टकराना पड़ें।
प्रीतम सिंह भाटिया ने यह भी कहा कि आज पूरे राज्य में एक छोटा सा प्रयास काला दिवस मनाने को लेकर हुआ हैं, हालांकि उसका आंशिक असर ही दिखा, फिर भी यह असर बताने के लिए काफी है कि अब आज का पत्रकार अपने उपर हो रहे अत्याचार को लेकर चुप-चाप नहीं बैठेंगा, लड़ाई लड़ेगा, एक दिन उसे सफलता अवश्य मिलेगी, शुरूआत हो चुकी है।